Supercommunicators – Charles Duhigg
यह किताब बताती है कि supercommunicators पैदा नहीं होते… बनाए जाते हैं।
और communication कोई talent नहीं—एक skill है, जिसे कोई भी सीख सकता है।
इस वीडियो में आप सीखेंगे:
✔ Conversations के 3 असली प्रकार
✔ Deep Questions से लोगों का दिल कैसे खोलें
✔ “Tell me more” की जादुई शक्ति
✔ Conflict को बिना लड़ाई के कैसे संभालें
✔ “Yes, and…” से fights instantly खत्म कैसे हों
✔ Identity conversations का शानदार तरीका
✔ Triple-layer listening model (Words–Emotions–Identity)
✔ Influence और trust कैसे बनता है
✔ Storytelling से लोगों पर असर कैसे डाला जाए
✔ Presence की शक्ति — लोगों को सच में सुना हुआ feel कराना
यह वीडियो आपकी communication style को पूरी तरह बदल सकता है।
बेहतर रिश्ते, ज़्यादा influence, और deep connections — सब कुछ इसी skill पर निर्भर करता है।
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दोस्तों इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। एक वो जो बोलते बहुत हैं और दूसरे वो
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जो कनेक्ट करते बहुत हैं और सच्चाई यह है कि सफलता हमेशा उन लोगों की होती है जो
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कनेक्ट करते हैं जो समझते हैं जो लोगों के दिल तक पहुंचते हैं। यही वजह है कि चार्लस
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डूइक की किताब सुपर कम्युनिकेटर्स दुनिया भर में इतनी फेमस हुई क्योंकि यह किताब
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बताती है कि कम्युनिकेशन एक टैलेंट नहीं एक स्किल है और अगर स्किल है तो कोई भी
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सीख सकता है और यह सीखना आपकी लाइफ को बदल सकता है। अभी हम पार्ट वन में सीखेंगे
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लोगों से बात करते समय हम सबसे बड़ी गलती क्या करते हैं।
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कम्युनिकेशन क्यों टूट जाता है और एक सिंपल रूल कैसे आपकी हर बातचीत को
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इंस्टेंट बेहतर बना सकता है। चार्ल्स डोहेग कहते हैं हम सभी को कम्युनिकेशन की
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प्रॉब्लम नहीं होती। हमें गलत कम्युनिकेशन की प्रॉब्लम होती है। अधिकतर गलतफहमियां
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इसलिए होती है क्योंकि एक इंसान जिस तरह की बातचीत कर रहा है। दूसरा इंसान उस तरह
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का जवाब नहीं दे रहा होता। तो कन्वर्सेशन टूट जाती है। इसलिए कम्युनिकेशन की दुनिया
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का पहला नियम है। पहले यह समझो कि सामने वाला किस तरह की कन्वर्सेशन कर रहा है और
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दुनिया की हर कन्वर्सेशन तीन कैटेगरीज में आती है। पहला प्रैक्टिकल कन्वर्सेशंस। यह
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सिंपल कन्वर्सेशंस होती हैं। यह काम कैसे करना है? कितने बजे निकलना है? लैपटॉप
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क्यों बंद है? यहां इमोशन की जरूरत नहीं होती। यहां स्यूशन चाहिए। प्रॉब्लम तब होती है जब
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प्रैक्टिकल कन्वर्सेशन अचानक इमोशनल बना दी जाती है। जैसे तुमने पूछा खाना बचा है
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और जवाब मिलता है तुम्हें तो बस खाने की ही पड़ी रहती है। प्रैक्टिकल बात इंस्टेंट
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इमोशनल बन गई और मिसअंडरस्टैंडिंग शुरू। दूसरा इमोशनल कन्वर्सेशंस।
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यह बातचीत दिल से आती है। आज मेरा मन बहुत टूटा हुआ है। मुझे लगता है कोई मुझे समझता
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नहीं। मैं बहुत परेशान हूं। यहां इंसान स्यूशन नहीं चाहता। पहले अंडरस्टैंडिंग
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चाहता है। अधिकतर प्रॉब्लम्स इसलिए बढ़ती है क्योंकि इमोशनल बातों में लोग तुरंत
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एडवाइस देने लगते हैं। लेकिन इमोशनल कन्वर्सेशन का पहला नियम है। एडवाइस मत
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दो। पहले इमोशन समझो। यह बात याद रख लेना। आप सिर्फ यह रूल फॉलो कर लो। आपके रिश्तों
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में बदलाव आ जाएगा। तीसरा सोशल कन्वर्सेशंस। यह बहुत सल होती है। यह
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आइडेंटिटी, रिस्पेक्ट और बिलोंगिंग से जुड़ी होती है। एग्जांपल्स ऑफिस में मेरी
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वैल्यू कम है। मुझे लगता है लोग मुझे सीरियसली नहीं लेते। मेरी फैमिली में सब
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मुझे इग्नोर करते हैं। यह बातें सिंपल स्टेटमेंट्स नहीं होती। यह इंसान की
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आइडेंटिटी को टच करती है। इसलिए लोग जल्दी डिफेंसिव हो जाते हैं। यहां अगर आपके
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फैक्ट बेस्ड रिस्पांस दे दिया तो सामने वाला बंद हो जाएगा।
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कम्युनिकेशन की असली समस्या मिसमैच। सोचिए सामने वाला इमोशनल बात कर रहा है और आप
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उसे प्रैक्टिकल स्यूशन दे रहे हो। सामने वाला सोशल इनसिक्योरिटी बता रहा है और आप
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उसे लॉजिक समझा रहे हो। सामने वाला स्यूशन चाहता है और आप एमथी दिखा रहे हो। बस यही
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कम्युनिकेशन मर जाता है। चार्ल्स डिक कहते हैं कम्युनिकेशन फील्स नॉट बिकॉज़ पीपल आर
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रोंग बट बिकॉज़ दे आर स्पीकिंग ऑन डिफरेंट लेवल्स। यानी समस्या इंसानों में नहीं मिस
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मैच में है। सुपर कम्युनिकेटर्स एक सिंपल रूल फॉलो
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करते हैं। मैच द कन्वर्सेशन नॉट द वर्ल्ड्स द लेवल। अगर सामने वाला इमोशनल
