0:00
विदुर नीति द आर्ट ऑफ रिकॉग्नाइजिंग पीपल
0:04
व्यक्ति की पहचान की कला। दोस्तों, विदुर
0:08
नीति की यह कड़ी सबसे ज्यादा और अधिक
0:11
प्रासंगिक है। क्योंकि जीवन में सबसे बड़ी
0:13
शक्ति है लोगों को पहचानने की कला। द आर्ट
0:16
ऑफ नोइंग पीपल। विदुर कहते हैं मित्र,
0:19
शत्रु, मूर्ख और बुद्धिमान चारों की पहचान
0:23
अगर व्यक्ति कर ले, तो वह जीवन में कभी
0:25
धोखा नहीं खाता। महाभारत के समय यह बात एक
0:29
राजा के लिए थी। पर आज यह हर व्यक्ति के
0:31
लिए उतनी ही जरूरी है। चाहे वह एक
0:34
स्टूडेंट हो, प्रोफेशनल हो या लीडर।
0:37
क्योंकि आज के युग में सबसे बड़ा युद्ध
0:39
तलवारों से नहीं बल्कि चेहरों के पीछे
0:42
छिपे इरादों से होता है। विदुर नीति हमें
0:45
सिखाती है कि मनुष्य की पहचान शब्दों से
0:47
नहीं स्वभाव और कर्म से होती है। विदुर
0:50
कहते हैं जो व्यक्ति तुम्हारे सामने मीठा
0:53
बोलता है और पीछे विष फैलाता है, वह सर्प
0:56
से भी अधिक खतरनाक है। यह सिर्फ राजनीति
0:59
की नहीं संबंधों की भी नीति है। क्योंकि
1:02
जीवन में हम बहुत बार ऐसे लोगों से मिलते
1:05
हैं जो हमारे मित्र बनकर आते हैं पर
1:08
उद्देश्य कुछ और रखते हैं। विदुर हमें
1:11
चेतावनी देते हैं मूर्ख से मित्रता और
1:14
दृष्ट से दया दोनों ही अंत में विनाश लाते
1:18
हैं। विदुर नीति बताती है कि किसी व्यक्ति
1:21
को पहचानने के तीन स्तर होते हैं। पहला
1:24
वाणी यानी स्पीच। वह क्या बोलता है। दूसरा
1:28
व्यवहार यानी बिहेवियर। वह कैसे व्यवहार
1:32
तीसरा उद्देश्य यानी इंटेंशन। वह ऐसा
1:35
क्यों करता है? पहला स्तर सभी देखते हैं।
1:38
दूसरा स्तर समझदार लोग देखते हैं और तीसरा
1:42
स्तर केवल ज्ञानी पहचानते हैं। विदुर कहते
1:45
हैं जिसने वाणी और व्यवहार से परे व्यक्ति
1:48
के उद्देश्य को पहचान लिया, वह कभी धोखा
1:53
कई बार वर्क प्लेस में कोई व्यक्ति हमारी
1:56
प्रशंसा करता है। पर भीतर से कंपटीशन या
2:00
जेलसी रखता है। अगर हम केवल शब्दों से उसे
2:03
आंकेंगे तो भ्रम होगा। लेकिन उसके
2:06
इंटेंशंस को देखें तो सच्चाई स्पष्ट
2:09
दिखेगी। बोलने वाला अच्छा लग सकता है पर
2:13
इरादे बोलों से बड़े होते हैं। विदुर नीति
2:17
में मूर्ख की पहचान बहुत सटीक दी गई है।
2:20
विदुर कहते हैं जो व्यक्ति बार-बार बिना
2:23
सोचे बोलता है और सलाह देने में उत्सुक
2:26
रहता है। पर स्वयं पालन नहीं करता। वह
2:29
मूर्ख है। आज के समय में ऐसे लोग हर जगह
2:32
है। सोशल मीडिया पर, ऑफिसेस में। यहां तक
2:35
कि हमारे मित्रों में वे बहुत बोलते हैं,
2:38
बहुत सलाह देते हैं। पर खुद अपने जीवन में
2:41
अनुशासन नहीं रखते। विदुर नीति कहती है
2:44
मूर्ख का साथ उसी तरह त्यागो जैसे व्यक्ति
2:47
विश्व में डूबी हुई मिठाई त्याग देता है।
2:50
सुनो सबकी पर मानो केवल उस व्यक्ति की बात
2:54
जो खुद अपने जीवन में वही करता है। मूर्ख
2:57
की सलाह शोर लगती है ज्ञान नहीं। विदुर
3:02
नीति का दूसरा स्तर है दृष्ट व्यक्ति की
3:04
पहचान। विदुर कहते हैं दृष्ट व्यक्ति सर्प
3:07
से अधिक खतरनाक होता है क्योंकि सर्प तो
3:10
केवल काटता है पर दृष्ट व्यक्ति हर समय मन
3:14
को विष से भरता है। यह पंक्ति आज भी सटीक
3:17
बैठती है। दृष्ट व्यक्ति कभी सीधे नहीं
3:21
आता। वह आपके पास आपकी कमजोरियों के
3:25
रास्ते आता है। वह आपकी भावनाओं का उपयोग
3:28
करता है। आपके विश्वास को हथियार बनाता
3:31
है। दृष्ट व्यक्ति हमेशा हेल्पिंग या
3:34
कंसर्न बनकर आता है। पर उसके शब्दों में
3:36
सल मैनपुलेशन होता है। विदुरनीति कहती है
3:40
जो व्यक्ति दूसरों की अनुपस्थिति में उनका
3:43
दोष कहे और उपस्थिति में उनकी प्रशंसा करे
3:46
उससे सावधान रहो। दृष्ट व्यक्ति
3:49
मुस्कुराता बहुत है पर नियत छिपाता है।
3:53
विदुर नीति का तीसरा और सबसे सुंदर भाग
3:56
सज्जन व्यक्ति की पहचान। विदुर कहते हैं
4:00
जो बिना कहे मदद करें। जो अपमान मिलने पर
4:03
