0:00
दोस्तों स्वागत है आपका इस नई यात्रा में
0:03
विदुर नीति द कोड ऑफ विज़डम। महाभारत में
0:06
जब अधर्म और अन्याय बढ़ गया था। जब सत्ता
0:10
की भूख रिश्तों से बड़ी हो चुकी थी तब एक
0:13
ऐसा व्यक्ति था जिसने सत्य को निडर होकर
0:15
कहा वह था विदुर। विदुर केवल एक मंत्री
0:19
नहीं थे। वे उस युग के सबसे बड़े थॉट
0:21
लीडर, साइकोलॉजिस्ट और स्ट्रेटेजिस्ट थे।
0:24
उनके शब्द आज भी उतने ही सटीक लगते हैं
0:27
जितने हजारों साल पहले थे। और यही इस
0:30
सीरीज का उद्देश्य है विदुर नीति को
0:32
आधुनिक जीवन की भाषा में समझना। आज के इस
0:35
पहले भाग में हम बात करेंगे विज़डम की
0:38
शक्ति की, अपने मन पर नियंत्रण यानी इनर
0:41
कंट्रोल की और उन रहस्यों की जो हमें हर
0:44
परिस्थिति में शांत, संतुलित और शक्तिशाली
0:47
बनाए रखते हैं। विदुर नीति कहती है जिसने
0:50
अपने मन पर नियंत्रण पा लिया उसने संसार
0:53
को जीत लिया। यह केवल एक वाक्य नहीं बल्कि
0:57
एक संपूर्ण दर्शन है क्योंकि दुनिया की
0:59
सारी लड़ाईयां चाहे वह बाहरी हो या भीतरी
1:02
हमारे मन से ही शुरू होती हैं। जो व्यक्ति
1:05
अपने मन को नियंत्रित कर लेता है वही
1:08
वास्तविक नेता बनता है। ऐसा व्यक्ति
1:11
दूसरों को नहीं खुद को बदलने की शक्ति
1:14
रखता है। और यही आत्म नियंत्रण यानी सेल्फ
1:17
कंट्रोल विदुर नीति का पहला और सबसे बड़ा
1:20
संदेश है। विदुर कहते हैं, तीन प्रकार के
1:23
लोग इस संसार में पाए जाते हैं। पहले जो
1:25
बिना सोचे बोलते हैं, यह स्वयं को और
1:28
दूसरों को हानि पहुंचाते हैं। दूसरे जो
1:30
सोच कर बोलते हैं, यह सफलता के करीब
1:32
पहुंचते हैं और तीसरे जो बोलने से पहले
1:35
सुनते हैं, यही बुद्धिमान कहलाते हैं।
1:38
ध्यान दीजिए, यहां विदुर सिर्फ स्पीच की
1:41
बात नहीं कर रहे बल्कि माइंड मैनेजमेंट की
1:43
बात कर रहे हैं। क्योंकि जो व्यक्ति सुनना
1:46
सीख जाता है, वह सीखना भी सीख जाता है। आज
1:51
यही सबसे बड़ी कमी है। हर कोई बोलना चाहता
1:54
है, लेकिन बहुत कम लोग सुनना चाहते हैं।
1:56
हर कोई दिखाना चाहता है कि वह सही है।
1:59
लेकिन कोई समझना नहीं चाहता कि दूसरे
2:01
क्यों गलत है। विदुर कहते हैं जो मनुष्य
2:04
अपने जीभ पर काबू नहीं रख सकता, वह अपने
2:07
भाग्य पर भी नियंत्रण नहीं रख सकता। इसका
2:09
अर्थ है अनकंट्रोल्ड स्पीच लीड्स टू
2:14
आज अगर हम कॉर्पोरेट लाइफ देखें कितने ही
2:17
कॉन्फ्लिक्ट्स सिर्फ एक गलत शब्द या हॉर्श
2:21
टोन की वजह से होते हैं। कितने
2:23
रिलेशनशिप्स सिर्फ इसीलिए टूट जाते हैं
2:25
क्योंकि हम उस वक्त चुप नहीं रह पाए जब
2:28
जरूरत थी। सेल्फ कंट्रोल का मतलब केवल
2:30
गुस्से को रोकना नहीं है। सेल्फ कंट्रोल
2:32
का मतलब है शब्दों को तोल कर बोलना।
2:35
भावनाओं को समझकर व्यक्त करना और स्थिति
2:38
को देखकर प्रतिक्रिया देना। यह वही कला है
2:41
जो आज इमोशनल इंटेलिजेंस कहलाती है। विदुर
2:44
रीति हजारों साल पहले उसी बात को सिखा रही
2:47
थी जो आज हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड में
2:49
पढ़ाई जाती है। थिंक बिफोर यू रियेक्ट एंड
2:52
रिएक्ट ओनली व्हेन नीडेड। विदुर एक और जगह
2:56
कहते हैं। शब्द तीर के समान है। एक बार
2:59
निकल जाए तो लौटते नहीं। इसीलिए बुद्धिमान
3:02
व्यक्ति अपने शब्दों से नहीं अपने मौन से
3:04
अपनी शक्ति दिखाता है। कभी आपने सोचा है
3:07
महाभारत में कृष्ण सबसे कम बोले लेकिन जब
3:10
बोले तो इतिहास बन गया। क्योंकि जो भीतर
3:12
शांत होता है वही बाहर शक्तिशाली होता है।
3:16
हम सबके जीवन में भी ऐसा ही होता है। जो
3:19
व्यक्ति अपने मन को शांत रखता है उसका
3:21
प्रेजेंस ही पावरफुल होता है। वह बिना
3:24
ऊंची आवाज के भी सुना जाता है। वह बिना
3:26
जोर डाले भी सम्मान पाता है। सोचिए एक
3:30
मीटिंग में दो लीडर्स हैं। एक लगातार बोल
3:33
रहा है। जस्टिफाई कर रहा है। बहस कर रहा
3:35
है। दूसरा शांत है। सब सुन रहा है।
3:38
मुस्कुरा रहा है। सही समय पर एक वाक्य
3:41
बोलता है और वही निर्णय बन जाता है।
3:43
क्यों? क्योंकि पावर कभी आवाज में नहीं
3:45
होती। वह हमेशा प्रेजेंस में होती है और
3:48