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है इमोशनल बनो। अगर प्रैक्टिकल है सॉल्यूशन दो। अगर सोशल इनसिक्योरिटी है तो
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रिस्पेक्ट और वैलिडेशन दो। बस इतना सा बदलाव रिलेशनशिप्स बचा देता है। मैरिज हील
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कर देता है। फ्रेंडशिप रिपेयर कर देता है। ऑफिस पॉलिटिक्स खत्म कर देता है और लोगों
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को इंस्टेंटली ट्रस्ट महसूस कराता है। अब आता है सबसे पावरफुल टेक्निक लूपिंग। यह
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टेक्निक शायद पूरी किताब का दिल है। यह सिर्फ सुनना नहीं है। यह ऐसा सुनना है
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जिससे सामने वाले को फील हो हां मुझे सच में सुना जा रहा है। लूपिंग का मतलब है
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बातचीत को एक लूप की तरह चलाना। जब तक सामने वाला शांत और अंडरस्टुड फील ना कर
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ले। इसमें तीन सिंपल स्टेप्स हैं। स्टेप वन आस्क सवाल पूछना। अगर सामने वाला कुछ
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बोल रहा है तो उसे गहराई से समझने के लिए एक छोटा सा सवाल पूछो। तुम्हें सबसे
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ज्यादा किस बात ने परेशान किया? यह फीलिंग कब से है या तुम यह कह रहे हो कि सवाल
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पूछना मैं तुम्हारी बात को सीरियसली ले रहा हूं का सबसे स्ट्रांग सिग्नल है।
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स्टेप टू रिफ्लेक्ट उसकी बात वापस कहना यह बहुत फाइन लेकिन पावरफुल चीज है। सामने
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वाला जो कह रहा है उसे अपने वर्ड्स में रिपीट करो। तो तुम तो तुम्हें ऐसा फील हुआ
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कि तो तुम कह रहे हो कि तुम्हें लगा कि यह करने से सामने वाला तुरंत शांत हो जाता
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है। क्यों? क्योंकि हम सब की सबसे गहरी नीड है मुझे समझा जाए। रिफ्लेक्ट करने से
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उसकी बॉडी टेंशन ड्रॉप हो जाती है। माइंड रिलैक्स हो जाता है और दिल खुल जाता है।
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स्टेप थ्री वैलिडेट भावना को स्वीकार करना। वैलिडेशन सिंपल है। हां, ऐसा फील
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होना नॉर्मल है। तुम्हारी बात समझ में आती है। ऐसी सिचुएशन में किसी को भी ऐसा
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चलेगा, ऐसा लगेगा। वैलिडेशन मतलब रिस्पेक्ट के साथ अंडरस्टैंडिंग। वैलिडेशन
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यह नहीं कहती कि सामने वाला सही है या गलत। वैलिडेशन यह कहती है तुम इंसान हो और
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तुम जो फील कर रहे हो वह लेजिट है और यह सुनकर सामने वाला इंस्टेंटली सेफ महसूस
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करता है। सेफ लोग खुलते हैं। अनसेफ लोग बंद हो जाते हैं। यही पूरी किताब का एक
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कोर मैसेज है। अगर आप यह तीन स्टेप्स फॉलो करते हो तो
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लूपिंग असली कमाल आता है। एंड दीज़ आर आस्क, रिफ्लेक्ट एंड वैलिडेट। तो सामने
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वाला चाहे कितना भी डिफेंसिव एंग्री इमोशनली अपसेट हो 5 मिनट में शांत हो जाता
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है क्योंकि पीपल डोंट फाइट टू विन पीपल फाइट बिकॉज़ दे फील अनर्ड लूपिंग उस हर्ड
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की कमी को पूरा करता है। अब एक छोटी कहानी अर्जुन नाम का एक लड़का
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अपने पिता से हमेशा लड़ता रहता था। हर बात पर गुस्सा हर बात पर मिसअंडरस्टैंडिंग।
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एक दिन उसने एक्सपेरिमेंट किया। उसने कहा आज मैं सिर्फ एक काम करूंगा। पापा की
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बातों को लूप करूंगा। डैड बोले तुम कभी घर के काम को सीरियसली नहीं लेते। अर्जुन
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आपको लगता है कि मैं घर कोेंस नहीं देता। है ना? डैड हां और इससे मुझे लगता है कि
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तुम जिम्मेदार नहीं हो रहे। अर्जुन अच्छा यह बात समझ सकता हूं। मैं सुधार सकता हूं।
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पिता रुक गए। पहली बार शांत हो गए और बोले ठीक है मैं भी कामली बोलने की कोशिश
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करूंगा और उस दिन के बाद उन दोनों की लड़ाई 70% तक कम हो गई क्यों क्योंकि जिस
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दिन एक व्यक्ति सही लेवल पर बात करना सीख लेता है दूसरा व्यक्ति खुद ब खुद बदलने
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लगता है तो अभी तक जो हमने डिस्कस किया उसका सार कि पहचानों की कन्वर्सेशन किस
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तरह की है प्रैक्टिकल इमोशनल या सोशल फिर उसी तरह रिसोंड करो और जब सामने वाला
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गुस्से में हो, दुख में हो, कंफ्यूज हो तो लूपिंग इस्तेमाल करो। आस्क, रिफ्लेक्ट
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वैलिडेट या उससे भी बड़े फाइट्स यह उससे भी बड़े फाइट्स डिॉल्व कर देता है जो सालों से
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चल रहे हो। और यही है सुपर कम्युनिकेशन की शुरुआत। दोस्तों, अभी तक हमने सीखा कि
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कम्युनिकेशन की शुरुआत कहां से होती है। किस तरह की कन्वर्सेशन चल रही है और कैसे
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उसे लेवल पर रिसोंड करना चाहिए। लेकिन अब
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हम उस टेरिटरी में प्रवेश कर रहे हैं जहां कम्युनिकेशन नॉर्मल से एक्स्ट्राऑर्डिनरी बन जाता है। यह वह हिस्सा है जहां लोग
