vat savitri puja kab hai | Vat Savitri Vrat Katha in Hindi | वट सावित्री पूजा विधि
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May 22, 2025
vat savitri puja kab hai | Vat Savitri Vrat Katha in Hindi | वट सावित्री पूजा विधि
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दोस्तों इस वीडियो में हम वट सावित्री
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व्रत कथा के बारे में विस्तृत से बात
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करेंगे आपके साथ तो आइए जानते हैं वट
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सावित्री व्रत कथा क्या है आप सभी ने
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सावित्री और सत्यवान की कथा तो जरूर सुनी
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होगी सावित्री और सत्यवान दोनों पतिपत्नी
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थे यमराज जी ने सत्यवान का प्राण हर लिया
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था लेकिन सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म
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का पालन करते हुए यमराज को तर्क वितर्क
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करके यमराज जी को ही उलझा दिया और अंत में
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यमराज जी ने उनके पति को प्राण
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को छोड़ना
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पड़ा प्राण को लौटा उनको प्राण को लौटाना
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पड़ा विवश होना पड़ा हिंदू धर्म
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में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व
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है यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाएं
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अपने पति की लंबी उम्र के और उत्तम
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स्वास्थ्य और सुखी विवाहित जीवन के लिए
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रखती है यह पर्व हर साल ज्यष्ठ मास की
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अमावस्या तिथि को मनाई जाती है साल 2025
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में यह दिन 26 मई यानी सोमवार के दिन
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पड़ेगा इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ वट
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वृक्ष की भी पूजा करने का विशेष महत्व है
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वट वृक्ष का क्या महत्व है जान लेते हैं
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वट वृक्ष या जिसे बरगद का पेड़ भी कहते
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हैं है ना वट वृक्ष में त्रिदेवानी
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ब्रह्मा विष्णु महेश का भी प्रतीक माना
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जाता है उनका वास स्थान माना जाता है यह
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वृक्ष दीर्घायु स्थायित्व और समृद्धि का
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प्रतीक भी है महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की
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परिक्रमा करके सावित्री सत्यवान की कथा भी
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सुनती है लेकिन आज के समय में शहरीकरण के
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कारण कई जगह पर वट वृक्ष आपको नहीं
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मिलेंगे ऐसे में यह व्रत पूरी श्रद्धार
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विधि पूर्वक किया जा सकता है अगर वट वृक्ष
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ना हो तो आप अगर आसपास कहीं वट वृक्ष हो
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तो उसकी उसकी टहनी भी ले आवे तो भी काम चल
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जाएगा या गमले में लगाकर पूजा स्थल पर
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रखें और उस को कर सकते हैं ऐसा ठीक है और
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बरगद के पेड़ की पूजा करने का विधान है
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क्योंकि यह मान्यता था कि बरगद के पेड़ के
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नीचे ही जमदेव यमराज जी ने सत्यवान के
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प्राण लौटाए थे
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आइए एक बार फिर से सावित्री शतान कथा
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सुनते हैं शॉर्ट में सुनेंगे ज्यादा लंबा
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नहीं खींचते हैं राजा अश्वपति की एक कन्या
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थी जिनका नाम सावित्री था वो बहुत ही
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रूपवान गुणवान गुणवती थी उनकी चर्चा
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दूरदूर तक थे राजा अश्वपति ने अपनी कन्या
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का विवाह शालदेश के राज का राजा धुमसेन के
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पुत्र सत्यवान से कर दिया था सत्यवान कौन
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था राजा धुमसेन का पुत्र था और धुमसेन
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सालदेश का राजा था लेकिन उनका राजपाट सब
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छीन गया था और वह दोनों पति पत्नी अंधे हो
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गए थे यह सावित्री को बताया गया कि जिससे
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तुम विवाह करने जा रही हो उनके माता-पिता
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अंधे हैं और साल के राजकुमार राजा हैं
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लेकिन उनका राजपाट छीना जा चुका है और जो
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तुम्हारा पति बनेगा उनकी आयु अल्प है यानी
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एक साल के बाद वो मर जाएगा फिर भी
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सावित्री ने बोला हम तो इसी से इन्हीं से
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विवाह करेंगे हम उनका पति अटल था बोला हम
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तो नहीं बदल सकते उन दोनों का ससुरा शादी
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हो गया विवाह संपन्न हुआ सावित्री अपने
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ससुराल पहुंची और साससुर की सेवा करने लग
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गई समय बीतता गया नारद जी ने सावित्री को
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पहले ही बता दिया था कि सत्यवान की मृत्यु
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एक साल के बाद हो जाएगी और किस दिन होगी
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यह भी बता दिया था वह दिन जैसे-जैसे करीब
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आने लगा सावित्री की चिंता बढ़ती गई उनके
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मृत्यु के दिन तीन दिन शेष बच गए थे तभी
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सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया यानी उसकी
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मृत्यु के पास तीन दिन बचे थे तो सावित्री
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ने उपवास करना शुरू कर दिया वो राजा पुत्र
