Science का मतलब — सच, facts, research…
लेकिन क्या कभी सोचा है कि सच अगर किसी Powerful System को नुकसान पहुँचाए
तो उसे छुपा भी दिया जाता है?
इस किताब Naked Science में Laura Nader दिखाती हैं:
🔻 कौन तय करता है “Scientific Truth”?
🔻 Expert कौन बनता है? और कौन “ignorant”?
🔻 Media कैसे सच को control करता है?
🔻 Traditional Knowledge को क्यों दबाया जाता है?
🔻 Science profit के लिए काम कर रही है या humanity के लिए?
अगर आप चाहते हो कि आपकी सोच
blind belief से निकलकर real awareness में आए…
तो यह video must watch है!
📚 Book: Naked Science
✍️ Editor: Laura Nader
📌 Hindi Audiobook Summary by: Think Better Hindi
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0:00
नेकड साइंस एडिटेड बाय लोरा नदिर। साइंस
0:05
सच बताती है या सिर्फ सत्ताधारी लोगों का
0:08
सच? हम सब मानते हैं कि साइंस सबसे ज्यादा
0:12
फेयर है। साइंस फैक्ट देती है, ट्रुथ
0:15
बताती है, लॉजिक पर चलती है। यह हमारी सोच
0:18
है। लेकिन लोरा नदीर कहती हैं, साइंस
0:22
हमेशा न्यूट्रल नहीं होती। कई बार साइंस
0:25
वह बताती है जो पावरफुल लोग चाहते हैं।
0:28
यानी साइंस भी इंसानों के हाथ में है और
0:32
इंसान जहां होगा वहां बॉयज पॉलिटिक्स और
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इनफ्लुएंस भी होते हैं। यह किताब हमें
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सिखाती है साइंस को कौन कंट्रोल करता है?
0:42
नॉलेज किस दिशा में ले जाया जाता है?
0:45
एक्सपर्ट सच बताते हैं या सिर्फ वह जो
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उन्हें कहना पड़ता है। यह एक फाइट है
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ट्रुथ वर्सेस पावर और हम इसका हिस्सा हैं।
0:56
साइंस की असली तस्वीर दुनिया से छुपी हुई।
1:00
हम यह मानते हैं कि साइंस ऑब्जेक्टिव है।
1:02
लेकिन बहुत बार फंडिंग सरकारें देती हैं
1:05
रिसर्च कंपनीज। करवाती हैं यूनिवर्सिटीज
1:09
पर पॉलिटिक्स का असर होता है। साइंटिस्ट
1:12
भी करियर प्रेशर में डिसीजंस लेते हैं।
1:15
ऐसे में साइंस सच नहीं अप्रूव्ड ट्रुथ
1:19
बताती है। किताब कहती है जिसके पास पैसा
1:22
है वह तय करता है कि क्या रिसर्च होगी और
1:27
क्या नहीं। यानी रिसर्च की दिशा पावरफुल
1:30
इंस्टीटशंस सेट करती है। एक्सपर्ट कौन और
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उनकी लॉयल्टी किसके लिए? एक्सपर्ट वही
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बनता है जिसे एजुकेशन सिस्टम प्रोड्यूस
1:41
करता है और एजुकेशन सिस्टम उनके कंट्रोल
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में होता है जिनके पास रिसोर्सेज और
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अथॉरिटी हो। इसलिए कई बार एक्सपर्ट जनता
1:51
का नहीं पावरफुल लोगों की सर्विस करते
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हैं। हम टीवी पर किसी एक्सपर्ट को देखते
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हैं और सोचते हैं यह सच्चाई बता रहा है।
2:00
पर किताब कहती है कभी-कभी एक्सपर्ट सच