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आपको सिर्फ सुनते नहीं बल्कि आपको फील करते हैं। जहां आप सिर्फ वर्ड्स नहीं
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बोलते बल्कि लोगों के दिलों में उतरने लगते हैं। यहीं से शुरू होती है डीप
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कनेक्शन की कला। चैप्टर वन चार्ल्स डोहेग कहते हैं अगर
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कम्युनिकेशन को एक नदी मानो तो डीप क्वेश्चंस उस नदी के अंदर बहने वाला रियल
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वाटर है। ज्यादातर लोग नॉर्मल सरफेस लेवल क्वेश्चंस पूछते हैं। कैसे हो? क्या चल
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रहा है? सब ठीक है और सामने वाला भी उतना ही सुपरफिशियल जवाब देता है। लेकिन जब आप
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डीप क्वेश्चंस पूछते हो लोग खुलने लगते हैं। उनका ट्रस्ट एक्टिवेटेड होता है और
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आपको एक्सेस मिलता है उनके रियल इमोशंस का। डीप क्वेश्चंस क्या होते हैं? डीप
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क्वेश्चंस वो होते हैं जिनका जवाब फैक्ट्स नहीं होता बल्कि फीलिंग्स होती हैं।
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एक्सपीरियंस होता है, स्टोरी होती है। एग्जांपल्स पिछले एक महीने में कौन सी चीज
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ने आपको सबसे ज्यादा परेशान या बदल दिया? आपके लाइफ में अभी सबसे बड़ा चैलेंज क्या
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चल रहा है? ऐसी कौन सी बात है जो आप कह नहीं पा रहे हैं लेकिन कहना चाहते हो? यह
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सवाल दिखाते हैं कि आप सामने वाले को सीरियसली जानना चाहते हैं और लोग उन लोगों
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को पसंद करते हैं जो उन्हें सच में समझना चाहते हैं।
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क्यों डीप क्वेश्चंस इंस्टेंटली कनेक्शन बना देते हैं? क्योंकि हर इंसान चाहता है
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कि उसे किसी की आंखों में ऐसा इंसान मिले जो उसे जज ना करे जो उसे सुनने को तैयार
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हो जो उसकी स्टोरी सुनकर भाग ना जाए। जब आप डीप सवाल पूछते हो, लोग फील करते हैं।
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यह मुझे समझना चाहता है। यह मेरी बात को सीरियसली ले रहा है। मैं यहां सेफ हूं।
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सेफ्टी मतलब ओपननेस और ओपननेस का मतलब ट्रस्ट और ट्रस्ट का मतलब रिलेशनशिप।
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कम्युनिकेशन इन तीन वर्ड्स पर ही तो चलता है। लेकिन क्या हर समय डीप सवाल पूछना सही
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है? नहीं। डीप क्वेश्चंस तभी काम करते हैं जब सामने वाला इमोशनली रेडी हो। इसलिए एक
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छोटा सिग्नल ध्यान रखना। अगर सामने वाला छोटे आंसर्स दे रहा है, वह रेडी नहीं। अगर
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सामने वाला थोड़ा पॉज लेकर जवाब दे रहा है, वह खुल रहा है। अगर सामने वाला खुद
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डिटेल में जा रहा है, डीप लेवल बिल्ड हो चुका है। यह कज पहचानने वाले लोग ही सुपर
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कम्युनिकेटर्स बनते हैं। चैप्टर टू द सीक्रेट ऑफ टेल मी मोर। अब आता है वह
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जुदाई फ्रेज जो कम्युनिकेशन का सबसे बड़ा शॉर्टकट है। यह फ्रेज है। टेल मी मोर। और
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बताइए फिर क्या हुआ? आप ऐसा क्यों फील करते हो? यह सिंपल लग सकता है, लेकिन इसका
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पावर बहुत बड़ा है। क्यों? क्योंकि यह सामने वाले को परमिशन देता है कि वह खुलकर
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बोले, वह अपने अंदर की बात बाहर लाएं। आप कोई भी कन्वर्सेशन लें, रिलेशनशिप, जॉब,
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फ्रेंडशिप, स्ट्रेस। जब आप टेल मी मोर कहते हो तो सामने वाले की टोन बदल जाती
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है। वह आराम से बोलने लगता है। मतलब आप उसे इंटरप्ट नहीं कर रहे। आप उसे जज नहीं
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कर रहे। आप जेनुइनली इंटरेस्टेड हो। और यही लोग चाहते हैं। चैप्टर थ्री इमोशनल
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ट्रुथ निकालने का तरीका। सुपर कम्युनिकेटर्स सिर्फ वर्ड्स नहीं
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सुनते। वे वर्ड्स के पीछे का इमोशन सुनते हैं। एग्जांपल सामने वाला बोले ऑफिस में बहुत
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सर दर्द होता है। नॉर्मल लिसनर क्यों कौन सा काम है? सुपर कम्युनिकेटर ऑफिस की कौन
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सी बात आपको इमोशनली ट्रेन करती है? यह सवाल इंस्टेंटली रूट पर पहुंच जाता है
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क्योंकि ऑफिस का स्ट्रेस एक सरफेस स्टेटमेंट है। वास्तविकता समस्या होती है।
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अनंडरवैल्यूड फील करना, टीम से डिस्कनेक्टेड फील करना, बॉस से फियर, वर्क
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लोड, इनसिक्योरिटी, अनफुलफिल्ड एक्सपेक्टेशंस। सुपर
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कम्युनिकेटर्स इमोशनल ट्रुथ तक पहुंचना सीखते हैं। बिना सामने वाले पर दबाव डाले।
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चैप्टर फोर रिलेटबिलिटी अपनी छोटी वनरेबिलिटी शेयर करो। यह किताब में एक
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बड़ा लेसन है। अगर आप चाहते हैं कि लोग खोलें तो आपको पहले थोड़ा खुलना पड़ेगा।
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लेकिन ध्यान रहे यहां वलनेरेबिलिटी ओवरडोज नहीं यह कंट्रोलोल्ड वनरेबिलिटी है।