वह प्रेजेंस आती है इनर कंट्रोल से। विदुर
3:51
रीति कहती है जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों
3:53
को वश में कर लेता है, वह राजा के समान
3:56
है। चाहे वह भिक्षु ही क्यों ना हो। यह एक
3:59
गहरा साइकोलॉजिकल ट्रुथ है। आज साइंस कहती
4:02
है कि हमारा ब्रेन का 90% हिस्सा रिएक्टिव
4:04
मूड में काम करता है। अगर हम उस रिएक्शन
4:07
को ऑब्जर्व करना सीख लें तो हम अपने
4:09
बिहेवियर को रिीज़ाइन कर सकते हैं। विदुर
4:11
हजारों साल पहले यही कह चुके थे। अपनी
4:14
इंद्रियों को नियंत्रित करो। नहीं तो वह
4:16
तुम्हें नियंत्रित कर देंगी। आज के जीवन
4:18
में इसका मतलब क्या है? जब कोई आपको
4:20
क्रिटिसाइज करें और आप जवाब देने की बजाय
4:23
सिर्फ ऑब्जर्व करें। जब कोई आपको प्रवोक
4:26
करे और आप शांत रहें। जब किसी टेंप्टेशन
4:28
के बावजूद आप अपने उद्देश्य पर टिके रह तब
4:31
आप सिर्फ शांत नहीं हो। आप पावरफुल हो
4:36
के पास वही शक्ति नहीं होती जो दूसरों को
4:39
हटाए बल्कि उस व्यक्ति में होती है जो
4:42
अपने भीतर के तूफान को संभाल ले। महाभारत
4:45
में एक प्रसंग आता है। एक दिन धृतराष्ट्र
4:47
ने विदुर से पूछा विदुर कौन व्यक्ति सबसे
4:51
शक्तिशाली है? विदुर ने उत्तर दिया राजा
4:53
नहीं योद्धा नहीं धनवान नहीं। सबसे
4:56
शक्तिशाली वह है जो क्रोध आने पर भी शांत
4:58
रह सके। क्या यह अद्भुत नहीं है? आज भी
5:01
अगर हम देखें तो यही फार्मूला हर सफल
5:03
व्यक्ति पर लागू होता है। चाहे वह एक
5:05
बिजनेसमैन हो या पब्लिक स्पीकर हो, टीचर
5:08
हो या पेरेंट जो शांत रह सकता है, वही
5:10
निर्णय ले सकता है और जो निर्णय ले सकता
5:13
है, वही जीवन को दिशा दे सकता है। जब आपका
5:16
मन शांत है तभी आप स्थिति को वैसा देख
5:19
सकते हैं जैसी वह वास्तव में है। वरना हम
5:22
सब अपनी भावनाओं के चश्मे से रियलिटी को
5:25
डिस्टोर्टेड देख रहे होते हैं। विद्युत
5:27
नीति हमें यही सिखाती है। पहले खुद को
5:29
ऑब्जर्व करो फिर एक्ट करो क्योंकि जो खुद
5:31
को नहीं समझ पाया वह किसी और को कभी नहीं
5:34
समझ सकता। आज के फास्ट लाइफ में यह सबसे
5:39
बड़ी जरूरत है। हर चीज इंस्टेंट है
5:41
मैसेजेस, फूड, ओपिनियंस, रिएक्शंस। पर
5:44
विदुनीति कहती है स्लो डाउन। क्योंकि जो
5:46
ठहर कर सोचता है, वही स्थाई निर्णय लेता
5:49
है। थोड़ा रुकना, थोड़ा ऑब्जर्व करना,
5:51
थोड़ा मौन रहना। यही तो पल्स है जहां
5:53
बुद्धि काम करती है। और यही पॉज हमें
5:56
इमोशनल मैच्योरिटी देता है। जो भीतर शांत
5:59
है वही बाहर शक्तिशाली है। और दोस्तों जब
6:03
मनुष्य अपने शब्दों पर और अपने मन पर
6:05
नियंत्रण सीख लेता है तो अगला कदम होता है
6:08
अहंकार। ईगो पर विजय क्योंकि बुद्धि तभी
6:11
काम करती है जब अहंकार मौन हो और यही
6:13
हमारी अगली यात्रा का विषय है। आने वाले
6:16
भाग में हम समझेंगे कि कैसे ईगो और
6:18
इग्नोरेंस दो ऐसे शत्रु हैं जो हर इंसान
6:21
के पतन के पीछे छिपे होते हैं और कैसे
6:24
विनम्रता ही असली महानता की पहचान बनती
6:27
है। दोस्तों पिछले भाग में हमने समझा कि
6:30
सेल्फ कंट्रोल और इनर पीस ही जीवन की असली
6:34
शक्ति है। जिस व्यक्ति ने अपने मन और
6:37
शब्दों पर नियंत्रण पा लिया, वह सच्चे
6:40
अर्थों में विजेता है। लेकिन अव्यतुर नीति
6:43
हमें चेतावनी देती है। जब नियंत्रण टूटता
6:46
है जब अहंकार, ईगो और अज्ञान इग्नोरेंस
6:49
भीतर प्रवेश करते हैं, तब व्यक्ति
6:51
धीरे-धीरे अपना सब कुछ खो देता है। अपना
6:54
विवेक, अपना संतुलन और अंततः अपनी पहचान।
6:58
विदुर नीति कहती है अहंकारी व्यक्ति अपने
7:01
पतन का कारण स्वयं होता है। यह वाक्य
7:03
कितना सरल लगता है उतना ही गहरा है
7:06
क्योंकि अहंकार वह दीमक है जो भीतर से
7:09
इंसान के ज्ञान और विनम्रता को खा जाती
7:11
है। ईगो एक सल पोइजन है। शुरुआत में यह
7:15
आपको शक्ति देता हुआ लगता है। आप सोचते
7:18
हैं मैं सही हूं। मैं बेहतर हूं। मुझे सब
7:20
पता है लेकिन धीरे-धीरे यही सोच आपको
7:22
दूसरों से काट देती है। आप सलाह लेना बंद
7:25
कर देते हैं। आलोचना सुनना पसंद नहीं करते
7:28
और फिर एक दिन आप अकेले पड़ जाते हैं।
7:30
