0:01
सोचिए अगर मैं आपसे कहूं कि आपके दिमाग की वायरिंग को आप खुद बदल सकते हैं तो आप
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मानोगे। मतलब अगर बचपन से आपने सोच लिया कि मैं तो बस एवरेज हूं। मेरे बस की बात
0:14
नहीं या मेरी आदतें बदल ही नहीं सकती। तो साइंस कहती है यह सब झूठ है क्योंकि आपके
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दिमाग के न्यूरॉन्स कोई पक्के सीमेंटेड ब्लॉक्स नहीं है। वो प्लास्टिक की तरह
0:25
फ्लेक्सिबल है। एंड द बेस्ट पार्ट यू हैव द पावर टू रिवायर देम। चेफरी शॉट्स इसी को
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बोलते हैं। द ब्रेन इज शेप्ड बाय द माइंड। दिमाग को मन शेप करता है। अब ध्यान दीजिए
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ब्रेन तो फिजिकल ऑर्गन है लेकिन माइंड एक प्रोसेस है। एक सोचने समझने की शक्ति है
0:44
और वही शक्ति आपके दिमाग की स्ट्रक्चर को बदल सकती है। आज के इस पार्ट वन में हम
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समझेंगे न्यूरोप्लास्टिसिटी की दुनिया ओसीडी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर से
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निकलकर हैबिट चेंज तक और कैसे आप अपनी सोच से अपने दिमाग का नक्शा बदल सकते हैं।
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चैप्टर वन माइंड वर्सेस ब्रेन। फर्क कहां है? बहुत लोग माइंड और ब्रेन को सेम समझते
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हैं, लेकिन फर्क साफ है। ब्रेन इज इक्वल टू फिजिकल ऑर्गन जैसे हार्ट या लंग्स।
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माइंड इज इक्वल टू थॉट्स, अवेयरनेस, कॉन्शियसनेस। आपकी सोचने और डिसाइड करने
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की शक्ति। इमेजिन कीजिए आपका ब्रेन हार्डवेयर है और आपका माइंड सॉफ्टवेयर।
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अगर हार्डवेयर थोड़ा वीक भी हो, सॉफ्टवेयर उसे रिप्रोग्राम कर सकता है। स्क्वाट्स
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कहते हैं, द माइंड हैज़ द पावर टू चेंज द ब्रेन वायरिंग। मन के पास ताकत है कि वह दिमाग की वायरिंग बदल सके। एग्जांपल लीजिए
1:42
हमारे इंडिया में कई लोग कहते हैं यार मेरी आदत है सुबह देर तक सोने की। मैं बदल
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नहीं सकता। बट न्यूरोप्लास्टिसिटी कहती है यू कैन। रोज थोड़ा सा पैटर्न बदलकर आप नई
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न्यूरल पाथवेज बना सकते हैं। ओसीडी का एग्जांपल रिवायरिंग इन एक्शन। जेफरी
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स्क्वाड्स खुद साइकेट्रिस्ट थे और उन्होंने ओसीडी पेशेंट्स के साथ काम किया।
2:06
ओसीडी में दिमाग बार-बार सेम इंट्रूसिव थॉट जनरेट करता है। जैसे हाथ गंदे हैं।
2:13
वाश करो और पेशेंट बार-बार धोता है। अब सोचिए ब्रेन की वायरिंग इतनी स्ट्रांग हो
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चुकी है कि वो सेम लूप बार-बार रिपीट कर रहा है। लेकिन स्क्वाड्स ने एक तरीका
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निकाला जिसे वो कहते हैं रीलेबल, रिफ्रेम, रिफोकस रिवैल्यू। चलो इसे इंडियन स्टाइल
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एग्जांपल से समझते हैं। मान लीजिए आपकी आदत है हर 10 मिनट में WhatsApp चेक करने
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की। ब्रेन ने लूप बना लिया है। अब यह टेक्निक कहती है रीलेबल। जब अर्ज आए तो
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कहो यह WhatsApp अर्ज है। असली जरूरत नहीं। रिफ्रेम।
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इसे डिजीज सिम्टम की तरह देखो। जैसे यह मेरे दिमाग का ट्रिक है। तीसरा रिफोकस।
3:00
कुछ और काम में ध्यान लगाओ। जैसे वॉक कर लो। चौथा रिवैल्यू बाद में सोचो इस अर्ज
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की असली वैल्यू जीरो थी। रिजल्ट धीरे-धीरे ब्रेन में नई वायरिंग बनती है। मॉडर्न
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एनालॉगी Instagram स्क्र आजकल Instagram का स्क्रोल भी ओसीडी जैसा ही है। आप सोचते
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हो बस दो रील्स देखूंगा और हाफ एन आवर निकल जाता है। ब्रेन में डोपामिन लूप बन चुका है। लेकिन अगर आप अवेयरनेस लाकर कहो
