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मेरा कसूर ये है कि मैं वार्ड्स को घरों
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पे ड्यूटी नहीं करने दे रहा।
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मेरा कसूर ये है कि जिन लोगों ने चाइना
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कटिंग वगैरह की हुई थी, धंधे कर रहे थे
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उनको पोस्टिंग नहीं दे रहा। मेरा कसूर ये
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है कि ये बाकी मामलात के लिए जब मुझे फोन
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करते हैं मैं फ़ नहीं उठाता इनका।
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मेरा कसूर यह है कि मैं आपको बता रहा हूं
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कि आज अगर 49 साल बाद यह बोल्ड मार्केट का
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मसला एक जा मेयर ने हल किया है तो मुझसे
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पहले फारूक सत्तार साहब थे
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अब्दुल सत्तार अबानी साहब थे
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नेमतुल्लाह साहब थे मुस्तफा कमाल साहब थे
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वसीम अख्तर साहब थे तो यार अगर नियत होती
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काम करने की तो मसले हल हो जाते ना आज
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मुझ में कौन से सुखाब के है कि मुझे ये
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मसला हल करना पड़ा। सिर्फ एक डिफरेंस है
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नियत है। इनको बुला के कोई पिस्तलस्टल
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नहीं रखी। पिस्तल का दौर खत्म हो गया है।
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इनको आके बताया। मैंने कहा भाई काम होना
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चाहिए। मसला हल होना चाहिए। कहा हम भी यही
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चाहते हैं। और माशा्लाह आज ये चीज करके
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दिखा दी ना। तो ये छोड़े एक साल हो दो साल
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हो। मैं तो कभी ये नहीं कहता मैं कितने
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साल के लिए आया हूं। लेकिन जब तक हूं ना
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ठोक बजा के काम करूंगा। कोई जलता है तो
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जले। इसको मिर्ची लगती है तो लगे।