भी मौन रखे जो सफलता में विनम्र रहे वही
4:07
सज्जन है। ऐसे व्यक्ति रेयर होते हैं। वे
4:10
दिखावे में नहीं कर्म में चमकते हैं। वह
4:14
कोलीग जो आपके काम का क्रेडिट नहीं लेता।
4:16
वह मित्र जो आपकी अनुपस्थिति में भी आपकी
4:19
रक्षा करता है, वह ही सज्जन है। विदुर
4:22
नीति कहती है ज्ञानी व्यक्ति की पहचान
4:25
उसके प्रश्नों से होती है ना कि उसके
4:28
उत्तरों से। यानी बुद्धिमान वह नहीं जो सब
4:31
जानता है बल्कि वह जो सही प्रश्न पूछता
4:34
है। सज्जन वह नहीं जो दिखे बल्कि वह जो
4:37
बिना दिखे सही करे। विदुर नीति सिखाती है।
4:41
व्यक्ति को पहचानने का सबसे सरल तरीका है।
4:44
उसे कठिन परिस्थिति में देखो क्योंकि जब
4:48
सब कुछ अनुकूल हो तब हर कुछ को ही अच्छा
4:51
लगता है। पर जब समय बदलता है तब असली
4:54
स्वभाव सामने आता है। महाभारत में भी यही
4:58
हुआ। कौरवों के दरबार में जब द्रोपदी का
5:00
अपमान हुआ तो जिसने चुप्पी साधी उसका असली
5:04
चेहरा उजागर हुआ। विदुर अकेले बोले
5:07
क्योंकि वह धर्म के साथ थे। भीड़ के साथ
5:10
नहीं। जब कोई व्यक्ति आपकी अनुपस्थिति में
5:14
आपके लिए खड़ा हो तो समझो वह सच्चा है।
5:18
समय नहीं कठिनाई बताती है कौन अपना है। तो
5:22
दोस्तों, विदुर नीति का पहला सूत्र हमें
5:24
यह सिखाता है कि मनुष्य को पहचानने की कला
5:27
ही जीवन की सबसे बड़ी सुरक्षा है। हर
5:30
व्यक्ति जो मुस्कुराता है, मित्र नहीं
5:33
होता। हर व्यक्ति जो मौन है शत्रु नहीं
5:36
होता और हर व्यक्ति जो मीठा बोलता है
5:39
सज्जन नहीं होता। विदुर नीति का सार यही
5:42
है। पहचानो लोगों को उनके कर्म से क्योंकि
5:45
शब्द तो सभी के पास होते हैं और जब
5:48
व्यक्ति यह कला सीख जाता है तो उसका जीवन
5:51
सहज हो जाता है क्योंकि वह अब धोखे से
5:55
नहीं डरता। वह केवल सत्य को देखता है।
5:58
अगले भाग में हम विदुर नीति के दूसरे
6:01
रहस्यों को समझेंगे। किसी व्यक्ति का
6:03
स्वभाव, उसका चरित्र और उसका धर्म से
6:06
संबंध हमें यह बताता है कि कौन हमारे साथ
6:09
चलने योग्य है और कौन नहीं है। दोस्तों,
6:13
पिछले भाग में हमने जाना कि विदुर नीति
6:15
हमें यह सिखाती है कि किसी व्यक्ति को
6:17
उसके शब्दों और व्यवहार से नहीं बल्कि
6:20
इरादों और कर्मों से पहचानना चाहिए। अब हम
6:24
इस नीति के दूसरे और गहरे स्तर पर पहुंचते
6:26
हैं। जहां विदुर हमें बताते हैं कि कैसे
6:30
व्यक्ति का स्वभाव यानी नेचर और चरित्र
6:33
यानी कैरेक्टर उसके पूरे जीवन का दर्पण
6:36
होता है। विदुर कहते हैं व्यक्ति अपने
6:39
आचरण से प्रकट होता है। क्योंकि मनुष्य
6:42
अपने स्वभाव को अधिक समय तक छिपा नहीं
6:46
विद्युत नीति में स्वभाव को व्यक्ति का
6:49
मूल बीज कहा गया है। पर आप बीज को चाहे
6:53
जैसे मिट्टी में रखो वह अपने स्वभाव के
6:56
अनुसार ही फल देगा। विदुर कहते हैं जैसे
6:59
सांप दूध पीकर भी विष ही निकालता है वैसे
7:02
ही दृष्ट व्यक्ति उपकार पाकर भी अहित ही
7:05
करता है। यह पंक्ति जीवन की सबसे बड़ी
7:08
सच्चाई बताती है। क्योंकि व्यक्ति का
7:11
स्वभाव वही रहता है चाहे परिस्थिति बदल
7:14
जाए चाहे समय। कई लोग आपके अच्छे समय में
7:18
बहुत सहयोगी लगते हैं। पर जैसे ही
7:21
परिस्थितियां बदलती है, उनका असली स्वभाव
7:24
सामने आता है। जो व्यक्ति कठिन समय में भी
7:27
साथ रहे वह ही सच्चा है। स्वभाव बदलता
7:31
कठिन है पर पहचानना आसान है। अगर आप
7:34
जागरूक हो। विदुर नीति कहती है जैसे छोटे
7:38
लाभ में प्रसन्नता और छोटी हानि में क्रोध
7:41
आता है वह अस्थिर स्वभाव का है। यानी जो
7:45
व्यक्ति छोटी-छोटी बातों में उत्तेजित या
7:48
उदास हो जाता है, वह निर्णय में भरोसेमंद
7:51
नहीं होता। विदुर आगे कहते हैं जो व्यक्ति
7:54
हर समय अपनी प्रशंसा सुनना चाहता है वह
7:57
भीतर से असुरक्षित होता है। मॉडर्न
8:00
साइकोलॉजी भी यही कहती है इनसिक्योर पीपल
8:03
सीक वैलिडेशन नॉट ट्रुथ। इसीलिए विदुर
8:07