महाभारत का इतिहास गवाह है। दुर्योधन का
7:33
पतन उसके शत्रुओं ने नहीं किया बल्कि उसके
7:36
ईगो ने किया। उसका सबसे बड़ा अपराध यह था
7:39
कि उसने सत्य को स्वीकार करने से इंकार कर
7:42
दिया। कृष्ण ने कहा शांति का मार्ग अपना
7:44
लो। पर अहंकार ने कान बंद कर दिए। विदुर
7:47
ने सलाह दी पर दुर्योधन ने कहा मैं किसी
7:50
की नहीं सुनूंगा। यही अहंकार था जिसने
7:53
हस्तिनापुर की सभ्यता को राख में बदल
7:55
दिया। आज भी यही कहानी बार-बार दोहराई
7:58
जाती है। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में, पॉलिटिक्स
8:00
में, फैमिली में हर जगह जब कोई व्यक्ति
8:03
अपनी पोजीशन या नॉलेज के कारण खुद को
8:05
दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगता है तो उसका
8:08
डाउनफॉल शुरू हो जाता है। मॉडर्न
8:10
साइकोलॉजी भी यही कहती है। ईगो आइसोलेट्स
8:13
यू फ्रॉम ग्रोथ अर्थात अहंकार आपकी ग्रोथ
8:16
की दीवार बन जाता है। विदुर कहते हैं जो
8:19
व्यक्ति दूसरों की सलाह को तुच्छ समझता
8:21
है, वह अंधे के समान है जो सूर्य को भी
8:24
नहीं देख सकता। यानी जो व्यक्ति यह मान ले
8:27
कि उसे सब पता है वह सीखने की प्रक्रिया
8:30
को वहीं समाप्त कर देता है और जब सीखना
8:32
बंद हो जाए तो गिरावट निश्चित है। विदुर
8:35
रीति के अनुसार अहंकार के पांच लक्षण होते
8:37
हैं। पहला दूसरों की बात ना सुनना। दूसरा
8:41
छोटी सफलता पर गर्व करना। तीसरा हर स्थिति
8:44
में खुद को सही मानना। चौथा दूसरों को
8:46
नीचा दिखाना। पांचवा आलोचना से घृणा करना।
8:50
अगर यह पांच लक्षण किसी व्यक्ति में है तो
8:53
उसका पतन केवल समय की बात है। अब सोचिए
8:56
हमारे जीवन में कितनी बार ईगो हमारी
8:58
डिसीजंस को प्रभावित करता है। कभी हम किसी
9:00
को माफ नहीं करते क्योंकि पहले सॉरी क्यों
9:03
मैं बोलूं? कभी हम गलत साबित होने के डर
9:06
से किसी सलाह को नजरअंदाज कर देते हैं।
9:08
कभी हम अपनी पोजीशन या एज के कारण दूसरों
9:10
की बात सुनने से इंकार कर देते हैं। और हम
9:13
यह नहीं समझते कि हर बार ऐसा करने पर हम
9:16
अपने विवेक को थोड़ा और कमजोर कर रहे हैं।
9:19
विधु रीति हमें यह भी बताती है कि अहंकार
9:21
हमेशा अज्ञान से जन्म लेता है। जो व्यक्ति
9:24
ज्ञानवान होता है वह कभी अहंकारी नहीं
9:26
होता क्योंकि ज्ञान विनम्रता सिखाता है और
9:29
अज्ञान अभिमान। विदुर कहते हैं अज्ञानी
9:32
व्यक्ति उस दीपक के समान है जो स्वयं जलता
9:35
है पर किसी को प्रकाश नहीं देता। ऐसे
9:37
व्यक्ति का ज्ञान केवल बाहरी होता है।
9:40
भीतर से अंधकार ही रहता है। आज के समय में
9:44
यह बात बहुत गहराई रखती है। हम बहुत कुछ
9:46
जानते हैं। इंफॉर्मेशन का एक्सप्लोजन है।
9:49
लेकिन विदुर नीति का प्रश्न यह है। क्या
9:52
हम उस ज्ञान को अपने व्यवहार में उतार पा
9:54
रहे हैं? नॉलेज और विडम में फर्क यही है।
9:57
नॉलेज इंफॉर्मेशन है। विडम ट्रांसफॉर्मेशन
10:00
है। एक व्यक्ति के पास 100 किताबों का
10:02
ज्ञान हो सकता है। लेकिन अगर उसके अंदर
10:05
विनम्रता नहीं तो वह केवल चलता फिरता
10:08
डेटाबेस है। ज्ञान तभी सार्थक है जब वह
10:11
व्यवहार में नम्रता विनम्रता लाता है। ईगो
10:14
और इग्नोरेंस मिलकर एक खतरनाक इल्लुजन
10:17
बनाते हैं। ईगो कहता है मुझे सब पता है।
10:19
इग्नोरेंस कहता है मुझे और जानने की जरूरत
10:22
नहीं और इन दोनों के बीच सत्य दब जाता है।
10:25
विदुरनीति इसी इल्लुजन को तोड़ती है। वह
10:27
कहती है जिस दिन तुम स्वीकार कर लोगे कि
10:30
तुम्हें सब नहीं पता उसी दिन तुम्हारा
10:32
असली ज्ञान शुरू होगा। अब तक अब का एक
10:36
सुंदर उदाहरण सुनिए। जब कृष्ण ने युद्ध से
10:38
पहले अर्जुन को गीता सुनाई तो उन्होंने
10:41
सबसे पहले क्या कहा? तुम जो सोच रहे हो कि
10:44
तुम बहुत जानते हो वह तुम्हारे दुख का
10:46
कारण है। यह वही बात है जो विदुर ने
10:49
वर्षों पहले कही अहंकार ज्ञान का शत्रु
10:51
है। कृष्ण और विदुर दोनों हमें यही सिखाते
10:54
हैं। जब तक मैं बड़ा हूं सत्य छोटा है। जब
10:57
मैं छोटा होता हूं तब सत्य विशाल हो जाता
11:00
है। आज के लीडर्स, एंटरप्रेन्यर्स,
11:02
आर्टिस्ट सबके लिए यह एक मिरर है। हर बड़ा