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उदाहरण मैंने भी कभी ऐसा फील किया था। मैं समझ सकता हूं मेरे साथ में कुछ ऐसा हुआ
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था। मैं परफेक्ट नहीं हूं। मैं भी सीख ही रहा हूं। यह लाइंस सामने वाले को सेफ फील
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कराती हैं। वह सोचता है अरे यह इंसान तो मेरे जैसा ही है और कनेक्शन बन जाता है।
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रियल कनेक्शन परफेक्शन से नहीं इमपरफेक्शन से बनता है। चैप्टर फाइव मिररिंग बातचीत
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को फ्लो में रखना। मिररिंग मतलब फाइन तरीके से सामने वालों की बातों, इमोशंस और
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टोन को रिफ्लेक्ट करना। एग्जांपल्स वह स्लोली बोल रहा है। आप भी स्लोली बोलो। वह
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सॉफ्टली बोल रहा है। आप भी सॉफ्ट टोन रखो। वह पॉज ले रहा है। आप भी पॉज अलव करो। वह
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इमोशनल है। आप भी काम और रिस्पेक्टफुल बनो। यह टेक्निक इतनी सल है कि लोग नोटिस
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नहीं करते लेकिन फील जरूर करते हैं। मिररिंग से सामने वाला फील करता है। यह
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इंसान मेरी वेवलेंथ पर है। और जब वेवलेंथ मैच हो जाती है। कन्वर्सेशन डीप हो जाती
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है। चैप्टर सिक्स स्पॉटलाइट स्विच कम्युनिकेशन
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में सबसे बड़ा खतरा है कि हम स्पॉटलाइट अपने ऊपर रोक लेते हैं। सामने वाला बोले
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यार आज काम बहुत स्ट्रेसफुल था। हम बोल दे हां हां मेरा भी था। मेरे ऑफिस में और
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कन्वर्सेशन का पूरा स्पॉटलाइट खुद पर ले लें। सुपर कम्युनिकेटर्स ऐसा नहीं करते।
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वे स्पॉटलाइट स्विच करते हैं। स्ट्रेस किस बात का था? क्या ऐसा अक्सर होता है? इसका
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सबसे मुश्किल हिस्सा क्या लगा? तुम क्या चेंज करना चाहोगे? उनका इंटेंशन बात को
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अपने ऊपर लाना नहीं होता। उनका इंटेंशन कन्वर्सेशन को सामने वाले पर सेंटर्ड रखना
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होता है और यही लोगों की को सबसे ज्यादा पसंद आता है। चैप्टर सेवन साइलेंस का
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जादू। साइलेंस कम्युनिकेशन का सबसे अंडररेटेड टूल है। लोग सोचते हैं साइलेंस ऑकवर्ड है
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लेकिन असल में साइलेंस मीनिंगफुल है। जब आप एक सवाल पूछकर थोड़ा पॉज लेते हैं तो
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सामने वाला ओपन होने लगता है। क्योंकि साइलेंस एक सिग्नल है। मैं जल्दी में नहीं
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हूं। मैं तुम्हें सुनने आया हूं। तुम जितना चाहो उतना बोलो। साइलेंस मतलब
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स्पेस। स्पेस का मतलब ट्रस्ट और ट्रस्ट का मतलब कनेक्शन। और यही सुपर कम्युनिकेटर्स
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का फाउंडेशनल स्किल है। अब एक पावरफुल स्टोरी सुनाता हूं आपको। एक कॉर्पोरेट
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ऑफिस में दो कोलीग्स थे रोहन और मीरा। मीरा बहुत रिजर्व थी। वह ज्यादा बात नहीं
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करती थी और सबको लगता था वह रड है। एक दिन रोहन ने उसे कैफेरिया में अकेला देखा और
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कैजुअली पूछा। आज आप बहुत क्वाइट लग रही हो। सब ठीक है? मेरा हां बस थोड़ा टफ दिन
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है। नॉर्मल लोग यहीं रुक जाते। राहुल ने डीप क्वेश्चन पूछा। क्या चीज टफेस्ट लगी
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आज? मेरी आवाज थोड़ी धीमी हो गई। उसने कहा घर से कुछ टेंशन है। बस वही रोहन। अगर आप
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बताना चाहो तो मैं सुनने के लिए हूं। मीरा धीरे-धीरे खुलने लगी। 10 मिनट में वह रो
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चुकी थी। और पहली बार उसने किसी कोलीग को अपने फैमिली इशज़ बताए। उस दिन एक सिंपल
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कन्वर्सेशन फ्रेंडशिप में बदल गई। क्यों? क्योंकि किसी ने उसे सुपरफिशियल लेवल पर
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नहीं डीप लेवल पर सुना। और यही कनेक्शन का असली मीनिंग है।
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अभी हमने सीखा डीप क्वेश्चंस। टेल मी मोर। इमोशनल ट्रुथ पहचानना, कंट्रोल
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वनरेबिलिटी, मिररिंग, स्पॉटाइट स्विच, साइलेंस का उपयोग। यह सभी टेक्निक्स सिंपल
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है। लेकिन इनका इफेक्ट बहुत प्रोफाउंड है। अगर आप इन सात स्किल्स को प्रैक्टिस कर लो
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तो लोग आपको सिर्फ पसंद नहीं करेंगे। वे आपको ट्रस्ट करेंगे। आपकी बात मानेंगे और
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आपकी कन्वर्सेशंस मेमोरेबल बन जाएंगी। दोस्तों अब तक हमने समझा कि कम्युनिकेशन
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कैसे शुरू होता है। कैसे डीप कनेक्शन बनता
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है और कैसे लोग असली दिल की बातें सिर्फ तब खोलते हैं जब वे सेफ महसूस करते हैं।
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लेकिन अब इस किताब का सबसे इंपॉर्टेंट हिस्सा शुरू हो रहा है। कठिन कन्वर्सेशंस
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कैसे संभालें? लड़ाई को बातचीत में कैसे बदले? डिफेंसिव इंसान को कैसे शांत करें?
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गलतफहमी को कैसे डिॉल्व करें? आइडेंटिटी बेस्ड कन्फ्लिक्ट्स को कैसे समझें?