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यह मेरी हैबिट लूप है। रियल जरूरत नहीं है। और फोन साइड में रख दो तो आप न्यू
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वायरिंग क्रिएट कर रहे हो। याद रखो हर बार जब आप पुरानी हैबिट रेजिस्ट करते हो और नई
3:40
चॉइस लेते हो आप अपने ब्रेन का एक नया वर्जन बना रहे हो। अब साइंस के एंगल से
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न्यूरोप्लास्टिसिटी को एक्सप्लेन करते हैं। पहले साइंटिस्ट मानते थे कि दिमाग की वायरिंग फिक्स है। लेकिन अब रिसर्च कहती
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है हर बार जब आप कोई नया थॉट सोचते हो। नया न्यूरल पाथवे बनता है। बार-बार
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रेपटीशन से वह पाथवे स्ट्रांग हो जाता है। जैसे सड़क पर बार-बार चलने से पगडंडी बन
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जाती है। अगर उसे नहीं करते तो वह पाथवे वीक पड़ जाता है। इसको ही कहते हैं
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न्यूरॉन्स दैट फायर टुगेदर वायर टुगेदर। जो न्यूरॉन्स साथ में एक्टिवेट होते हैं,
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वह आपस में जुड़ जाते हैं। मतलब आपकी हर छोटी हैबिट लिटरली आपके ब्रेन का
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स्ट्रक्चर बदल रही है। सोचिए सचिन तेंदुलकर ने कितनी बार स्ट्रेट ड्राइव
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प्रैक्टिस किया होगा। हर बार जब बॉल हिट करते उनके ब्रेन में मोटर न्यूरॉन्स की वायरिंग स्ट्रांग होती। इसलिए जब रियल मैच
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में बॉल आया उनका दिमाग ऑटो मोड पर सेम शॉट प्ले करता। आपकी लाइफ भी ऐसे ही है।
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अगर बार-बार प्रोकस्ट्रिनेशन चूज़ करते हो तो दिमाग वही वायरिंग स्ट्रांग कर देगा।
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बट अगर आप बार-बार डिसिप्लिन चूज़ करते हो तो ब्रेन उसी ट्रैक पर चलेगा। आदत एक बार
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बनती नहीं है वह दिमाग कि जमीन पर बार-बार बीज बोने से लगती है। अब सवाल हम इसे अपनी
5:00
डेली लाइफ में कैसे यूज करें? चलो कुछ रिलेटिवल एग्जांपल्स लेते हैं। पहला फिटनेस अगर आप 18 से 30 एज ग्रुप में हो,
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आपको जिम जाने का मन नहीं करता। स्टार्ट स्मॉल रोज सिर्फ 10 पुश अप्स। ब्रेन को नया लूप दो। मिड एज स्ट्रेस। 30 से 45।
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अगर ऑफिस से लौटकर आप ऑटोमेटिकली टीवी ऑन कर देते हो तो एक नया रिचुअल क्रिएट करो। पहले 5 मिनट मेडिटेशन धीरे-धीरे नया
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वायरिंग बनेगा। फैमिली लाइफ 40 टू 55 बहुत लोग कहते हैं मेरा गुस्सा कंट्रोल नहीं होता। न्यूरोप्लास्टिसिटी कहती है जब भी
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ट्रिगर आए एक डीप ब्रेथ लेकर पॉज करो। हर बार पॉज लोगे नया सर्किट बनेगा। एक मेरे
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दोस्त का एग्जांपल चंडीगढ़ का राहुल। उसको हैबिट थी। हर रात लेट तक Netflix बिंच
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करता था। नेक्स्ट डे वो ऑफिस में थका रहता। मैंने उसे स्क्वाड्स की फोर स्टेप ओसीडी मेथड अप्लाई करने को कहा। पहले अर्च
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आते ही उसने कहा, "यह मेरी पुरानी हैबिट है।" फिर उसने रिफ्रेम किया यह मेरे दिमाग का ट्रिक है। फिर उसने फोन साइड में रखकर
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किताब उठाई। शुरुआत में मुश्किल लगा लेकिन 21 दिन के बाद उसका ब्रेन लिटरली रिवेयर
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हो गया। आज वो कहता है अब Netflix बिंच करने का अर्ज वैसे आता ही नहीं।
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सेल्फ डायरेक्टेड न्यूरोप्लास्टिसिटी इज द एसेंस ऑफ ह्यूमन फ्री विल। खुद अपनी
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डायरेक्शन में दिमाग की वायरिंग बदलना ही इंसानी स्वतंत्रता का असली रूप है। मतलब
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आप विक्टिम नहीं हो आप क्रिएटर हो। तो दोस्तों अभी तक आपने देखा कि कैसे आपका
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दिमाग आपके ब्रेन को बदल सकता है? लेकिन अब सवाल है क्या हर थॉट इतना पावरफुल है?