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नहीं सबसे कन्वीनिएंट वर्जन बताते हैं।
2:07
क्वेश्चन पूछना सबसे खतरनाक काम। रियल
2:11
साइंस सवाल पूछने से पैदा हुई है। लेकिन
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आज सिस्टम कहता है अनकंफर्टेबल क्वेश्चंस
2:17
मत पूछो। उदाहरण पोल्यूशन पर सवाल पूछो
2:21
इंडस्ट्री नाराज। मिलिट्री प्रोजेक्ट्स पर
2:24
पूछो गवर्नमेंट नाराज। मेडिकल ट्रायल पर
2:27
सवाल फार्मा नाराज और माइनिंग डैमेज पर
2:31
बोलो कॉरपोरेट्स नाराज। यानी जिस सवाल से
2:35
पावर को दर्द हो वह सवाल अवैध कर दिया
2:38
जाता है। अगर साइंटिस्ट क्वेश्चन पूछे तो
2:42
फंडिंग बंद। करियर खत्म। इसीलिए सिस्टम
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साइंटिस्ट से कहता है सवाल मत पूछो। दिमाग
2:51
मत चलाओ।
2:53
वेस्टर्न नॉलेज वर्सेस अदर नॉलेज। पश्चिमी
2:57
विज्ञान कहता है हमारी नॉलेज बेस्ट है।
3:00
बाकी दुनिया सुपरस्टिशियल है। लेकिन लोरा
3:03
नदीर कहती हैं दुनिया में कई तरह का नॉलेज
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है। सबका अपना लॉजिक है। उदाहरण
3:10
इंडीजीनियस ट्राइब्स एनवायरमेंट को बेहतर
3:13
समझते हैं। आयुर्वेदिक साइंस ने हजारों
3:16
साल से इलाज किया है। ईस्टर्न सिस्टम्स
3:20
नेचर के साथ बैलेंस सिखाते हैं। लेकिन
3:23
वेस्टर्न साइंस इन्हें इनफीरियर मानता है
3:27
क्योंकि वह कंट्रोल चाहता है। साइंस का
3:30
असली खेल कुछ को वैलिड नॉलेज घोषित करो
3:35
बाकी को सूडो साइंस कहकर रिजेक्ट करो। यह
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भी पावर पॉलिटिक्स है। जब साइंस पब्लिक
3:42
एनिमी बन जाती है हिस्ट्री में। ऐसे बहुत
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से एग्जांपल्स हैं। एटॉमिक बम साइंस ने
3:48
बनाया और लाखों लोग मारे गए। केमिकल
3:52
वेपंस, बायोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट्स, सिगरेट
3:55
इंडस्ट्री के झूठ, स्मोकिंग सेब्स है।
3:58
विज्ञान ने सपोर्ट किया। ऑयल कंपनीज ने
4:02
क्लाइमेट चेंज छुपाया। साइंटिस्ट ट्रुथ
4:05
देने के बजाय पावरफुल लोगों के झुकाव में
4:09
काम आए। किताब का सीधा प्रश्न, साइंस का
4:13
मकसद ह्यूमैनिटी है या अथॉरिटी की सर्विस।
4:18
अब बात करते हैं जब साइंस रिस्क को छुपाती
4:22
है। पावर प्लस साइंस मतलब रिस्क का ट्रुथ
4:26
छुप जाता है। उदाहरण न्यूक्लियर प्लांट्स
4:29
सेफ बताए गए लेकिन डिजास्टर्स प्रूव कर गए
4:32
ट्रुथ कहीं और था। पेस्टिसाइड्स
4:35
बेनिफिशियल बताए गए लेकिन नेचर को खतरा
4:39
हुआ। न्यू मेडिसिंस जल्दी अप्रूव हुई और
4:42
साइड इफेक्ट्स छुपाए गए। एक्सपर्ट्स कहते
4:45
रहे सब ठीक है पर असलियत ही भविष्य दांव
4:49
पर है। किताब कहती है अगर रिस्क छुपा है
4:53
तो साइंस नहीं पॉलिटिक्स है। साइंटिस्ट को
4:57
बोलने नहीं दिया जाता। वह सच बोलने की
4:59
कोशिश करते हैं। उनकी फंडिंग रोकी जाती
5:02
है। उनके रेपुटेशंस खराब की जाती है।
5:05
उन्हें कॉनस्परेसी वाला बता दिया जाता है।
5:08
यूनिवर्सिटीज उन्हें बाहर कर देती है।
5:11
सिस्टम उन्हें कहता है चुप रहो वरना
5:15
गुमनाम कर दिए जाओगे। साइंस का आज साहसी
5:18
वॉइस साइंस को आज साहसी वॉइसेस की जरूरत