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यह पार्ट कम्युनिकेशन का युद्ध क्षेत्र है। जहां मिसअंडरस्टैंडिंग्स पैदा होती
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हैं। जहां रिलेशनशिप्स टूटती हैं। जहां फाइट्स एक्सप्ललोड होती है। लेकिन सुपर
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कम्युनिकेटर्स इन्हें समझदारी और सॉफ्टनेस सॉफ्टनेस से संभालते हैं। अभी हम सीखेंगे
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सबसे पावरफुल कम्युनिकेशन स्ट्रेटजीस जो किसी भी टेंस सिचुएशन को एक शांत
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मीनिंगफुल बातचीत में बदल सकती हैं। यस एंड टेक्निक
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बातचीत में सबसे बड़ा कॉमन ट्रिगर है खुद को काटा हुआ महसूस करना और यह सबसे तेजी
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से होता है एक छोटे से शब्द से बट एग्जांपल्स हां लेकिन तुम एक्सरेट कर रहे
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हो हां लेकिन तुम्हारी गलती भी थी हां लेकिन मैं कुछ और कहना चाह रहा था अगर आप
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ध्यान दें हर बट सामने वाले को यह फील कराता है मेरी बात को रिजेक्ट किया गया और
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जैसे ही रिजेक्शन आता है डिफेंसिवनेस उड़ जाती है। इसीलिए चार्लस डिक बताते हैं
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सुपर कम्युनिकेटर्स एक पावरफुल फार्मूला इस्तेमाल करते हैं। यस एंड यह सिंपल लगता
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है लेकिन इसका इफेक्ट बहुत बड़ा है। एग्जांपल्स हां लेकिन तुम हर बार
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ओवररिएक्ट करते हो। इसको ऐसे नहीं बोलना। इसको बोलना है हां।
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और मैं समझना चाहता हूं कि इस बार तुम्हें किस बात ने हर्ट किया।
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हां लेकिन मैं बिजी था। यह गलत है और सही है। हां, और मैं तुम्हें पहले बताकर इसे
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अवॉइड कर सकता था। गलत बात। हां, लेकिन यह प्रैक्टिकल नहीं है। सही बात। हां। और चलो
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देखते हैं इसे वकेबल कैसे बना सकते हैं। यस। एंड शब्दों से ज्यादा एक एटीट्यूड है।
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तुम्हारी बात वैलिड है। मैं भी कंट्रीब्यूट करना चाहता हूं। हम दोनों एक टीम है। पर जैसे ही यह वाइब आती है, फाइट
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रेयर हो जाती है। अब चलते हैं डिफेंसिवनेस को मेल्ट करने के
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सीक्रेट पर। पीपल डिफेंसिव कब होते हैं? जब उन्हें लगता है मुझे समझा नहीं जा रहा।
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मुझ पर अटैक हो रहा है। मुझ पर ब्लेम लगाया जा रहा है। मेरी बात को वैल्यू नहीं
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दी गई। सुपर कम्युनिकेटर्स इस डिफेंसिवनेस को तीन सिंपल स्टेप्स से मेल्ट करते हैं।
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स्टेप वन लेबल द इमोशन। मुझे लग रहा है हम दोनों थोड़ा डिफेंसिव हो रहे हैं। हम शायद
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बोलने से ज्यादा प्रोटेक्ट करने में लगे हैं। जैसे ही आप इमोशन को नेम देते हो वह
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शांत होने लगता है। क्यों? क्योंकि नेमिंग रिड्यूसेस इंटेंसिटी स्टेप टू स्लो डाउन
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धीमी आवाज थोड़ा पॉज टोन माइक्रोसॉफ्ट कर देना। यह इंस्टेंट नर्वस सिस्टम को
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रिलैक्स करता है और आर्गुमेंट की हीट कम हो जाती है। स्टेप थ्री कॉमन इंटेंट खोजो।
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सुपर कम्युनिकेटर कभी मैं वर्सेस तुम की लड़ाई नहीं बनाता। वह कन्वर्सेशन को हम
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वर्सेस प्रॉब्लम बना देता है। एग्जांपल्स हम दोनों चाहते हैं कि यह प्रॉब्लम सॉल्व
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हो। हम दोनों चाहते हैं कि रिस्पेक्ट बना रहे। हम दोनों चाहते हैं कि फ्यूचर में यह
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रिपीट ना हो। जैसे ही सामने वाला सुनता है कि आप उसका एनिमी नहीं उसका पार्टनर हो।
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डिफेंसिवनेस मेल्ट हो जाती है। अब बात करते हैं कॉन्फ्लिक्ट को
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ट्रांसफॉर्म करना। कॉमन लोग फाइट्स अवॉइड करते हैं। सुपर कम्युनिकेटर्स फाइट्स
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ट्रांसफॉर्म करते हैं। चार्लस डिक कहते हैं प्रॉब्लम प्रॉब्लम्स इग्नोर करने से
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खत्म नहीं होती। लेकिन समझ से ट्रांसफॉर्म हो जाती है। तो ट्रांसफॉर्मेशन कैसे? इसके
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लिए एक पावरफुल थ्री स्टेप फार्मूला है। स्टेप वन मीनिंग पर फोकस करो। वर्ड्स पर
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नहीं। हर फाइट के पीछे असली वजह वर्ड्स नहीं होते। वर्ड्स के पीछे का मीनिंग होता
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है। एग्जांपल तुम कभी टाइम पर नहीं आते। वर्ड्स आपको अटैक लगेंगे। लेकिन मीनिंग है
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जब तुम टाइम पर नहीं आते तो मुझे कम महत्व दिया गया फील होता है। अगर मीनिंग पकड़
22:30
लिया फाइट खत्म। स्टेप टू प्रॉब्लम को रिफ्रेम करो। इंस्टेड ऑफ तुम गलत हो। सुपर
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कम्युनिकेटर्स बोलते हैं हम इसे कैसे बेहतर कर सकते हैं? इंस्टेड ऑफ तुम
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रिस्पांसिबल नहीं। वह बोलते हैं हम दोनों इसे स्मूदर कैसे बना सकते हैं? यह शिफ्ट
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प्रॉब्लम सॉल्वर मोड एक्टिवेट करता है और फाइट पार्टनर मोड में बदल जाती है। स्टेप
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थ्री फाइट को पॉज करके दोबारा शुरू करना सीखो। सुपर कम्युनिकेटर्स जानते हैं कि