11:05
व्यक्ति जो गिरा है, वह अपने ईगो की वजह
11:08
से गिरा है। और हर व्यक्ति जो आगे बढ़ा
11:10
है, उसने एक चीज जरूर अपनाई। ह्यूमिलिटी।
11:14
ह्यूमिलिटी का अर्थ यह नहीं है कि आप
11:16
कमजोर हैं। ह्यूमिलिटी का अर्थ है मैं
11:18
सीखने के लिए हमेशा तैयार हूं। विदुर नीति
11:21
हमें एक सुंदर संतुलन सिखाती है। ज्ञान
11:25
प्राप्त करो पर गर्व मत करो। सत्य बोलो पर
11:27
विनम्रता से बोलो। आत्मविश्वास रखो पर
11:30
अहंकार मत पालो। यही संतुलन इंसान को महान
11:33
बनाता है क्योंकि एक ज्ञानवान व्यक्ति
11:36
बिना विनम्रता के इनकंप्लीट है। जैसे फूल
11:39
बिना सुगंध के अधूरा है। अब जरा सोचिए अगर
11:43
दुर्योधन ने एक बार भी विदुर की सलाह मानी
11:46
होती अगर उसने अपनी ईगो को थोड़ी देर के
11:49
लिए भी शांत किया होता तो शायद महाभारत ही
11:51
ना होता। लेकिन यही विदुर नीति का संदेश
11:54
है। ईगो ब्लाइंड्स द वस। कभी-कभी हमें भी
11:57
अपने जीवन में वही स्थिति मिलती है जब हम
12:00
जानते हैं कि कोई बात सही है पर हम
12:04
स्वीकार नहीं करते क्योंकि हमारे भीतर का
12:06
मैं चुप नहीं होता। विदुर नीति हमें उस
12:09
मैं को शांत करना सिखाती है। वह कहती है
12:12
जो अपने भीतर के मैं को जीत लेता है वह
12:15
पूरे संसार को जीत लेता है। ईगो डिस्ट्र
12:18
विडम एंड ह्यूमिलिटी मल्टीप्लाई इट। और
12:21
दोस्तों जब मनुष्य अहंकार और अज्ञान के
12:24
अंधकार से मुक्त होता है, तब उसकी बुद्धि
12:27
निर्मल हो जाती है और वही निर्मल बुद्धि
12:30
उसे सिखाती है। कब बोलना है, कब सुनना है
12:32
और कब मौन रहना है। यही हमारी अगली यात्रा
12:35
का विषय होगा। द आर्ट ऑफ स्पीच, लिसनिंग
12:38
एंड साइलेंस। अगले भाग में हम जानेंगे कि
12:41
विदु नीति क्यों कहती है कि मौन एक कवच है
12:44
और शब्द तलवार कब बोलना चाहिए कब चुप रहना
12:47
चाहिए और कैसे सुनना एक साधना बन सकता है।
12:52
दोस्तों पिछले भाग में हमने जाना कि कैसी
12:55
ईगो और इग्नोरेंस मनुष्य के पतन के सबसे
12:58
बड़े कारण बनते हैं। हमने समझा कि अहंकार
13:01
हमारे विवेक को अंधा कर देता है और
13:03
विनम्रता ही सच्चे ज्ञान की पहचान है। अब
13:06
विदुर नीति हमें एक और अनमोल ज्ञान देती
13:08
है। शब्द सुनने की शक्ति और मौन की ताकत
13:11
यानी कब बोलना है, कब चुप रहना है और कब
13:14
सुनना है। विदुरनीति कहती है जो व्यक्ति
13:17
बोलने से पहले सोचता है, सुनने से पहले
13:19
समझता है और चुप रहने से पहले परखता है,
13:22
वही बुद्धिमान कहलाता है। यह एक वाक्य
13:25
नहीं बल्कि कम्युनिकेशन का रूल बुक है। आज
13:27
की दुनिया में जहां हर कोई बोलना चाहता
13:29
है, वहां सुनना एक कला बन गई है और मौन एक
13:34
विलासिता। विदुर कहते हैं, शब्द तीर की
13:36
तरह है। एक बार निकल गए तो लौटते नहीं। यह
13:39
वाक्य बताता है कि शब्दों में कितनी शक्ति
13:41
है। शब्द किसी को तोड़ भी सकते हैं और
13:44
जोड़ भी सकते हैं। हमारे जीवन की ज्यादातर
13:47
समस्याएं गलत शब्दों से शुरू होती हैं।
13:50
किसी ने कुछ गलत कह दिया, किसी ने कुछ गलत
13:52
सुन लिया। लेकिन विदुर हमें सिखाते हैं कि
13:55
शब्द बोलने से पहले उनका उद्देश्य समझो।
13:58
क्या बोल रहे हो? किससे बोल रहे हो? और
14:00
क्यों अभी बोलना जरूरी है? बोलने की कला द
14:04
आर्ट ऑफ स्पीच। विदुर नीति के अनुसार
14:06
बोलने के पांच नियम है। पहला शब्द सच्चे
14:09
हो लेकिन चोट पहुंचाने वाले ना हो। दूसरा
14:12
शब्द उपयोगी उपयोगी हो जो सुनने वाले को
14:15
अपलिफ्ट करें। तीसरा शब्द संतुलित हो ना
14:18
बहुत कठोर ना बहुत मीठे। चौथा शब्द
14:21
परिस्थिति के अनुरूप हो। समय और व्यक्ति
14:24
देखकर। पांचवा शब्द उद्देश्यपूर्ण हो। बस
14:28
बोलने के लिए ना बोले। जो व्यक्ति इन पांच
14:30
नियमों को समझ लेता है, उसकी वाणी शक्ति
14:33
बन जाती है। एक अच्छे लीडर का चाल उसके
14:36
वर्ड्स में नहीं उसकी टोन और टाइमिंग में
14:38
होता है। वह जानता है कब बोलना है, कब
14:41
शांत रहना है और कब सिर्फ मुस्कुराना है।
14:44
विदुर कहते हैं, जो व्यक्ति मीठे शब्द
14:46
बोलता है, उसका शत्रु भी मित्र बन जाता
14:50