5:22
है जो पावर से ना डरे और इस खेल में
5:26
पब्लिक हारेगी। हम लोग न्यूज़ में जो
5:29
सुनते हैं वह साइंटिफिक ट्रुथ लगता है।
5:32
जबकि अक्सर वह मार्केट स्ट्रेटजी पॉलिटिकल
5:36
नैरेटिव कॉर्पोरेट एजेंडा होता है। लोरा
5:40
नादिर कहती हैं अगर विज्ञान का इस्तेमाल
5:43
कंट्रोल के लिए होगा तो कॉमन पीपल हमेशा
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हारेंगे। नॉलेज लोक हित से हटकर प्रॉफिट
5:50
हित हो गया है। अब आगे चलते हैं।
5:57
सच को कौन दबाता है? साइंस या पावर। पार्ट
6:01
वन वन में हमने देखा कि साइंस हमेशा
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न्यूट्रल नहीं होती। अब हम समझेंगे सच को
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दबाने की तकनीकें और इस खेल में मीडिया और
6:10
एक्सपर्ट कैसे काम करते हैं। साइंस में
6:13
अनवांटेड ट्रुथ का क्या होता है? जब
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रिसर्च के नतीजे पावरफुल लोगों के
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इंटरेस्ट के खिलाफ हो तब अक्सर यह होता है
6:22
उस रिसर्च पर शक किया जाता है। साइंटिस्ट
6:25
को बदनाम किया जाता है। फंडिंग रोक ली
6:29
जाती है। पेपर पब्लिश नहीं होने दिया
6:32
जाता। मीडिया कवरेज बंद कर दिया जाता।
6:35
यानी सब अगर तकलीफ दे, सच अगर तकलीफ दे तो
6:40
उसे सच मत कहो। और धीरे-धीरे वह रिसर्च
6:43
गायब कर दी जाती है।
6:46
मीडिया मतलब ट्रुथ की सबसे बड़ी गेटकीपर।
6:50
ज्यादातर लोग साइंस की खबर मीडिया से
6:52
जानते हैं। इसका मतलब अगर मीडिया बोल दे
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यह सेफ है तो लोग मान लेंगे। और अगर
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मीडिया किसी ट्रुथ को रोक दे तो दुनिया को
7:01
पता ही नहीं चलेगा कि क्या हो रहा है।
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मीडिया वही दिखाता है जो सेलिंग हो। जिसकी
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परमिशन हो जिससे पावरफुल खुश हो। नॉलेज अब
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सवालों से नहीं ट्रेंडिंग टॉपिक्स से तय
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होता है। एग्जांपल वन स्मोकिंग को सेफ
7:18
बताया गया। कई सालों तक सिगरेट कंपनियों
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ने साइंटिस्ट को हायर किया। जिनका काम था
7:24
बताना। स्मोकिंग हार्मफुल नहीं है। चिंता
7:26
मत करो। मीडिया ने यह प्रोपेगेंडा फैलाया।
7:29
गवर्नमेंट ने इग्नोर किया। डॉक्टर्स पर
7:32
प्रेशर डाला गया। पर रियलिटी मिलियंस ऑफ
7:36
डेथ्स, कैंसर, एपिडेमिक। फिर ट्रुथ सामने
7:40
आया लेकिन नुकसान तब तक हो चुका था। साइंस
7:43
ने सच बताया नहीं। सच छुपाया। एग्जांपल टू
7:48
ऑयल कंपनीज वर्सेस क्लाइमेट चेंज। 1970
7:52
में ही रिसर्च कह रही थी क्लाइमेट चेंज
7:55
सीरियस खतरा है। लेकिन ऑयल कंपनीज ने अपनी
7:59
रिपोर्ट्स सीक्रेट कर दी और मीडिया में
8:02
फैलाया यह सब एग्जरेशन है। कोई खतरा नहीं।
8:07
मकसद प्रॉफिट बचाना भले फ्यूचर खतरे में
8:10
जाए। आज ग्लोबल वार्मिंग रियल है लेकिन