सिखाते हैं व्यक्ति का स्वभाव उसकी
8:10
रिएक्टिव एनर्जी में दिखता है ना कि उसके
8:13
वर्ड्स में। अगर कोई व्यक्ति हर छोटी बात
8:16
पर डिफेंसिवनेस दिखाए तो समझो भीतर
8:19
अस्थिरता है। अगर कोई व्यक्ति कठिन
8:22
परिस्थिति में भी शांत रहे तो समझो भीतर
8:25
शक्ति है। व्यक्ति का स्वभाव उसके शब्द
8:28
नहीं उसकी प्रतिक्रिया बताती है। विदुर
8:32
नीति कहती है चरित्र वही धन है जो चोरी
8:35
नहीं हो सकता। यह चरित्र ही है जो व्यक्ति
8:39
की प्रतिष्ठा बनाता है। चरित्र वह है जो
8:42
आप करते हैं जब कोई देख नहीं रहा होता।
8:45
विदुर कहते हैं जो व्यक्ति अकेले में भी
8:48
अनुशासन रखता है वह सच्चा चरित्रवान है।
8:52
महाभारत के दरबार में विदुर ही थे
8:54
जिन्होंने धर्म का साथ नहीं छोड़ा। भले ही
8:57
राजा उनके विरोध में था क्योंकि उनका
8:59
चरित्र सत्ता से नहीं सत्य से जुड़ा था।
9:03
आज भी वही व्यक्ति सम्मानित होता है जो
9:06
इंटेग्रिटी से समझौता नहीं करता क्योंकि
9:09
पद, शक्ति या पैसा सब अस्थाई है। पर
9:13
चरित्र ही वह छवि है जो मृत्यु के बाद भी
9:16
रहती है। जो सत्य में स्थिर है वही
9:18
चरित्रवान है। विदुर नीति धर्म को केवल
9:22
पूजा या कर्मकांड नहीं मानती। धर्म का
9:25
अर्थ है संतुलित और न्यायपूर्ण आचरण। और
9:28
जो व्यक्ति अपने स्वभाव में धर्म को धारण
9:31
करता है, वह हर स्थिति में स्थिर रहता है।
9:34
विदुर कहते हैं धर्ममान
9:37
धर्मवान व्यक्ति विपत्ति में भी धर्म नहीं
9:40
छोड़ता जैसे दीपक आंधी में भी प्रकाश देता
9:43
है। धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति कभी
9:46
अपने लाभ के लिए अन्याय का मार्ग नहीं
9:48
चुनता। अगर आप एक एंटरप्रेन्योर हैं और
9:51
आपको एक डिसऑनेस्ट शॉर्टकट दिखता है तो
9:54
आपको जल्दी जो आपको जल्दी प्रॉफिट दे सकता
9:57
है पर आप उसे अस्वीकार करते हैं क्योंकि
10:00
वह आपके मूल्यों के खिलाफ है तो आप विदुर
10:02
नीति के मार्ग पर हैं। धर्म वह दिशा है जो
10:06
स्वभाव को संतुलन देती है। विदुर नीति
10:09
सिखाती है कि दुनिया में दो प्रकार के
10:12
स्वभाव होते हैं। पहला अस्थिर स्वभाव जो
10:15
हर बात पर प्रतिक्रिया देता है। हर
10:17
परिस्थिति में बदलता है। ऐसा व्यक्ति
10:20
निर्णयों में भरोसेमंद नहीं होता। दूसरा
10:23
स्थिर स्वभाव जो सोच कर बोलता है, ठहरे से
10:26
काम करता है और हर स्थिति में संतुलित
10:29
रहता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी टीम, रिश्ते
10:32
या समाज की नींव होता है। विदुर कहते हैं
10:36
जो व्यक्ति छोटी बात पर क्रोध करे और बड़ी
10:38
बात पर मौन रहे, वह नीति का अज्ञानी है।
10:42
यह वही लोग हैं जो इमोशनल होते हैं, लेकिन
10:44
प्रैक्टिकल नहीं। इसीलिए विदुर कहते हैं
10:47
स्थिर स्वभाव ही सफलता का मूल है। जो भीतर
10:51
से शांत है वही बाहर से स्पष्ट होता है।
10:54
विदुर नीति कहती है चरित्र की परीक्षा
10:57
कठिन समय में होती है क्योंकि सुविधा में
10:59
हर कोई अच्छा बन सकता है। जैसे सोने की
11:02
पहचान आग में होती है वैसे ही व्यक्ति की
11:05
पहचान विपत्ति में होती है। महाभारत में
11:08
जब द्रोपदी का अपमान हुआ, तो जिसने मौन
11:11
साधा, उसका चरित्र वही प्रकट हुआ। जो
11:14
बोले, वे अमर हो गए। कठिन समय में जो
11:17
व्यक्ति आपकी मदद करे, वह सच्चा है। जो
11:20
केवल शब्दों में साथ दे, वह परिस्थिति का
11:22
साथी है। व्यक्ति का नहीं। चरित्र की
11:25
पहचान संकट में होती है। सुविधा में नहीं।
11:29
विदुर कहते हैं जो व्यक्ति केवल अपने लाभ
11:31
को देखता है वह धर्म और सत्य दोनों से दूर
11:34
है। यह वाक्य आज की दुनिया पर पूरी तरह
11:37
लागू होता है। स्वार्थ से भरी दुनिया में
11:40
निष्कामता ही सबसे बड़ी शक्ति है। जो
11:43
व्यक्ति दूसरों के भले में भी आनंद पाए वह
11:46
ही सच्चा सज्जन है। विदुनीति यह नहीं कहती
11:49
कि स्वार्थ गलत है। वह कहती है कि सीमाहीन
11:53