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हीटेड माइंड सही निर्णय नहीं लेता। तो वह बोलते हैं चलो 10 मिनट ब्रेक लेते हैं।
23:09
फिर काम बात करते हैं यह स्मॉल पॉज 90% फाइट्स को इमोशनल डैमेज से बचा लेता है।
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पॉज वीकनेस नहीं है। पॉज मैच्योरिटी है। अब बात करते हैं आइडेंटिटी कन्वर्सेशंस
23:24
यानी सबसे कठिन बातचीत। कभी-कभी फाइट फैक्ट्स की वजह से नहीं होती। आइडेंटिटी
23:30
की वजह से होती है। आइडेंटिटी कन्वर्सेशन तब होती है जब कोई इंसल्ट फील करे, कोई
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लेसेंट फील करे, कोई अनहर्ट फील करे, कोई डिसरिस्पेक्ट फील करे, कोई इनसिक्योर हो,
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कोई खुद को अनवर्दी महसूस करे। दीज़ कन्वर्सेशंस
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आर वेरी ट्रिकी। क्योंकि ऐसी फाइट्स में लॉजिक काम नहीं करता। आप लॉजिक दोगे,
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सामने वाला और हर्ट हो जाएगा। सुपर कम्युनिकेटर्स आइडेंटिटी बेस्ड
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कॉन्फ्लिक्ट में एक पावरफुल तरीका यूज करते हैं। आइडेंटिटी को वैलिडेट करो।
24:06
आर्गुममेंट को लेटर करो। एग्जांपल्स तुम्हारी जगह कोई भी ऐसा फील करता।
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तुम्हारी वैल्यू इस घर में बहुत बड़ी है। मैं तुम्हें हल्के में नहीं ले रहा। मैं
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रिस्पेक्ट के साथ बात करना चाहता हूं। तुम इंपॉर्टेंट हो और मैं चाहता हूं कि तुम
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कंफर्ट फील करो। आइडेंटिटी सिक्योर होते ही फाइट शांत हो जाती है। अब चलते हैं
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थ्री लेयर लिसनिंग की तरफ। सुपर कम्युनिकेटर्स सिर्फ वर्ड्स नहीं सुनते। वे तीन लेयर्स सुनते हैं। लेयर वन वर्ड्स
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क्या कहा जा रहा है? लेयर टू इमोशन किस भावना से कहा जा रहा है? लेयर थ्री
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आइडेंटिटी कौन सी इनसिक्योरिटी छुपी है? एग्जांपल सामने वाला बोले तुमने मुझसे
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पूछकर क्यों नहीं किया? सरफेस मीनिंग पूछना चाहिए था। इमोशन, हर्ट, इग्नर्ड या
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इनसिक्योर, आइडेंटिटी। आई वांट टू मैटर। अगर आप सिर्फ वर्ड्स पर जवाब दोगे फाइट।
25:06
अगर आइडेंटिटी से जुड़कर रिसोंड करोगे तो स्यूशन। रिप्लाई तुम्हारी बात वैलिड है।
25:12
तुम्हारी ओपिनियन मेरे लिए इंपॉर्टेंट है। मैं नेक्स्ट टाइम तुम्हें जरूर इनवॉल्व करूंगा। बस फाइट डिॉल्व।
25:20
अब चलते हैं आगे। द डबल मीनिंग प्रॉब्लम। नियरली हर हीटेड कन्वर्सेशन में एक बड़ा
25:27
इल्लुजन होता है। सामने वाला एक बात बोलता है। हम उसका मीनिंग कुछ और समझते हैं और
25:33
हम लड़ाई शुरू कर देते हैं। सुपर कम्युनिकेटर्स इस भ्रम को पहचानते हैं। वे बताते हैं हर बात का एक विज़िबल मीनिंग
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होता है। और एक हिडन मीनिंग एग्जांपल तुम कभी मेरी बात नहीं सुनते। विज़िबल मीनिंग
25:47
यू डोंट लिसन। हिडन मीनिंग मैं अकेला फील कर रहा हूं। मुझे समझ मुझे समझा नहीं गया।
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मैं इग्नोर फील कर रहा हूं। अगर आप वििबल मीनिंग पर रिएक्ट करोगे फाइट। अगर हिडन
26:00
मीनिंग समझ लोगे तो कनेक्शन। अब हाउ से व्हाई में शिफ्ट करना। कॉमन लेंथ पूछते
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हैं हाउ डिड इट हैपन? सुपर कम्युनिकेटर्स पूछते हैं यह क्यों इतना मैटर करता है?
26:13
क्योंकि हर कंफ्लिक्ट के पीछे एक इमोशनल व्हाई होता है। एग्जांपल व्हाई डड दिस
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हर्ट यू? व्हाई डिड दिस मैटर टू यू? व्हाई इज दिस सोेंट फॉर यू? व्हाई फीलिंग्स खोल
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देता है और फीलिंग्स फाइट को खत्म कर देती हैं। अब एक पावरफुल स्टोरी डिस्कस करते
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हैं। अमित और नेहा की मैरिज में लगातार आर्गुममेंट्स होने लगे। हर बात में
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गुस्सा, हर बात में हर्ट, हर बात में ब्लेम। एक दिन अमित ने सोचा चलो आज सिर्फ
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सुनते हैं रिसोंड नहीं करेंगे। बस सुनेंगे। नेहा ने कहा तुम कभी मेरी इमोशंस
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को सीरियस नहीं लेते। पहले अमित बोलता क्या बात कर रही हो? मैं सब करता हूं।
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लेकिन इस बार उसने पूछा तुम्हें ऐसा क्यों फील होता है? नेहा रोने लगी और बोली क्यों? जब मैं बोलती हूं तुम इंस्टेंटली
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स्यूशन दे देते हो और ऐसा लगता है कि मेरी बात इंपॉर्टेंट नहीं है। फिर अमित ने
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क्वाइटली कहा, "मुझे सच में सॉरी है। तुम्हारी फीलिंग्स वैल्यूुएबल है। मैं सुनने के लिए तैयार हूं। और सालों की
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लड़ाई एक रात में हील हो गई। क्यों? बिकॉज़ ही वैलिडेटेड द आइडेंटिटी। नॉट आर्ग्यू द
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वर्ड्स। दिस इज सुपर कम्युनिकेशन। अभी हमने सीखा यस एंड टेक्निक।
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डिफेंसिवनेस मेल्ट करने के तीन स्टेप्स। कॉन्फ्लिक्ट ट्रांसफॉर्मेशन मीनिंग वर्सेस
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वर्ड्स आइडेंटिटी कन्वर्सेशंस ट्रिपल लेयर लिसनिंग वाई का जादू साइलेंस एंड
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सॉफ्टनिंग और इमोशनल ट्रुथ पकड़ना यह स्किल्स आपकी फाइट्स आर्गुमेंट्स मिसअंडरस्टैंडिंग्स सबको खत्म कर देते
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हैं। कम्युनिकेशन का असली जादू यही है सामने वाले को सेफ अंडरस्टुड और
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रिस्पेक्टेड फील करवाना। दोस्तों, अब हम इस किताब के सबसे अंतिम और