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डेकेड्स तक दुनिया से छुपाया गया।
8:18
फंडिंग मतलब रिसर्च को कंट्रोल करने का
8:21
हथियार। कॉर्पोरेट और सरकार जो रिसर्च
8:24
करने को पैसे देते हैं, वह तय करते हैं
8:27
कौन सा टॉपिक इंपॉर्टेंट है? कौन सा टॉपिक
8:31
इग्नोर करना है? क्या रिजल्ट एक्सेप्टेबल
8:34
है? क्या रिजल्ट छुपाना है? साइंटिस्ट
8:37
हजारों एक्सपेरिमेंट करें लेकिन फंडिंग
8:41
वाला ही बॉस है। अगर रिजल्ट खराब लगे पेपर
8:45
रिजेक्ट करियर खत्म। नेक्स्ट प्रोजेक्ट
8:49
कैंसिल। इसीलिए साइंटिस्ट सेफ खेलने लगते
8:53
हैं। साहस साइंस की जरूरत है और डर साइंस
8:57
की मौत। अब बात करते हैं फैक्ट वर्सेस
9:00
ऑफिशियल फैक्ट। आज की दुनिया में ट्रुथ दो
9:04
तरह का है। रियल ट्रुथ एविडेंस बताता है।
9:07
ऑफिशियल ट्रुथ अथॉरिटी डिसाइड करती है।
9:11
रियल ट्रुथ नेचर क्या कहती है? ऑफिशियल
9:14
ट्रुथ मार्केट क्या चाहता है? रियल ट्रुथ
9:17
सवाल उठाता है और ऑफिशियल ट्रुथ सवाल दबा
9:22
देता है। रियल ट्रुथ रिस्क बताता है और
9:26
ऑफिशियल ट्रुथ रिस्क छुपाता है। अगर
9:29
ऑफिशियल ट्रुथ के खिलाफ जाओ तो तुम गलत
9:32
भले एविडेंस सही हो। अब चलते हैं
9:36
यूनिवर्सिटी। इंडिपेंडेंस या कंट्रोल। हम
9:39
सोचते हैं यूनिवर्सिटीज फ्री हैं। प्योर
9:41
नॉलेज देती हैं। लेकिन असल में गवर्नमेंट
9:44
ग्रांट्स पर डिपेंड, कॉर्पोरेट
9:47
स्पॉन्सरशिप पर डिपेंड, पॉलिटिक्स पर
9:50
डिपेंड, रिजल्ट जो रिसर्च अनकंफर्टेबल
9:53
ट्रुथ दिखाए उसके खिलाफ एक्शन होता है।
9:57
साइंटिस्ट को कहा जाता है साइंस करो।
10:00
लेकिन लिमिट्स में लोरा ना इसे कहती है
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कंट्रोलोल्ड नॉलेज प्रोडक्शन। यानी ट्रुथ
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उतना ही प्रोड्यूस करो जितना पावरफुल अलव
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करें।
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डिसेंटिंग साइंटिस्ट इज इक्वल टू थ्रेट
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हिस्ट्री में जो साइंटिस्ट पावर को चैलेंज
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करते रहे उन्हें कॉनस्परेसी थ्यरिस्ट कहा
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गया। उनकी क्रेडिबिलिटी खत्म हो गई। और या
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खत्म की गई? करियर डिस्ट्रॉय किया गया।
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पेपर्स रिजेक्ट किए गए और लेक्चर्स
10:31
कैंसिल। आईडिया क्लियर है जो सवाल पूछे वो
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एनिमी लेकिन अगर सवाल नहीं तो साइंस कहां
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साइंस मतलब सवाल और यदि सवाल ही बंद तो
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बचा क्या अब चलते हैं ग्लोबल नॉलेज
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मोनोपोली की तरफ वेस्टर्न साइंस खुद को
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कहती है हम ही सही है बाकी देशों का नॉलेज