है। यह सिर्फ डिप्लोमेसी नहीं बल्कि
14:52
इमोशनल इंटेलिजेंस की निशानी है। कभी आपने
14:55
गौर किया है? कुछ लोग बहुत कम बोलते हैं
14:57
पर जब बोलते हैं तो सब सुनते हैं। ऐसे लोग
15:00
कोई जादू नहीं करते। वे बस अपने शब्दों की
15:04
वैल्यू जानते हैं। शब्द तभी असर करते हैं
15:07
जब मौन के बाद बोले जाए क्योंकि जब आप चुप
15:09
रहते हैं तो आपके दूसरे आपके शब्दों का
15:12
इंतजार करते हैं। आगे चलते हैं सुनने की
15:15
शक्ति द पावर ऑफ लिसनिंग। विदुर नीति का
15:18
दूसरा बड़ा पहलू है सुनना यानी लिसनिंग।
15:20
विदुर कहते हैं जो सुनना नहीं जानता वह
15:22
सीखना भी नहीं जानता। सुनना केवल कानों से
15:25
नहीं होता। यह मन से होता है। अक्सर हम
15:27
सुनते हैं लेकिन केवल जवाब देने के लिए,
15:29
समझने के लिए नहीं। यह एक्टिव लिसनिंग है
15:32
ना कि एक्टिव लिसनिंग। विदुर का संदेश है।
15:35
पहले पूरी बात सुनो फिर बोलो। क्योंकि जो
15:37
पूरी बात सुने बिना प्रतिक्रिया देता है,
15:39
वह अंधे के समान है। जो अधूरा रास्ता
15:41
देखता है। मॉडर्न लाइफ का कनेक्शन जानते
15:44
हैं। एक मैनेजर जो अपनी टीम को सच में
15:46
सुनता है, उसे रिस्पेक्ट मिलता है। एक
15:49
टीचर जो स्टूडेंट्स को ध्यान से सुनता है,
15:51
वह प्रिय बन जाता है। एक पेरेंट जो अपने
15:53
बच्चों को सुनता है, वह उनके दिल के करीब
15:56
होता है। लिसनिंग बिल्स कनेक्शन और
15:58
कनेक्शन ही कम्युनिकेशन की सोल है। आगे
16:02
बात करते हैं मौन की ताकत, द पावर ऑफ
16:04
साइलेंस। अब आते हैं विदुर नीति के तीसरे
16:06
और सबसे शक्तिशाली भाग पर। मौन यानी
16:09
साइलेंस। विदुर कहते हैं मौन सबसे बड़ा
16:11
कवच है। जो मौन रहना जानता है, वह कभी
16:14
हारा नहीं। मौन का अर्थ यह नहीं कि आप डर
16:17
गए। मौन का अर्थ यह नहीं कि आपके पास जवाब
16:21
नहीं है। मौन का अर्थ है आप स्थिति को समझ
16:24
रहे हैं। भावनाओं को सेटल होने दे रहे
16:26
हैं। कभी-कभी सबसे बड़ा उत्तर साइलेंस
16:30
होता है। क्योंकि साइलेंस आपको समय देता
16:32
है सोचने का, महसूस करने का और समझने का।
16:35
जब सभा में द्रोपदी का अपमान हो रहा था,
16:37
विदुर बोलना चाहते थे, पर उन्होंने पहले
16:40
मौन धारण किया। क्योंकि वह जानते थे
16:42
भावनाओं के तूफान में बोला गया शब्द युद्ध
16:45
की ज्वाला बन सकता है और जब बोले तो उनके
16:48
शब्द इतिहास बन गए। जहां अधर्म होगा वहां
16:51
विनाश निश्चित होगा। यही विदुर का मौन था
16:54
शक्ति से भरा हुआ विवेक से संचालित।
16:56
मॉडर्न साइकोलॉजी भी यही कहती है। साइलेंस
16:59
रिसेट्स योर नर्वस सिस्टम। जब आप रुकते
17:03
हैं, आपका मन क्लेरिटी पाता है। इसलिए
17:06
डिसीजन लेने से पहले, जवाब देने से पहले
17:08
थोड़ा रुकना जरूरी है। जो व्यक्ति मौन की
17:10
शक्ति समझ लेता है, वह कभी जल्दबाजी में
17:13
फैसला नहीं करता। वह कभी भी भावनाओं में
17:16
बहकर नहीं बोलता और कभी परिस्थितियों से
17:18
नहीं डरता क्योंकि उसका मौन उसकी ढाल बन
17:21
जाता है। विदुर कहते हैं, मौन व्यक्ति को
17:23
तीन वरदान देता है। सुरक्षा, सम्मान और
17:26
स्थिरता। जो चुप रहता है वह विवादों से
17:28
बचा रहता है। जो सोच कर बोलता है वह
17:31
सम्मान पाता है और जो मौन में स्थिर रहता
17:34
है वह भीतर से शांत होता है। अगर
17:36
कम्युनिकेशन एक रिवर है तो स्पीच उसका
17:39
फ्लो है। लिसनिंग उसकी डेप्थ है और
17:41
साइलेंस उसकी परिटी है। तीनों के बिना वह
17:45
नदी अधूरी है। अब जरा सोचिए अगर हम अपने
17:48
जीवन में विदुर नीति की ये तीन बातें अपना
17:50
लें। बोलना सोचकर सुनना ध्यान से और मौन
17:53
रहना बुद्धि से तो कितने झगड़े,
17:56
गलतफहमियां और परेशानियां अपने आप समाप्त
17:59
हो जाएंगी। क्योंकि जो व्यक्ति अपनी वाणी
18:01
का मास्टर बन गया वह अपने जीवन का भी
18:03
मास्टर बन गया। साइलेंस डजंट मीन वीकनेस
18:07
इट्स पावर अंडर कंट्रोल। और दोस्तों, जब
18:10
व्यक्ति बोलने, सुनने और मौन रहने की कला
18:13
सीख लेता है, तो उसका मन धीरे-धीरे शांत
18:15
हो जाता है। लेकिन मन की यात्रा यहीं
18:17
समाप्त नहीं होती। मन के भीतर अभी एक और
18:20