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क्या सिर्फ सोचने से फिजिकल चेंजेस हो जाते हैं? आगे हम एक्सप्लोर करेंगे क्वांटम फिजिक्स और माइंड का डीप कनेक्शन।
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कैसे आपकी सोच मैटर की दुनिया को भी बदल सकती है। स्टे ट्यूंड क्योंकि असली मजाब
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शुरू होता है। सोचिए क्या आपकी सोच भौतिक दुनिया यानी
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फिजिकल वर्ल्ड को भी प्रभावित कर सकती है? अगर मैं कहूं कि आपका ध्यान अटेंशन सिर्फ
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आपके दिमाग को ही नहीं बल्कि रियलिटी को भी शेप कर सकता है। तो क्या आप मानोगे?
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यहां आता है सबसे बड़ा ट्विस्ट। न्यूरोसाइंस अकेली नहीं बल्कि क्वांटम फिजिक्स भी यही कहती है। और यहीं से आता
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है एक बड़ा सवाल। क्या हम फ्री हैं? या हमारी जिंदगी सिर्फ न्यूरॉन्स और बायोलॉजी
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के हाथों की कठपुतली है? ऑथर इस पार्ट में हमें समझाते हैं। अटेंशन इज नॉट जस्ट अ
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पैसिव प्रोसेस। इट इज एन एक्टिव फोर्स दैट कैन रीशेप रियलिटी। यानी ध्यान कोई पैसिव
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प्रोसेस नहीं है। यह एक एक्टिव शक्ति है जो रियलिटी को बदल सकती है। चैप्टर 2 इज
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अबाउट क्वांटम फिजिक्स और कॉन्शियसनेस। सबसे पहले थोड़ा सिंपल फिजिक्स रिफ्रेश कर
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लें। क्लासिकल फिजिक्स कहती है दुनिया एक मशीन की तरह चल रही है। हर चीज कॉज इफेक्ट
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चैन से तय होती है। मतलब अगर आपको गुस्सा आया तो वह न्यूरॉन्स की फायरिंग की वजह से हुआ और न्यूरॉन्स की फायरिंग केमिस्ट्री
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की वजह से। तो फिर आप फ्री कहां हैं? लेकिन फिर आती है क्वांटम फिजिक्स। यह कहती है छोटे स्तर पर एट सब एटॉमिक लेवल
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चीजें प्रीडिटरमिंड नहीं है। पार्टिकल्स वेव की तरह बिहेव करते हैं और जब तक
8:12
इन्हें कोई ऑब्जर्व नहीं करता वह प्रोबेबिलिटी में एग्जिस्ट करते हैं। इसे कहते हैं ऑब्जर्वर इफेक्ट। मतलब जब आप
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किसी चीज पर ध्यान देते हो तो वह कोलैप्स होकर एक रियलिटी बन जाती है।
8:27
अब हम देखेंगे हाउ ऑब्जर्वर इफेक्ट। आवर डेली लाइफ।
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अब सोचिए यह सिर्फ लैब का कांसेप्ट नहीं है। आपकी जिंदगी में भी आपका ध्यान
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रियलिटी को कोलैप्स करता है। मान लो आप ऑफिस में बैठकर सोच रहे हो मेरा बॉस मुझे
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कभी एप्रिशिएट नहीं करता। आपका ध्यान उसी बात पर रहेगा तो आपका ब्रेन उसी परसेप्शन
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को बार-बार स्ट्रेंथन करेगा। रिजल्ट आपकी रियलिटी नेगेटिव बन जाएगी। लेकिन अगर आप
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कॉन्शियसली अटेंशन शिफ्ट करके सोचो। पॉस ने मुझे लास्ट मंथ एप्रिशिएट किया था और
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मैं अगली बार और बेहतर कर सकता हूं। तो आपका ब्रेन न्यू सर्किट बनाएगा और धीरे-धीरे आपकी रियलिटी बदलेगी। यही है
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माइंड का क्वांटम रोल। अब एक एग्जांपल लेते हैं। सोचिए आप एक