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कच्चा इमैच्योर अनसाइंटिफिक यह एटीट्यूड
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सिर्फ बायस नहीं है मोनोपोली किताब कहती
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है साइंस सिर्फ ट्रुथ नहीं खोज रही दुनिया
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पर कंट्रोल भी बना रही है। फूड, मेडिसिन,
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एनवायरमेंट, एजुकेशन, हर सिस्टम पर
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इंटरेस्ट, नॉलेज। अब पावर टूल है। सच, कम,
11:14
स्ट्रेटजी, ज्यादा। रिस्क क्या है? पब्लिक
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को आखिरी में पता चलना। जब डिसीजंस लिए
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जाते हैं, पब्लिक से रिस्क छुपाया जाता
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है। न्यू ड्रग्स बाद में साइड इफेक्ट पता
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चलता है। टेक्नोलॉजी बाद में पोल्यूशन
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दिखता है। केमिकल्स बाद में हेल्थ इंपैक्ट
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और न्यूक्लियर बाद में डिजास्टर। पहले
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मार्केट लॉन्च बाद में फैक्ट्स
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डिस्क्लोज़र। क्यों? प्रॉफिट पहले और
11:44
ह्यूमैनिटी बाद में।
11:47
अब चलते हैं एक्सपर्ट कौन और इग्नोरेंट
11:50
कौन? रूल कौन बनाता है। पिछले पार्ट में
11:54
हमने देखा कि साइंस पर पावर का कितना
11:56
कंट्रोल है। अब हम बात करेंगे एक्सपर्ट
11:59
कैसे चुने जाते हैं? कैसे साइंटिफिक और
12:03
किसी अनसाइंटिफिक कहा जाता है? ट्रेडिशनल
12:07
नॉलेज को क्यों दबाया जाता है? एक्सपर्ट
12:10
मतलब नॉलेज का गेटकीपर। आज दुनिया में जो
12:14
भी बड़े डिसीजंस होते हैं, क्या सेफ है?
12:17
क्या डेंजरस है? कौन सी टेक्नोलॉजी सही
12:20
है? सबका जवाब वही देगा जिसे एक्सपर्ट
12:23
डिक्लेअर किया जाए। लेकिन एक्सपर्ट
12:26
डिक्लेअ कौन करता है? वही पावरफुल लोग जो
12:29
साइंस फंडिंग करते हैं। इसीलिए एक्सपर्ट
12:32
का मतलब सिर्फ नॉलेज नहीं सिस्टम के रूल्स
12:36
फॉलो करना। अगर तुम सिस्टम के खिलाफ बोलो
12:39
तो चाहे तुम्हारे पास ट्रुथ हो तुम
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एक्सपर्ट नहीं माने जाओगे। वेस्टर्न साइंस
12:46
कहती है सिर्फ हम सही हैं। वेस्टर्न
12:49
कंट्रीज अपने साइंटिफिक मॉडल को दुनिया की
12:52
एकमात्र सही नॉलेज बताती है। बाकी देशों
12:56
के नॉलेज को कहा जाता है फोक लो
12:59
सुपरस्टिट्यूशन बैकवर्ड थिंकिंग। लेकिन
13:02
याद रखिए किसानों की पारंपरिक खेती,
13:05
आयुर्वेदिक हीलिंग, चंद्र कैलेंडर, मौसम
13:09
की लोकल भविष्यवाणी यह सब सदियों के अनुभव
13:13
से बने हैं। यह भी साइंस ही है। बस अलग
13:16
रूप में लोरा ना कहती है, साइंस केवल
13:19
आंसर्स नहीं देता। यह दूसरों के आंसर्स को
13:22
गलत भी साबित करता है।
13:26
इंडीजीनियस नॉलेज को क्यों दबाया जाता है?