दुश्मन छिपा है। मोह यानी अटैचमेंट और
18:22
माया यानी डिजायर का जाल। यही जाल सबसे
18:25
शक्तिशाली व्यक्तियों को भी बांध देता है।
18:28
अगले भाग में हम समझेंगे कि कैसे विदुर
18:31
नीति हमें सिखाती है कि इच्छा यानी डिजायर
18:34
को मारना नहीं बल्कि उसे दिशा देना चाहिए।
18:36
क्योंकि जब इच्छा आपका सेवक बन जाए तभी आप
18:40
उसके स्वामी बनते हैं। दोस्तों पिछले भाग
18:44
में हमने सीखा कि कैसे स्पीच, लिसनिंग और
18:46
साइलेंस की कला मनुष्य को शांति और
18:48
स्थिरता देती है। जो व्यक्ति बोलने, सुनने
18:51
और मौन रहने की कला सीख लेता है, वह अपने
18:54
जीवन के अधिकांश परेशानियों से मुक्त हो
18:56
जाता है। परंतु विद्र नीति हमें यह भी
18:58
चेतावनी देती है कि भले ही आप शांत, संयमी
19:01
और विवेकी बन जाए फिर भी एक दुश्मन है जो
19:04
भीतर ही भीतर आपको बांध सकता है और वह है
19:07
मोह यानी अटैचमेंट और इच्छा यानी डिजायर।
19:10
विदुर नीति कहती है इच्छा का कोई अंत
19:12
नहीं। जब तक मनुष्य अपनी इच्छा का दास है,
19:15
वह सच्चा स्वतंत्र नहीं। यह वाक्य साधारण
19:18
नहीं है। यह हमारी आधुनिक जिंदगी के सबसे
19:21
गहरे दर्द को दर्शाता है। एंडलेस वांटिंग
19:24
हमारी हर मॉर्निंग से नाइट तक की जर्नी
19:26
इच्छाओं की श्रृंखला है। नया फोन चाहिए,
19:28
नया कार चाहिए, प्रमोशन चाहिए, वैलिडेशन
19:31
चाहिए, रिस्पेक्ट चाहिए, एप्रिसिएशन
19:33
चाहिए। और जब एक चीज मिलती है तो दूसरे की
19:36
इच्छा पैदा हो जाती है। विदुर इस
19:38
प्रवृत्ति को मोह का जाल कहते हैं क्योंकि
19:41
इच्छा कभी संतुष्ट नहीं होती। वह बस रूप
19:44
बदलती रहती है। मॉडर्न साइकोलॉजी भी यही
19:47
कहती है। डिजायर इज लाइक अ ट्रेड मिल। यू
19:49
कीप रनिंग बट स्टे इन द सेम प्लेस। हम
19:52
सोचते हैं कि किसी गोल को हासिल कर लेंगे
19:54
तो शांत हो जाएंगे। लेकिन जब वह मिल जाता
19:57
है तो तुरंत दूसरा गोल जन्म ले लेता है।
20:00
यही विदुर का संदेश है। इच्छा से भागो
20:02
नहीं। उसे पहचानो और दिशा दो। आगे बात
20:06
करते हैं इच्छा का दोहरा चेहरा। द ड्यूल
20:08
नेचर ऑफ डिजायर। विदुर नीति का सौंदर्य यह
20:11
है कि वह इच्छाओं को बुरा नहीं कहती। वह
20:13
कहती है इच्छा अगर नियंत्रण में हो तो
20:15
प्रेरणा बनती है और अगर नियंत्रण से बाहर
20:17
हो तो विनाश। डिजायर दो प्रकार की होती
20:20
है। पहला सात्विक डिजायर जो सेल्फ ग्रोथ
20:23
लर्निंग और समाज के भले के लिए हो। दूसरा
20:27
तामसिक डिजायर जो केवल भोग शक्ति या
20:30
दूसरों पर नियंत्रण के लिए हो। पहली इच्छा
20:33
हमें ऊंचाई पर ले जाती है। दूसरी हमें
20:35
धीरे-धीरे पतन की ओर धकेल देती है।
20:38
महाभारत में दोनों के उदाहरण है। अर्जुन
20:40
की इच्छा थी धर्म की रक्षा करना। वह
20:42
सात्विक थी। दुर्योधन की इच्छा थी राज्य
20:45
पाने की किसी भी कीमत पर यह तामसिक थी।
20:48
रिजल्ट अर्जुन का आत्म अर्जुन को
20:51
आत्मज्ञान मिला और दुर्योधन को विनाश।
20:54
विदुर कहते हैं जिस व्यक्ति की इच्छाएं
20:56
उसके विवेक के अधीन है वही बुद्धिमान है।
21:00
आगे बात करते हैं मोह का जाल द वेब ऑफ
21:03
अटैचमेंट। विदुर नीति के अनुसार मोह भी
21:06
सभी दुखों का मूल कारण है। मोह का अर्थ
21:09
केवल व्यक्ति से लगाव नहीं है। यह उस आदत,
21:12
उस सोच, उस वस्तु या उस
21:15
परिस्थिति से लगाव भी हो सकता है जिसके
21:18
बिना हम खुद को अधूरा महसूस करते हैं। आज
21:20
का इंसान रिश्तों से नहीं अपनी
21:22
एक्सपेक्टेशंस से बंधा हुआ है। हम प्यार
21:25
करते हैं पर शर्तों के साथ। हम देते हैं
21:27
पर बदले में पाने की इच्छा से और जब वह
21:30
उम्मीदें पूरी नहीं होती तो पीड़ा शुरू
21:32
होती है। यही विदु नीति का संदेश है। जहां
21:35
अपेक्षा है वहां मोह है। जहां मोह है वहां
21:38
दुख निश्चित है। किसी को देखिए जो अपने
21:41
फोन से अलग नहीं रह सकता। हर 10 मिनट में
21:43
नोटिफिकेशन चेक करता है क्योंकि उसका मन
21:46
डोपामिन और अप्रूवल से जुड़ गया है। यह भी
21:49
मोह का आधुनिक रूप है। डिजिटल अटैचमेंट।
21:51
किसी पेरेंट को देखिए जो अपने बच्चों से
21:53
इतना इमोशनली अटैच्ड है कि उनके डिसीजंस
21:56