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सबसे पावरफुल हिस्से में पहुंच गए हैं। पार्ट वन में हमने सीखा कन्वर्सेशन की पहचान। पार्ट टू में डीप कनेक्शन की कला।
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पार्ट थ्री में कॉन्फ्लिक्ट को ट्रांसफॉर्म करने का स्किल। अब पार्ट फोर आपके कम्युनिकेशन को एक नए स्तर पर ले
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जाएगा। इनफ्लुएंस, लॉन्ग टर्म ट्रस्ट, स्टोरी कम्युनिकेशन, परपसफुल कन्वर्सेशंस,
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इमोशनल प्रेजेंस और वो ब्लूप्रिंट जिससे आप सच में सुपर कम्युनिकेटर बन जाते हैं।
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यह पार्ट आपकी कम्युनिकेशन को कंप्लीट करता है। स्टोरीज इनफ्लुएंस का सबसे बड़ा हथियार।
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चार्ल्स डिक कहते हैं, लोग लॉजिक से नहीं बदलते। लोग स्टोरी से बदलते हैं क्योंकि
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लॉजिक दिमाग को कन्वस करता है लेकिन स्टोरी दिल को कनेक्ट करती है। अ फैक्ट
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सेस एक्सरसाइज जरूरी है। अ स्टोरी सेस मैं एक दोस्त को जानता हूं जिसे वॉकिंग ने
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डिप्रेशन से निकाला। फैक्ट इंफॉर्मेशन देता है। स्टोरी ट्रांसफॉर्मेशन करती है।
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सुपर कम्युनिकेटर्स हर इंपॉर्टेंट बात को किसी स्मॉल रिलेटेबल स्टोरी के जरिए बताते
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हैं। क्यों? क्योंकि स्टोरी इमेजिनेशन एक्टिवेट करती है। ह्यूमन ब्रेन में
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डोपामिन रिलीज करती है। मैसेज को मेमोरेबल बनाती है। फीलिंग्स पैदा करती है। ट्रस्ट
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बढ़ाती है। इसलिए लीडर्स, स्पीकर्स, नेगोशिएटर्स सब स्टोरीज का इस्तेमाल करते
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हैं। अगर आप चाहते हो आपके वर्ड्स इंपैक्ट करें तो मैसेज को स्टोरी फॉर्म में रैप
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करके बोलो। अब बात करते हैं कैसे बनाएं एक प्रभावशाली स्टोरी। स्टोरी परफेक्ट होने
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की जरूरत नहीं। बस तीन चीजें चाहिए। अ स्ट्रगल तब मुझे लगा मैं टूट जाऊंगा। अ
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रियलाइजेशन फिर मैंने कुछ समझा अ चेंज और उस पल से सब बदल गया। बस यह तीन बातें
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किसी भी छोटे एक्सपीरियंस को पावरफुल बना देती है।
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अब बात करते हैं प्रेजेंस। सुपर कम्युनिकेटर्स का गुप्त हथियार। प्रेजेंस का मतलब है उस पल में पूरा होना। आज के
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समय में लोग फिजिकली तो एक दूसरे के सामने होते हैं लेकिन मेंटली कहीं और फोन की
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नोटिफिकेशन, माइंड की डिस्ट्रक्टबिलिटी, स्ट्रेस की आवाज लेकिन एक ऐसा इंसान जो
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पूरे ध्यान से पूरी उपस्थिति के साथ बात सुने लोग उसे इमीडिएटली ट्रस्टवर्दी मानते
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हैं। प्रेजेंस का मतलब है आप इंटरप्ट नहीं कर रहे। आप फोन की तरफ नहीं देख रहे। आपका
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बॉडी काम है। आपकी आइज कनेक्ट कर रही है। आपकी टोन स्टेडी है। आप जल्दबाजी में नहीं
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हो। सामने वालों को को जगह दे रहे हो। आप यह चीज सीख लो तो आपकी पर्सनालिटी पहले
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जैसी नहीं रहेगी। प्रेजेंस क्या देता है? सामने वाले को सेफ्टी। आपको क्लेरिटी
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दोनों को ट्रस्ट कन्वर्सेशन गुड डेप्थ और रिलेशनशिप को स्ट्रेंथ प्रेजेंस
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कम्युनिकेशन की अलग दुनिया है और सुपर कम्युनिकेटर्स इसी दुनिया में ऑपरेट करते
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हैं। अब बात करते हैं द आर्ट ऑफ स्मॉल एग्रीमेंट्स। इनफ्लुएंस का सबसे बड़ा
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सीक्रेट है छोटी-छोटी सहमतियां बनाना। स्मॉल एग्रीमेंट कैसे होते हैं? एग्जांपल
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क्या मैं 1 मिनट कुछ कह सकता हूं? वह बोलेगा हां क्या मैं इसे एक सिंपल
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एग्जांपल से एक्सप्लेन करूं। वह बोलेगा हां क्या मैं समझ रहा हूं कि आप क्या कहना
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चाह रहे हैं? वह बोलेगा हां यह छोटी-छोटी हां आपकी बात के लिए दिमाग का गेट खोल
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देती है क्योंकि दिमाग रेजिस्ट नहीं करता जब वह पहले से एग्री कर रहा हो। इसलिए
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पावरफुल कम्युनिकेटर्स पहले छोटे गोल्स अचीव करते हैं। फिर मेन पॉइंट रखते हैं।
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अब बात करते हैं क्वेश्चंस जो सामने वाले की सोच बदल देते हैं। सुपर कम्युनिकेटर्स
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सवाल ऐसे पूछते हैं जो सोच को खोल दें। उदाहरण अगर यह सॉल्व हो जाए तो आपकी लाइफ
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में क्या इंप्रूवमेंट आएगा? आप किस आउटकम को सबसे ज्यादा चाहते हो? आपके हिसाब से
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आइडल स्यूशन कैसा दिखता है? आपके लिए सबसे बड़ा वैल्यू क्या है? यह सवाल सामने वाले
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के दिमाग को प्रॉब्लम से स्यूशन पर शिफ्ट कर देते हैं। इस शिफ्ट को कहते हैं माइंड
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अनलॉकिंग। एक अनलॉक माइंड इनफ्लुएंस के लिए ओपन होता है। अब चलते हैं इमोशनल
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फ्रेवली फ्रेमिंग। बात कैसे कही जाए। सुपर कम्युनिकेटर्स जानते हैं कि हमेशा यह
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मायने नहीं रखता कि आप क्या कह रहे हैं। असल में यह मायने रखता है आप कैसे कह रहे