13:29
क्योंकि इंडीजीनियस सिस्टम्स लोकल
13:32
रिसोर्सेज पर बेस्ड सेल्फ रिलैंड चीप और
13:36
एक्सेसिबल अगर लोग खुद प्रॉब्लम सॉल्व कर
13:39
लें तो बड़ी कंपनीज़ पैसे कैसे कमाएंगी?
13:43
इसीलिए सिस्टम कहता है ट्रेडिशनल नॉलेज
13:46
अनसाइंटिफिक है और फिर वही नॉलेज लेटर
13:50
रिसर्च करके पेटेंट लेकर मार्केट में बेच
13:54
दिया जाता है। यानी पहले उन्हें बैकवर्ड
13:57
कहो फिर उनका नॉलेज चोरी करके प्रॉफिट
14:00
कमाओ। एग्जांपल फार्मर की सीड्स वर्सेस
14:03
हाइब्रिड सीड्स। पहले किसानों के पास
14:06
स्थानीय बीज थे जो हर साल काम आते थे। फिर
14:10
कंपनीज आए और बोली हाइब्रिड सीड्स
14:13
साइंटिफिक है। पुराना सीड्स बेकार। अब
14:16
क्या हुआ? सीड्स हर साल खरीदने पड़ते हैं।
14:19
पेस्टिसाइड और केमिकल डिपेंडेंस बढ़ा।
14:22
प्रॉफिट कंपनीज को नुकसान किसान को। पर
14:26
इसे कहा गया साइंटिफिक प्रोग्रेस।
14:30
और एक एग्जांपल आयेदा और हर्बल नॉलेज।
14:33
सदियों से हर्ब्स का इस्तेमाल हीलिंग के
14:36
लिए होता था। फिर मॉडर्न फार्मा बोलती है
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इसके पास लैब एविडेंस नहीं है। लेकिन बाद
14:41
में उन हर्ब्स से मेडिसिन बनाई जाती है।
14:45
पेटेंट ले लिया जाता है और फिर वही चीज कई
14:48
गुना दाम में बेची जाती है। इसके बाद लेबल
14:52
बदल जाता है। मॉडर्न साइंटिफिक मेडिसिन
14:56
ट्रांसफॉर्मेशन नहीं रिब्रांडिंग।
14:59
ऑब्जेक्टिविटी के नाम पर कल्चर को इग्नोर।
15:02
साइंस कहती है हम फैक्ट्स देखते हैं
15:04
इमोशंस नहीं लेकिन यह भी फैक्ट है कि हर
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साइंटिस्ट किसी सोसाइटी से आता है। उसकी
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अपब्रिंगिंग में बायसेस होते हैं। उसके
15:14
बिलीव्स रिसर्च को इन्फ्लुएंस करते हैं।
15:17
यानी साइंस प्योर नहीं कल्चर की इफेक्ट
15:20
वाली नॉलेज है। फिर साइंस कल्चर को जज भी
15:24
करती है। सही गलत एडवांस्ड प्रिमिटिव
15:28
पावरफुल कल्चर अपने रूल इंपोज करती है और
15:32
दूसरों को इग्नोरेंट डिक्लेअर कर दिया
15:35
जाता है। सिटीजन साइंटिस्ट
15:39
डर सिस्टम को किस्से है? सिटीजन साइंटिस्ट
15:43
वो है जो खुद डाटा कलेक्ट करें, खुद
15:46
क्वेश्चनिंग करें, खुद ट्रुथ वेरीफाई
15:48
करें। अगर आम लोग खुद सोचने लगे तो
15:51
एक्सपर्ट काेंस कम हो जाएगा। इसलिए सिस्टम
15:55
चाहता है लोग बस माने सवाल ना पूछें
15:58
डिसीजन दूसरों पर छोड़ दें लेकिन वास्तविक
16:02
ग्रोथ तब है जब हर इंसान ज्ञान में हिस्सा
16:06
ले नॉलेज सबका हक है किसी का मोनोपोली
16:09
नहीं अब चलते हैं फियर लेबलिंग की तरफ
16:13
डिसेंट को दबाने का तरीका अगर कोई
16:16
विशेषज्ञ सिस्टम से डिसए्री करें उसे कहा
16:19
जाता है एंटी साइंस उसे मीडिया में मजाक
16:22
बनाया जाता है उसे कॉनस्परेसी थ्यरिस्ट
16:25
कहा जाता है। गोल ट्रुथ को नहीं ट्रुथ
16:29
बोलने वाले को साइनेंस करना। यही तरीका हर
16:32
पावरफुल सिस्टम यूज करता है। लेबल देम,
16:36
डिस्क्रिटेड देम, रिमूव देम। अब आगे चलते
16:40
हैं।
16:42
साइंस किसकी है और हमें अपनी आवाज कैसे
16:45
वापस लेनी है। अब तक हमने देखा कि साइंस
16:48
की मोनोपोली कैसे बनाई गई। अब बात करेंगे
16:51
सॉल्यूशन फ्यूचर और हमारी रोल की। रियल
16:55
साइंस मतलब ह्यूमैनिटी की सेवा। साइंस का
16:58
असली मकसद था इंसान को मजबूत बनाना,
17:01
प्रॉब्लम्स सॉल्व करना, दुनिया को बेहतर
17:04
बनाना। लेकिन जैसे-जैसे पावर और पैसा बढ़े
17:07
साइंस ने गोल्स बदल दिए। ट्रुथ मतलब
17:11
प्रॉफिट ह्यूमैनिटी मतलब पॉलिटिक्स पब्लिक
17:14
गुड मतलब कॉर्पोरेट गुड लोरा ना चेतावनी
17:18
देती है अगर साइंस पब्लिक की नहीं हुई तो
17:22
साइंस का फ्यूचर भी सिक्योर नहीं
17:24
पार्टिसिपेटरी साइंस नॉलेज सबका हक आज जो
17:28
जरूरी है साइंस सिर्फ लैब्स तक ना रहे
17:32
कॉमन लोग उसमें हिस्सा लें क्वेश्चंस हर
17:35