स्वार्थ व्यक्ति को अंधा बना देता है और
11:56
वही अंधापन उसे पतन की ओर ले जाता है।
12:00
स्वार्थ नियंत्रित हो तो प्रगति,
12:03
अनियंत्रित हो तो विनाश। तो दोस्तों विदुर
12:06
नीति का दूसरा सूत्र हमें यह सिखाता है कि
12:08
व्यक्ति का असली चेहरा उसके स्वभाव और
12:11
चरित्र में छिपा होता है। जो व्यक्ति
12:13
विपत्ति में धर्म ना छोड़े जो कठिनाई में
12:16
भी सत्य बोले जो अकेले में भी सही करे वही
12:19
असली चरित्रवान है। विदुनीति का सार यही
12:22
है। स्वभाव से पहचानो चरित्र से भरोसा करो
12:26
और धर्म से जोड़ो यही व्यक्ति की पहचान की
12:29
कला है। और जब हम इस कला को समझ लेते हैं,
12:32
तब हम ना केवल दूसरों को पहचानते हैं,
12:35
बल्कि स्वयं को भी समझने लगते हैं। अगले
12:38
भाग में हम विदुर नीति के तीसरे रहस्य को
12:40
समझेंगे। कैसे व्यक्ति का मित्रता,
12:42
विश्वास और संगति उसके भाग्य और मानसिक
12:46
शक्ति को प्रभावित करते हैं। क्योंकि
12:49
विदुर के विदुर कहते हैं जैसी संगति वैसा
12:53
ही आपका रंग। दोस्तों, हम सभी जानते हैं
12:58
कि जीवन में सफलता, शांति और संतुलन सिर्फ
13:01
इस पर निर्भर नहीं करते कि हम कौन हैं
13:04
बल्कि इस पर भी कि हम किन लोगों के बीच
13:07
रहते हैं। विदुर नीति कहती है जैसे वायु
13:10
से अग्नि बढ़ती है वैसे संगति से स्वभाव।
13:13
यानी व्यक्ति अपने साथियों के स्वभाव,
13:16
विचार और कर्मों से प्रभावित होता है।
13:19
जैसी संगति वैसा रंग। महाभारत में यही
13:23
सबसे बड़ा कारण था। कौरव और पांडव दोनों
13:26
एक ही कुल के थे। पर एक की संगति दुर्योधन
13:30
और शकुनी से थी और दूसरे की संगति कृष्ण
13:32
और विदुर से। विदु नीति सिखाती है कि
13:35
संगति मनुष्य के विचारों का आरसा है। जैसे
13:39
जो जैसा सुनता है वैसा सोचता है और जो
13:42
जैसा सोचता है वैसा बन जाता है। अच्छी
13:46
संगति व्यक्ति को आत्मविश्वासी शांत और
13:49
विवेकशील बनाती है। बुरी संगति व्यक्ति को
13:52
संदेही, अस्थिर और अहंकारी बना देती है।
13:56
आज के समय में संगति केवल भौतिक नहीं
13:59
डिजिटल भी है। आप रोज किसे सुनते हैं?
14:02
किसे देखते हैं, किसकी बातों पर भरोसा
14:05
करते हैं, वही आपकी मानसिक ऊर्जा बनाता
14:08
है। विदुरनीति कहती है, सज्जनों की संगति
14:12
जीवन में प्रकाश लाती है और दृष्टों की
14:14
संगति मन में अंधकार। संगति व्यक्ति को
14:18
नहीं व्यक्ति संगति को बदलता है। पर
14:21
शुरुआत हमेशा संगति से होती है। विदुर
14:24
नीति में दो प्रकार की संगति बताई गई है।
14:28
पहला सज्जन संगति गुड एसोसिएशन जहां लोग
14:32
आपको ऊंचा उठाते हैं। आपके भीतर के गुणों
14:35
को जगाते हैं। ऐसी संगति में आप बेहतर
14:38
बनते हैं। दूसरा दुष्ट संगति टॉक्सिक
14:41
एसोसिएशन जहां लोग आपकी कमी निकालते हैं।
14:45
आपकी असफलता में प्रसन्न होते हैं और आपकी
14:48
अनुपस्थिति में आपकी छवि तोड़ते हैं।
14:51
विदुर कहते हैं जो व्यक्ति दूसरों की
14:53
निंदा में आनंद पाता है वह दृष्ट संगति का
14:56
पात्र है। आपका समय, आपकी ऊर्जा और आपकी
15:00
मानसिक शांति। इन सबकी रक्षा तभी संभव है
15:04
जब आप अपनी संगति चुनना सीखें। अपनी संगति
15:08
बदलो। भाग्य अपने आप बदल जाएगा। विदुर
15:11
नीति का अगला सूत्र है विश्वास ही संबंधों
15:14
का जीवन है। किसी भी रिश्ते चाहे मित्रता
15:17
हो, व्यापार हो या विवाह उसकी सबसे बड़ी
15:21
शक्ति ट्रस्ट होती है। विदुर कहते हैं
15:23
विश्वास अर्जित करना कठिन है पर खोना
15:27
अत्यंत सरल। आज के समय में विश्वास एक
15:30
फ्रेजाइल थ्रेड बन चुका है। लोग भरोसा तो
15:33
चाहते हैं, पर सत्य बोलने से डरते हैं।
15:36
विदु नीति कहती है, जो अपने हित के लिए
15:39
सत्य छिपाता है, वह धीरे-धीरे विश्वास खो
15:42
देता है। एक छोटे से झूठ से शुरू हुआ भ्रम
15:46
धीरे-धीरे रिश्तों की जड़े खोखली कर देता
15:49
है। विश्वास वही जो छिपाना ना पड़े।
15:52