में दखल देता है। यह भी मोह का सल रूप है।
21:59
इंटेंट अच्छा है पर परिणाम उल्टा होता है।
22:02
विदुर विदुरनीति कहती है अटैचमेंट
22:05
डिसगाइस्ड एस लव इज द रूट ऑफ पेन।
22:08
विदुर का समाधान इसको लेकर बहुत सरल है।
22:12
मोह और इच्छा को मारो मत। उन्हें पहचानो
22:15
क्योंकि जिसे हम सप्रेस करते हैं, वह और
22:18
मजबूत होकर लौटता है। विदुर कहते हैं, जो
22:21
व्यक्ति अपनी इच्छाओं का निरीक्षण करता
22:23
है, वही उन पर शासन करता है। इसका अर्थ यह
22:26
है कि जब हम इच्छा को ऑब्जर्व करते हैं,
22:29
तो वह धीरे-धीरे अपनी पकड़ खो देती है।
22:31
उसे देखने वाला मन डिटच्ड हो जाता है। यह
22:34
डिटचमेंट ही फ्रीडम है। आज के मोटिवेशनल
22:37
थिंकर्स जैसे टोले, जय शेट्टी या रॉबिन
22:40
शर्मा भी यही कहते हैं। ऑब्जर्व योर
22:43
थॉट्स। डोंट बिकम देम। विदुर ने यही बात
22:46
हजारों साल पहले कही थी। इच्छा को समझो।
22:49
उसे दिशा दो। आगे चलते हैं। संतुलन की कला
22:52
द आर्ट ऑफ बैलेंस। विदुर नीति हमें एक
22:56
संतुलित जीवन सिखाती है। जहां इच्छाएं हैं
23:00
पर उनके दास नहीं। जहां मोह है पर विवेक
23:03
भी है। जहां एंबिशन है पर पीस भी है।
23:05
विदुर कहते हैं धन, सत्ता, प्रतिष्ठा यह
23:08
सभी अच्छे हैं। जब तक वे साधन है। जब वे
23:11
लक्ष्य बन जाए तब विनाश शुरू होता है। आज
23:14
के प्रोफेशनल वर्ल्ड में एंबिशन जरूरी है।
23:17
पर अगर वह आपकी स्लीप रिलेशनशिप्स और इनर
23:20
पीस छीन ले तो वह गिफ्ट नहीं कर्स बन जाता
23:23
है। इसीलिए विदुर नीति हमें यह गोल्डन
23:25
फार्मूला देती है। डिजायर गाइडेड बाय
23:28
धर्मा क्रिएट्स क्रॉथ। डिजायर गाइडेड बाय
23:31
ईगो क्रिएट्स डिस्ट्रक्शन। एक बार
23:33
धृतराष्ट्र ने विदुर से पूछा विदुर मनुष्य
23:36
दुखी क्यों होता है? विदुर ने उत्तर दिया
23:38
क्योंकि वह चीजों को पकड़ कर रखता है।
23:40
उन्हें जिन्हें उसे जाने देना चाहिए।
23:43
सिंपल वर्ड्स इनफाइनाइट विज़डम। हम जीवन
23:46
में बहुत कुछ पकड़ कर रखते हैं। पुराने
23:48
रिश्ते, बीती बातें, रिग्रेट्स, फियर,
23:50
गिल्ट और यही अटैचमेंट्स हमें वर्तमान से
23:53
काट देती हैं। विदुर नीति का संदेश है लेट
23:56
गो टू ग्रो। छोड़ना त्याग नहीं है। छोड़ना
23:59
समझ है। जो व्यक्ति यह समझ लेता है कि
24:02
किसी भी चीज को पकड़ कर नहीं रखा जा सकता।
24:04
ना सुख को, ना दुख को, ना संबंध को, ना
24:06
प्रसिद्धि को। वह जीवन का सबसे बड़ा रहस्य
24:09
जान लेता है। डिजायर इज फायर, कंट्रोल इट
24:12
और बर्न विद इट। और दोस्तों, जब व्यक्ति
24:14
अपनी इच्छाओं और मोह से मुक्त होता है, तो
24:17
उसके भीतर एक नई क्लेरिटी, एक नई स्थिरता
24:19
जन्म लेती है। अब वह किसी चीज से बंधा
24:22
नहीं होता। वह ना भय से चलता है ना लालच
24:24
से। वह चलता है केवल धर्म के मार्ग पर।
24:27
यही विदुर नीति का अंतिम और सर्वोच्च
24:30
शिक्षा है। अगले और अंतिम भाग में हम
24:33
जानेंगे कि कैसे विदुर नीति हमें सिखाती
24:35
है धर्म और संतुलन का अर्थ। कैसे एक
24:38
व्यक्ति संसार में रहते हुए भी शांत,
24:40
स्थिर और धर्मनिष्ठ रह सकता है। क्योंकि
24:43
वहीं से शुरू होती है द विज़डम ऑफ इक्वनिटी
24:48
दोस्तों पिछले भाग में हमने जाना कि इच्छा
24:51
और मोह जीवन को कैसे बांध लेते हैं और
24:53
विदुर नीति हमें सिखाती है कि उन्हें
24:55
मारने नहीं बल्कि दिशा देने की आवश्यकता
24:58
है। अब हम विदुर नीति के अंतिम और
25:02
स्तर पर पहुंचे हैं। जहां मनुष्य का
25:05
अदृश्य उद्देश्य केवल सफलता या शांति नहीं
25:08
बल्कि स्थिरता और धर्म होता है। यह वह
25:11
अवस्था है जहां व्यक्ति बाहरी दुनिया में
25:13
रहता है। पर भीतर का संसार पूरे संतुलन
25:17
में होता है। विदु नीति कहती है धर्म वही
25:21
है जो अपने और दूसरों के हित में हो जो
25:23
अपने लाभ के लिए दूसरों को अहित करे वह
25:26
अधर्म है। धर्म का असली अर्थ द ट्रू
25:29
मीनिंग ऑफ धर्म। विधुर नीति हमें बताती है
25:32
कि धर्म कोई किताब में लिखा नियम नहीं है।
25:34
धर्म एक जीवित भावना है जो हर मनुष्य के
25:36
भीतर बसती है। धर्म का अर्थ है जो सच्चा
25:39