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उसका हस्बैंड का पति क्या करता था जंगल से
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लकड़ियां काट के लाता था और खाना बनाता था
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ठीक है तो हर दिन सत्यवान भी उस दिन जंगल
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में लकड़ी काटने जाने लग गया सावित्री
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उसका पीछा नहीं छोड़ती थी हरदम उसके साथ
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लगी रहती थी सावित्री भी उनके साथ पीछे
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पीछे चली गई जंगल में जंगल में पहुंचकर
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सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़
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गए तभी उसके सिर में अचानक तेज दर्द होने
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लग गया और दर्द से व्याकुल होकर सत्यवान
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पेड़ के नीचे उतर गए है ना उनके माथे में
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बहुत तेज दर्द होने लगा दर्द से व्याकुल
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होकर नीचे उतर गए सावित्री को ने समझ लिया
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कि हां इनका समय हो चुका
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है सत्यवान को उन्होंने क्या किया
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सावित्री नीचे बैठ गई अब अपने पैर के उसका
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माथा को अपने गोद में लेके लेट गया
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सत्यवान वं पे और उनका सिर को सलाने लगी
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तभी वो विशाल किसी की छाया नजर आया वहां
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पे वो यमराज जी थे यमराज जी ने सत्यवान को
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प्राण ले लिया और ले जाने लगे सावित्री भी
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अपने पति
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के शरीर को छोड़ जमीन पर लेटा छोड़ दिया
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और सावित्री जी भी जलवा के पीछे पीछे चलने
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लगी यमराज जी थोड़ी देर जाते पीछे मुड़ के
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देखते हैं देखते सावित्री पीछे चली जा रही
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है तो उन्होंने सावित्री को समझाने कोशिश
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किया कि बेटी ये विधि का विधान है जो एक
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दिन जन्म लेता है उसको मृत्यु निश्चित है
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तुम लौट जाओ लेकिन सावित्री नहीं मानी वो
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पीछे पीछे चलती रही सावित्री की निष्ठा
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होती पति प्राय देख यमराज ने सावित्री से
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कहा देवी तुम धन्य हो
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तुम मुझसे कोई वरदान मांग लो लेकिन लौट
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जाओ सावित्री ने कहा मेरे सास ससुर वनवासी
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है और अंधे हैं आप उन्हें दिव्य ज्योति
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प्रदान करें यमराज ने कहा तथास्तु अब लौट
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जाओ लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के
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पीछे चलती यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ
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सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के
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पीछे चलने का कोई परेशानी नहीं है पीछे
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चलना मेरा कर्तव्य है यह सुनकर उन्हें फिर
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से एक बार वर मांगने का कहा सावित्री ने
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फिर से वर मांगा कि हमारे सास ससुर का
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छीना हुआ राज उन्हें फिर से वापस मिल जाए
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यमराज जी ने बोला तथास्तु लेकिन फिर भी
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सावित्री उनके पीछे पीछे चलती रही
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यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान भी
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मांगने कहा तीसरा वरदान भी मांग लो और लौट
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जाओ अभी सावित्री ने उन्हें 100 पुत्रों
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100 पुत्रों का वरदान मांगा कि मुझे 100
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पुत्र हो मैं पुत्रवती हो जाऊं सौभाग्य
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प्राप्त हो यमराज जी ने कहा तथास्तु अब
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यमराज जी फस गए
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सावित्री ने जमरा से कहा प्रभु मैं
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पतिवर्ता पत्नी स्त्री हूं और आपने मुझे
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पुत्रवती होने का आशीर्वाद भी दे दिया और
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लेकिन मेरे पति को साथ में लिए जा रहे हैं
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ये कैसे संभव हो सकता है अगर आप मेरे पति
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को ले जाएंगे तो मैं पुत्रवती कैसे होऊंगा
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यमराज फस गए अब क्या करें किंग कर्तव हो
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गए कि हां सही बोल रही है अंत में
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यमराज जी ने सत्यवान को प्राण को छोड़ना
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पड़ा क्योंकि वरदान दे चुके थे कि पुतवती
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हो जाओ अब उनके पति को कैसे ले जा सकते
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हैं फिर यमराज जी ने उनके पति के प्राण जो
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ही छोड़ा सत्यवान का पार्थिव शरीर पड़ा था
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उठ के बैठ गया वो इधर देखने लगी मेरी
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पत्नी किधर गई तब तक सावित्री वहां पहुंच
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गई और दोनों खुशी खुश हो गए और खुशीखुशी
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पूर्वक अपने राज घर की तरफ चल पड़े जब
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दोनों घर पहुंचे देखा कि उनके माता पिता
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की आंख रोशनी घुमाई है और उनका खोया हुआ
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आज पुनः मिल गया है और इस तरह उन्हें लंबे
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समय तक सुख भोगा और जिंदगी इसकी थैंक यू
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दोस्तों वीडियो अच्छा लगा तो लाइक कीजिएगा
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हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना बिल्कुल ना
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भूलना थैंक यू