विदुनीति कहती है विश्वास उसी पर करो जो
15:56
तुम्हारे दोष सुनकर भी तुम्हारा साथ ना
15:59
छोड़े। यानी सच्चा मित्र वही है जो आपकी
16:02
कमजोरी जानकर भी आपके प्रति स्नेह रखे।
16:06
विदुर आगे कहते हैं जो व्यक्ति संकट में
16:09
साथ दे वह ही सच्चा विश्वास पात्र है।
16:13
ट्रस्ट इज नॉट बिल्ट बाय वर्ड्स। इट्स
16:16
बिल्ट बाय प्रेजेंस एंड डिफिकल्ट टाइम्स।
16:18
जो व्यक्ति कठिन समय में आपके साथ खड़ा
16:21
रहा वह आपके जीवन का सबसे बड़ा धन है।
16:24
विश्वास शब्दों से नहीं संकट से साबित
16:28
होता है। विदुर नीति चेतावनी देती है।
16:31
अंधा विश्वास मूर्खता है और हर व्यक्ति पर
16:34
संदेह दुर्बलता यानी विश्वास में संतुलन
16:38
होना चाहिए। ना तो अंधा भरोसा ना ही हर
16:41
किसी पर शंका। विदुर कहते हैं जो व्यक्ति
16:44
हर किसी पर भरोसा कर लेता है वह स्वयं ही
16:47
अपने पतन का कारण बनता है। कई बार बिजनेस
16:50
या फ्रेंडशिप में लोग बिना जांचे परखे
16:53
भरोसा कर लेते हैं और बाद में धोखा खा
16:56
जाते हैं। विद्युत नीति का समाधान स्पष्ट
16:59
है। विश्वास करो पर परख कर विश्वास करो
17:03
लेकिन विवेक के साथ विद्युत नीति कहती है
17:05
सज्जन से संगति रखो पर हर सज्जन पर अंधा
17:09
विश्वास मत करो। यह संतुलन ही जीवन का
17:13
संतुलन है क्योंकि सज्जन भी कभी भूल कर
17:15
सकते हैं और बुरा व्यक्ति कभी सुधार सकता
17:18
है। विदुर की नीति यही सिखाती है संगति से
17:22
सीखो पर निर्णय अपने विवेक से लो। आज
17:26
लोगों को विश्वास टूटने का डर है क्योंकि
17:28
वह अपने विवेक से नहीं दूसरों के व्यवहार
17:30
से निर्णय लेते हैं। पर विदुर नीति कहती
17:33
है विवेक ही सुरक्षा है। संगति प्रेरणा दे
17:37
सकती है पर विवेक दिशा देता है। विदुर
17:40
कहते हैं जो व्यक्ति श्रेष्ठ जोों की
17:43
संगति करता है वह स्वयं श्रेष्ठ बन जाता
17:46
है। क्योंकि संगति केवल लोगों से नहीं
17:48
होती विचारों से भी होती है। अगर आप
17:51
बुद्धिमान लोगों की संगति में हैं तो आप
17:53
सोचने लगते हैं अगर आप नकारात्मक लोगों की
17:56
संगति में हैं तो आप शिकायत करने लगते
17:59
हैं। हर दिन आप जिन लोगों से बात करते
18:01
हैं, जिन चीजों को सुनते हैं और जिन
18:04
विचारों को पढ़ते हैं वही आपकी संगति बन
18:07
जाते हैं। जो संगति बदलता है, वह सोच
18:11
बदलता है और जो सोच बदलता है, वह जीवन
18:14
बदलता है। तो दोस्तों, विदुर नीति का
18:17
तीसरा सूत्र हमें यह सिखाता है कि जीवन
18:19
में सही संगति और सही विश्वास ही सबसे
18:23
बड़ा कवच है। सज्जनों के साथ रहो पर विवेक
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से भरोसा करो। दृष्टों से दूरी रखो। पर
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उनसे नफरत मत पालो बस सीखो। विदुर नीति का
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सार यही है। संगति बनाओ सज्जनों की और
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भरोसा रखो सत्य पर। क्योंकि जैसे सुगंध
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फूल से आती है वैसे ही चरित्र संगति से।
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और जब व्यक्ति यह समझ जाता है कि किसके
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साथ चलना है और किससे दूरी रखनी है तो
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उसका जीवन आधा सरल हो जाता है। अगले भाग
18:52
में हम विदुर नीति का चौथा रहस्य जानेंगे।
18:55
कैसे व्यक्ति के लोभ, ग्रीड और अहंकार
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यानी ईगो उसकी असली पहचान को उजागर करते
19:01
हैं। क्योंकि विदुर कहते हैं लोभी और
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अहंकारी व्यक्ति स्वयं अपने पतन का कारण
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बनता है। दोस्तों जीवन में मनुष्य की असली