कोई पूछ सके डिसीजंस में पब्लिक की वॉइस
17:39
हो या यानी सिटीजन प्लस साइंटिस्ट मतलब
17:42
रियल साइंस जब जनता सवाल पूछती है ट्रुथ
17:46
छुपाया नहीं जा सकता। ट्रांसपेरेंसी मतलब
17:50
सच को छुपाया नहीं जाए। साइंस में तीन
17:53
बड़े बदलाव जरूरी। पुरानी सोच डाटा
17:56
सीक्रेट नई सोच डाटा ओपन। पुरानी सोच
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एक्सपर्ट्स डिसाइड। नई सोच पीपल को
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डिसाइड। पुरानी सोच मार्केटिंग फर्स्ट, नई
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सोच ह्यूमैनिटी फर्स्ट। उसके कुछ ग्राउंड
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रूल्स, हर रिसर्च के रिस्क पब्लिक को
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बताओ। फंडिंग सोर्स हमेशा डिस्क्लोज़ करो।
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मीडिया पर मोनोपोली खत्म करो और साइंस को
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दूसरों की भाषा में समझाओ। सच छुपाकर आगे
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नहीं बढ़ा जा सकता।
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डायवर्सिटी ऑफ नॉलेज मतलब स्ट्रांगर
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साइंस। लोरा ना कहती है डवर्स नॉलेज मतलब
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बेटर सॉलशंस मतलब आयेदा प्लस मॉडर्न
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मेडिसिन इंडीजीनियस फार्मिंग प्लस न्यू
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टेक्नोलॉजी लोकल आइडियाज प्लस ग्लोबल
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रिसर्च जब कल्चरर्स साथ मिलते हैं साइंस
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की स्पीड भी बढ़ती है और सॉलशंस भी ज्यादा
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प्रैक्टिकल बनते हैं। नॉलेज को कंपेयर
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नहीं कंबाइन करना चाहिए। क्वेश्चन
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एवरीथिंग माइंडसेट अप नाउ सबसे पावरफुल
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सवाल व्हाई प्रूफ क्या है? पब्लिक बेनिफिट
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कहां है? रिस्क कहां है? अगर हम सवाल नहीं
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करेंगे तो हमारे डिसीजंस कोई और करेगा।
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पावर यही चाहता है कि लोग सवाल पूछना भूल
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जाएं। सवाल मतलब आजादी, साइलेंस मतलब
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कंट्रोल। ज्ञान वहीं से शुरू होता है जहां
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हम पूछना शुरू करते हैं। साइंस के साथ
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सोसाइटी मिल जाए तो इक्वल पार्टनरशिप।
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साइंस को चाहिए समाज की जरूरतों से
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जुड़ना, ग्राउंड लेवल समाधान देना, बड़ी
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कंपनियों के बजाय लोगों की सुनना और
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सोसाइटी को चाहिए ब्लाइंड ट्रस्ट छोड़ना,
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एविडेंस डिमांड करना, पॉलिसी डिसीजंस में
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भाग लेना। फ्यूचर तभी स्ट्रांग होगा जब
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दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ेंगे। उदाहरण
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के तौर पर कोविड-19 ने क्या सिखाया?