हो जो न्याय संगत हो और जो दीर्घकालिक भले
25:43
के लिए हो। विदुर कहते हैं धर्म का पालन
25:46
वही कर सकता है जो स्थिर बुद्धि वाला हो।
25:48
क्योंकि जब भावनाएं हावी होती हैं तब धर्म
25:51
का स्वरूप बदल जाता है। आगे बात करते हैं
25:55
स्थिरता की बुद्धि। द विज़डम ऑफ इक्वनिमिटी
25:59
विदुर नीति कहती है सुख और दुख हानि और
26:02
लाभ मान और अपमान इन सबको सम्मान दृष्टि
26:06
से देखने वाला व्यक्ति ही बुद्धिमान है।
26:09
यह समत्व या इक्वनिमिटी ही जीवन का सबसे
26:12
उच्च रूप है। क्योंकि जीवन कभी एक समान
26:15
नहीं होता। कभी हम ऊपर होते हैं, कभी
26:17
नीचे, कभी सम्मान मिलता है, कभी आलोचना,
26:20
कभी सपने पूरे होते हैं, कभी टूट जाते
26:22
हैं। पर जो व्यक्ति हर परिस्थिति में शांत
26:24
रहना सीख ले, वह परिस्थितियों का गुलाम
26:27
नहीं मालिक बन जाता है। जब युधिष्ठिर को
26:30
सब कुछ खोना पड़ा, राज्य, भाई यहां तक कि
26:33
द्रोपदी फिर भी उन्होंने अपने मन को स्थिर
26:36
रखा। कृष्ण ने बाद में कहा तुम्हारी
26:38
स्थिरता ही तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है।
26:40
विदुर भी यही कहते हैं सुख में जो संयम
26:43
रखे और दुख में जो धैर्य रखे वही सच्चा
26:46
ज्ञानी है। विदुर नीति यह नहीं कहती कि
26:49
जीवन आसान हो गया। वह कहती है जब बुद्धि
26:52
स्थिर होगी तब मुश्किलें भी रास्ता बन
26:55
जाएंगी। विदुर कहते हैं धर्म का पालन तब
26:57
कठिन होता है जब वह हमारे स्वार्थ से
26:59
टकराता है। यही असली परीक्षा है। जो
27:02
व्यक्ति कठिन समय में भी सत्य के साथ रहता
27:04
है वही विदुर के अनुसार सच्चा धर्मात्मा
27:08
है। धृतराष्ट्र अंधे थे केवल आंखों से
27:10
नहीं विवेक से भी। पर विदुर ने उनसे कहा
27:13
था राज्य टिकता नहीं सत्ता से। टिकता है
27:16
न्याय से। और यही बात आज हर व्यक्ति, हर
27:19
संगठन हर देश पर लागू होती है। आज
27:22
कॉर्पोरेट लीडर्स अपने कोड ऑफ एथिक्स की
27:24
बात करते हैं। विदुर नीति कहती है वही तो
27:26
धर्म है जब आप किसी शॉर्ट टर्म लाभ को
27:29
छोड़कर लॉन्ग टर्म भले का निर्णय लेते
27:31
हैं। आप धर्म के मार्ग पर है। विदुर नीति
27:35
की अंतिम शिक्षा आत्म साक्षात्कार है।
27:38
विदुर कहते हैं जो स्वयं को जान लेता है
27:41
वही सबको समझ लेता है। यह आत्मज्ञान कोई
27:44
रहस्यमय चीज नहीं बल्कि स्वयं को देख पाने
27:47
की क्षमता है। अपनी इच्छाओं को, अपनी
27:50
प्रवृत्तियों को, अपनी कमजोरियों को जब
27:52
व्यक्ति खुद को देखने लगता है, तो उसका
27:54
व्यवहार दूसरों के प्रति स्वतः बदल जाता
27:57
है। वह कम जज करता है, ज्यादा समझता है,
27:59
वह कम बोलता है, ज्यादा सुनता है, वह कम
28:02
मांगता है, ज्यादा देता है। विदुर नीति का
28:06
अंतिम संदेश यही है। धर्म और शांति अलग
28:09
नहीं है। बल्कि धर्म ही शांति का मार्ग
28:11
है। धर्म का पालन कोई भारी जिम्मेदारी
28:14
नहीं। यह एक सुखद अवेयरनेस है। जब आप किसी
28:17
के साथ अन्याय नहीं करते, जब आप अपनी
28:20
सफलता में भी विनम्र रहते हैं। जब आप अपने
28:22
शब्दों से किसी का दिल नहीं दुखाते, तब आप
28:25
धर्म का पालन कर रहे होते हो। विदुर नीति
28:29
हमें जीवन का ऐसा ब्लूप्रिंट देती है जो
28:31
आज भी 100% लागू होता है। यह कोई धार्मिक
28:34
ग्रंथ नहीं। यह एक प्रैक्टिकल मैनुअल फॉर
28:36
लाइफ है। इसमें हम पांच महान पाठ मिलते
28:38
हैं। पहला सेल्फ कंट्रोल। अपने मन और
28:40
इंद्रियों पर विजय। दूसरा ह्यूमिलिटी
28:43
ज्ञान के साथ विनम्रता। तीसरा स्पीच एंड
28:46
साइलेंस बोलने और सुनने की कला। चौथा
28:49
डिटचमेंट। इच्छाओं को दिशा देना। पांचवा
28:52
धर्मा स्थिर बुद्धि और न्यायपूर्ण आचरण।
28:55
इन पांचों को अगर हम अपने जीवन में शामिल
28:57
कर लें तो हम केवल सफल नहीं बल्कि शांत और
29:01
पूर्ण हो जाएंगे। धर्म कोई नियम नहीं।
29:03
धर्म वही मार्ग है जो भीतर की शक्ति तक ले
29:07
जाता है। विदुर रीति केवल सुनने के लिए
29:10
नहीं है। यह जीवन जीने की कला है। जो इसे
29:13
अपनाता है वह ना परिस्थितियों से डरता है
29:15
ना इच्छाओं से बनता है। वह बस जीता है।
29:18
शांति संतुलन और धर्म के साथ। थैंक यू।