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परीक्षा बाहर नहीं भीतर होती है और भीतर
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के दो सबसे बड़े शत्रु हैं लोभ, ग्रीड और
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अहंकार यानी ईगो। विद्युत नीति कहती है
19:22
लोभी व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं होता और
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अहंकारी व्यक्ति कभी शांत नहीं होता। यह
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वाक्य सिर्फ नीति नहीं एक चेतावनी है
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क्योंकि लोभ व्यक्ति के विवेक को खा जाता
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है और अहंकार उसकी विनम्रता को इन दोनों
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के कारण ही मनुष्य अपनी आत्मा से दूर हो
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जाता है। विधु नीति सिखाती है। लोभ वह जाल
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है जिसमें फंसकर व्यक्ति अपने विवेक को खो
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देता है। लोभ केवल धन का नहीं होता। वह
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मान, प्रतिष्ठा, शक्ति, प्रशंसा इन सबका
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भी हो सकता है। महाभारत में दुर्योधन के
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पास सब कुछ था। राज्य, संपत्ति, सेना,
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सम्मान और उसका लोभ था अधिक पाने का और
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उसी लोभ ने उसका पतन लिखा। विदुर कहते
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हैं, लोभी व्यक्ति दूसरों का नहीं स्वयं
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का भी हित नहीं करता। आज के युग में लोभ
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दिखता है हर जगह। कॉर्पोरेट ग्रीड में,
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रिलेशनशिप्स में, पॉलिटिक्स में यहां तक
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कि सोशल मीडिया वैलिडेशन में हर जगह थोड़ा
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और पाने की चाह है और यही असंतोष का कारण
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है। लोभ संतोष को खा जाता है और संतोष ही
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सुख है। विदुर नीति हमें लोभी व्यक्ति की
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पहचान बताती है। जो व्यक्ति दूसरों के सुख
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में दुखी और दूसरों के दुख में सुखी हो,
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वह लोभी है। लोभी व्यक्ति हमेशा तुलना में
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जीता है। वह अपनी उपलब्धियों से नहीं
20:40
दूसरों की सफलता से अपने मूल्य को नापता
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है। विदुर आगे कहते हैं लोभी व्यक्ति धन
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पाकर भी दरिद्र रहता है क्योंकि उसका मन
20:48
कभी तृप्त नहीं होता। आपने देखा होगा कुछ
20:52
लोग सब कुछ होने के बाद भी बेचैन रहते
20:55
हैं। नई कार, नया घर, नया स्टेटस फिर भी
20:59
असंतोष। क्योंकि जब इच्छा की सीमा नहीं तो
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संतोष की अनुभूति असंभव है। जहां लोभ शुरू
21:06
होता है वहां शांति समाप्त होती है।
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विद्युनीति कहती है जो व्यक्ति अपनी
21:11
आवश्यकता और चाह में अंतर समझ लेता है वह