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वैक्सीनंस क्यों? लॉकडाउन कैसे? डाटा
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किसका? डिसीजन प्रोसेस क्या? पब्लिक ने
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पहली बार बड़े पैमाने पर साइंस से सवाल
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पूछे। चीख साफ थी। हमें सिर्फ रिजल्ट मत
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बताओ। प्रोसेस भी समझाओ। यही नई दुनिया की
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शुरुआत है। नॉलेज एस पावर वापस लेने का
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वक्त। लोरा नादेर का कोर मैसेज नॉलेज एक
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वेपन है। इसे इलीट के पास सेंट्रलाइज्ड मत
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रहने दो। इसे वापस जनता तक पहुंचाओ। जब
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जनता इनफॉर्म्ड होती है, धोखा रुकता है,
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गलत पॉलिटिक्स रुकती है, हेल्थ सुधरती है,
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डेमोक्रेसी मजबूत होती है। असली शक्ति
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इंफॉर्मेशन है। हमारी जिम्मेदारी हम सबकी
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ड्यूटी है। सच की खोज करना। जो गलत दिखे
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पूछना जो छुपाया जाए उजागर करना जो
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मोनोपोली में हो सबके साथ बांटना हर
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व्यक्ति समाज का साइंटिस्ट है जो अपने
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अनुभव से सीखता है नॉलेज का राइट सिर्फ
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लैब में बैठे एक्सपर्ट्स का नहीं हर इंसान
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का है। नाउ द फाइनल लर्निंग फ्रॉम निकेट
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साइंस साइंस इनकंप्लीट है अगर उसमें
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पब्लिक वॉइस ना हो ट्रुथ कमजोर पड़ जाता
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है जब पावर उसे दबा दे साइंटिफिक
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प्रोग्रेस तभी मीनिंगफुल जब इंसान सिक्योर
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हो ना कि प्रॉफिट भविष्य वही बेहतर
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बनाएंगे जो सवाल पूछते रहेंगे। लोरा ना
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हमें याद दिलाती है साइंस को बचाना है तो
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उसे सिर्फ साइंस वालों के हाथ में मत
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छोड़ो। साइंस हम सबकी है और समाज को चाहिए
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अपने हक का ज्ञान वापस लेना। दिस एंड इज
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एक्चुअली अ न्यू बिगिनिंग। अब हमें पता है
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ट्रुथ किस तरह छुपता है। एक्सपर्ट्स कैसे
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बनाए जाते हैं? नॉलेज किसका कंट्रोल है और
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कैसे हम बदलाव ला सकते हैं। अब बारी है
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हमारी आवाज की। जहां सवाल उठते हैं वहीं
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से नया फ्यूचर बनता है। सोचो और सोच को
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आगे बढ़ाओ क्योंकि ज्ञान सबका अधिकार है।
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थैंक यू।
#People & Society
#Science
#Sensitive Subjects