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हैं। इसको कहते हैं इमोशनल फ्रेमिंग। एग्जांपल्स तुमने मुझे हर्ट किया कि जगह मुझे उस पल
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में थोड़ा हर्ट फील हुआ। तुम हमेशा गलत सोचते हो कि जगह मुझे लगता है हम दोनों की
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बातें मैच नहीं हुई। यह काम गलत हुआ है कि जगह हम इसे और बेहतर
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कैसे कर सकते हैं? फ्रेमिंग बदलते ही इमोशंस मेल्ट हो जाते हैं और लोग आपकी बात
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डिफेंस के साथ नहीं अवेयरनेस के साथ सुनते हैं। चार्लस टू हेग एक खूबसूरत कांसेप्ट
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बताते हैं। ट्रस्ट ट्रबल तीन चीजें ट्रस्ट बनाती हैं। पहला कॉन्फिडेंस आप जो कह रहे
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हैं वह समझते हैं। दूसरा ऑनेस्टी आपकी बातों में सच है। तीसरा केयर आप सामने
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वाले का भला चाहते हैं। यह तीनों एलिमेंट्स जब एक साथ आ जाते हैं तो ट्रस्ट
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जन्म लेता है और ट्रस्ट मतलब कनेक्शन प्लस इन्फ्लुएंस। अब बात करते हैं द पावर ऑफ शेयरर्ड
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आइडेंटिटी। इन्फ्लुएंस तब स्ट्रांगेस्ट होता है जब सामने वाला फील करे यह इंसान
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मेरे जैसा है। इसलिए सुपर कम्युनिकेटर्स शेयरर्ड आइडेंटिटी बनाते हैं। एग्जांपल हम
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दोनों यही चाहते हैं कि हम दोनों इसी प्रॉब्लम से गुजरे हैं। हम दोनों का इंटेंशन पॉजिटिव है। हम दोनों इसी टीम का
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हिस्सा हैं। शेयर्ड आइडेंटिटी फाइट को पार्टनरशिप में बदल देती है। पार्टनरशिप
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मतलब इनफ्लुएंस। अब बात करते हैं लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप्स
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कैसे बिल्ड होते हैं। कम्युनिकेशन का असली गोल टेंपरेरी जीत नहीं लॉन्ग टर्म
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रिलेशनशिप है। कैसे? चार्ल्स डोहित बताते हैं लंबे रिश्ते तीन पिलर्स पर खड़े होते
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हैं। पिलर नंबर वन क्यूरोसिटी हमेशा क्यूरोसिटी रखकर के सामने वाला आज क्या
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महसूस कर रहा है। क्यूरोसिटी मतलब फ्रेशनेस। फ्रेशनेस मतलब कनेक्शन। पिलर
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नंबर टू कंसिस्टेंसी। थोड़ी-थोड़ी बार छोटी मीनिंगफुल बातें रिश्तों को मजबूत
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रखती हैं। पिलर थ्री केयर। लोग यह भूल जाते हैं कि केयर का मतलब कंट्रोल नहीं,
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केयर का मतलब प्रेजेंस है। जब आप सच में केयर करते हो, लोग आपकी बात मानते हैं। अब
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एक पावरफुल स्टोरी। एक कंपनी में दो मैनेजर्स थे। रवि और सागर दोनों टैलेंटेड
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थे। लेकिन टीम हमेशा रवि की बात अधिक मानती थी। क्यों? रवि ने कम्युनिकेशन
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सिर्फ आर्डर देने के लिए नहीं यूज किया। वह हर व्यक्ति से 5 मिनट बैठता था। उसकी
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बात सुनता। उनकी लाइफ के बारे में पूछता, उनके गोल्स समझता, उनके स्ट्रगल्स सुनता।
35:09
वह कहता हम दोनों इस गोल को अचीव कर सकते हैं। चलो मिलकर इंप्रूव करते हैं। सागर
35:15
सिर्फ बोलता था रवि कनेक्ट करता था। इसलिए रवि की बात इफेक्ट करती थी। कम्युनिकेटिंग
35:22
इज नॉट कमांडिंग। कम्युनिकेटिंग इज कनेक्टिंग। और कनेक्टिंग से इनफ्रेंस पैदा
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होता है। द फाइनल ब्लूप्रिंट सुपर कम्युनिकेटर कैसे बने? अब मैं आपको पूरी
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किताब का एक कंडेंस्ड ब्लूप्रिंट दे रहा हूं। स्टेप वन कन्वर्सेशन का टाइप पहचानो।
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प्रैक्टिकल, इमोशनल या सोशल। स्टेप टू, लूपिंग इस्तेमाल करो। आस्क, रिफ्लेक्ट एंड
35:45
वैलिडेट। स्टेप थ्री, डीप क्वेश्चंस पूछो। इसका सबसे बड़ा असर आपके लिए क्या है? आप
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क्या चेंज करना चाहोगे? स्टेप फोर, साइलेंस अलाउ करें। सामने वाले को
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ब्रीथिंग स्पेस दो। स्टेप फाइव, टेल मी मोर। डीपेस्ट मैजिक है। स्टेप सिक्स यस
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एंड फायर को पानी की तरह शांत कर देता है। स्टेप सेवन आइडेंटिटी को प्रोटेक्ट करो
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वर्ड्स को नहीं। स्टेप एट स्टोरीज से मैसेज देना सीखो। फैक्ट्स ट्राई होते हैं।
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स्टेप नाइन प्रेजेंस मतलब सबसे बड़ा करिश्मा है। पूरी तरह उस पल में रहो।
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स्टेप 10 ट्रस्ट ट्रायंगल फॉलो करो। कॉम्पिटेंस प्लस ऑनेस्टी प्लस केयर। अगर
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आप इन 10 स्किल्स को प्रैक्टिस कर लो, आपके वर्ल्ड्स में हीलिंग होगी। आपकी प्रेजेंस में कंफर्ट होगा और आपकी बातों
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में इंपैक्ट होगा। यही सुपर कम्युनिकेटर्स की पहचान है। दोस्तों, अब आपने
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कम्युनिकेशन का सबसे एडवांस्ड, सबसे पावरफुल, सबसे रिलेटेबल साइंस सीख लिया
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है। अब आप वो इंसान बन सकते हैं जिससे लोग बात करना पसंद करें। जिस पर लोग भरोसा
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करें, जिसकी बातें दिल तक पहुंचे और जिसकी प्रेजेंस से लोगों को सेफ्टी महसूस हो।
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एंड दिस इज द ट्रू पावर ऑफ अ सुपर कम्युनिकेटर। थैंक यू।
#Family & Relationships
#Self-Help & Motivational