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लोभ से मुक्त हो जाता है। आवश्यकता शरीर
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की होती है पर चाह मन की और मन की चाहें
21:21
कभी खत्म नहीं होती। मॉडर्न साइकोलॉजी इसे
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कहते हैं हेडोनिक ट्रेडमिल। आप जितना पाते
21:28
हैं, उतनी ही नई इच्छाएं पैदा होती जाती
21:31
हैं। विदुर समाधान देते हैं। संतोष ही
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सबसे बड़ा धन है और यह संतोष बाहर से नहीं
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भीतर से आता है। हर व्यक्ति को प्रतिदिन
21:41
स्वयं से एक प्रश्न पूछना चाहिए। क्या जो
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मेरे पास है वह पर्याप्त है? यह प्रश्न ही
21:46
लोभ का अंत कर देता है। संतोष की आदत
21:49
डालो। लोभ खुद भाग जाएगा।
21:52
विदु नीति कहती है अहंकार वह अंधकार है
21:56
जिसमें व्यक्ति स्वयं को देख नहीं पाता।
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अहंकार व्यक्ति को मूर्ख बनाता है क्योंकि
22:01
वह उसे यह भ्रम देता है कि वह हमेशा सही
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है। महाभारत का सबसे बड़ा उदाहरण भीष्म,
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द्रोण, कर्ण तीनों ज्ञानी थे। पर दुर्योधन
22:11
का अहंकार उन्हें मौन कर गया। विदुर ने
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चेतावनी दी थी। अहंकार व्यक्ति सत्य सुन
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नहीं सकता क्योंकि उसका मन केवल प्रशंसा
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सुनने का अभ्यस्त होता है। आज अहंकार केवल
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शब्दों में नहीं सोशल मीडिया की परतों में
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छिपा है। जहां हम दूसरे को छोटा दिखाकर
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खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश करते हैं।
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अहंकार वह दीवार है जो सच्चे ज्ञान को
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रोकती है। विदुरनीति कहती है जो व्यक्ति
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हर बातचीत में स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध
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करना चाहता है। वह अहंकारी है। अहंकारी
22:44
व्यक्ति दूसरों को सुनता नहीं। वह केवल
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अपनी बात सुनवाना चाहता है। वह तर्क में
22:49
जीतता है पर संबंधों में हार जाता है।
22:52
विदुर आगे कहते हैं जो व्यक्ति विनम्रता
22:55
को कमजोरी समझे वह पतन की ओर अग्रसर है।
22:59
अहंकारी व्यक्ति हमेशा अपनी इमेज की रक्षा
23:02
में लगा रहता है। वह गलतियां स्वीकार नहीं
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करता क्योंकि उसे लगता है कि स्वीकार करना
23:07
हार है। पर विदुर नीति कहती है स्वीकार
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करना ही सबसे बड़ा साहस है। जो मैं से परे
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दिखे वही सच्चा है। विदुरनीति गहराई से
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कहती है जहां लोभ है वहां अहंकार भी है
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क्योंकि लोभ कहता है मुझे और चाहिए और
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अहंकार कहता है मैं अधिक योग्य हूं। दोनों
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मिलकर व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाते
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हैं। महाभारत में यह जोड़ी बार-बार दिखाई
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देती है। दुर्योधन का लोभ और करण का
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अहंकार दोनों ने मिलकर धर्मराज को युद्ध
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में झोंक दिया। आज भी किसी भी संगठन
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रिश्ते या समाज का पतन इन दो कारणों से
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शुरू होता है। ग्रीट फॉर पावर और ईगो फॉर
23:46
डोमिनेंस। लोभ और अहंकार दो विष जो
23:49
व्यक्ति को बाहर से नहीं भीतर से जलाते
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हैं। विधुर नीति समाधान भी देती है।
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विनम्रता से जो झुकता है वही ऊंचा उठता
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है। विनम्रता का अर्थ यह नहीं कि आप कमजोर
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हैं बल्कि यह कि आप सशक्त हैं पर शांति
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में है। मॉडर्न लीडरशिप भी यही सिखाती है।
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हंबल लीडर्स बिल्ड ट्रस्ट एोगेंट वंस
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बिल्ड फियर। विदुर कहते हैं जो व्यक्ति
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सबका आदर करता है वह स्वयं आदर का पात्र
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बन जाता है। हर सफलता के बाद स्वयं से कहो
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मैं कारण नहीं माध्यम हूं। यह सोच अहंकार
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को मिटा देती है। जो झुकना जानता है वही
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टूटने से बचता है। तो दोस्तों विदुर नीति
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का चौथा सूत्र हमें यह सिखाता है कि
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मनुष्य को बाहर के शत्रु नहीं हराते। उसे
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उसके भीतर के दोष आते हैं। लोभ उसे असंतोष
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में बांधता है और अहंकार उसे अकेलेपन में
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पर जो व्यक्ति संतोष और विनम्रता धारण कर
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लेता है वह भीतर से मुक्त हो जाता है।
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विदु नीति का सार यही है। जहां संतोष वहां
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शांति है। जहां विनम्रता है वहां विजय है
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और जब व्यक्ति लोभ और अहंकार से ऊपर उठ
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जाता है तब वह स्वयं को जानने लगता है। वह
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जानता है कि सच्ची पहचान दूसरों से नहीं
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अपने भीतर के प्रकाश से होती है। अगले और
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अंतिम भाग में हम विदुर नीति का पांचवा
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रहस्य जानेंगे। स्वयं की पहचान नोइंग द
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सेल्फ जहां विदुर बताते हैं कि व्यक्ति को
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पहले दूसरों ने ही अपने भीतर के मनुष्य को
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पहचानना चाहिए। क्योंकि जो स्वयं को जानता
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है, वह किसी से नहीं डरता। धन्यवाद।