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स्टेडियम में बैठे हो। इंडिया वर्सेस पाकिस्तान का मैच चल रहा है। कोहली ने बैल बॉल को हिट किया। अब बॉल हवा में है। आप
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सोच रहे हो कैच हो जाएगा। दूसरा स्पेक्टेटर सोच रहा है सिक्स हो जाएगा। बॉल तो वही है लेकिन हर स्पेक्टेटर की
9:33
अटेंशन उसे अलग तरह से प्रिसीव करती है। साइंस कहती है माइक्रोस्कोपिक लेवल पर ऐसा
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ही होता है। पार्टिकल का आउटकम प्रोबेबिलिटी है। ऑब्जर्वर डिसाइड करता है कि कोलैप्स कैसे होगा। तो ध्यान दीजिए
9:47
आपका अटेंशन आउटकम को डिसाइड करता है।
9:53
ऑथर कहते हैं माइंड सिर्फ ब्रेन का प्रोडक्ट नहीं है। अगर ऐसा होता तो हम सब
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प्रीडटरमिंड रोबोट्स होते। लेकिन क्वांटम फिजिक्स का ऑब्जर्वर इफेक्ट दिखाता है कि
10:04
माइंड एक्टिवली इंटरफेयर करता है फिजिकल प्रोसेस में। द माइंड कैन अफेक्ट द
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फायरिंग पैटर्न्स ऑफ न्यूरॉन्स बाय द एक्ट ऑफ अटेंशन। मन सिर्फ न्यूरॉन्स को ऑब्जर्व
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करके उनकी फायरिंग पैटर्न को बदल सकता है। यह बात न्यूरोसाइंस में एकदम रेवोल्यूशन
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जैसी है। अब हम मेडिटेशन की बात करते हैं। अब सोचो
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हमारे इंडिया में सेंचुरी से सीन सो योगीस यही बोलते आए हैं। जैसा ध्यान करोगे वैसा
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बनोगे। ध्यान अटेंशन से ही रियलिटी शेप होती है। आज साइंस वही साबित कर रही है जब
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आप मेडिटेशन करते हो तो आप माइंडफुली अपने थॉट्स ऑब्जर्व करते हो। इससे ब्रेन की
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वायरिंग बदलती है जिसे कहते हैं न्यूरोप्लास्टिसिटी। यह क्वांटम फिजिक्स और एंशिएंट विज़डम का मिलन है। अब आता है
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बड़ा सवाल। क्या हम फ्री हैं? अगर ब्रेन सिर्फ केमिस्ट्री और बायोलॉजी है तो हम
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सिर्फ मशीनंस हैं। लेकिन ऑथर कहते हैं नहीं क्योंकि अगर अटेंशन मैटर को कोलैप्स
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कर सकता है तो हम कॉन्शियसली अपने दिमाग की डायरेक्शन बदल सकते हैं। इसे कहते हैं सेल्फ डायरेक्टेड न्यूरोप्लास्टिसी। मतलब
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आप चाहे तो अपनी आदतें बदल सकते हो। आप चाहे तो गुस्से पर काबू पा सकते हो। आप चाहे तो अपनी जिंदगी की डायरेक्शन बदल
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सकते हो। और यही है असली फ्री विल। आई।
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अब आगे बात करते हैं स्मार्टफोन नोटिफिकेशन के माध्यम से एक एग्जांपल के
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तौर पर। इमेजिन कीजिए आपके फोन में हर सेकंड WhatsApp, Instagram, ईमेल की नोटिफिकेशंस आ रही हैं। अगर आप हर बार
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रिएक्ट करते हो आपका ब्रेन मशीन की तरह काम कर रहा है। लेकिन अगर आप कॉन्शियसली
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डिसाइड करो मैं अभी एक घंटे तक फोन नहीं देखूंगा। तो आप फ्री व्हील यूज कर रहे हो।
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ध्यान दीजिए। फ्री विल कोई ग्रैंड चीज नहीं है। यह छोटी-छोटी चॉइससेस में दिखाई
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देती है। अब मैं आपको एक मेडिटेशन कैंप का एक्सपीरियंस बताता हूं। दिल्ली का एक
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दोस्त 35 ईयर ओल्ड आईटी इंजीनियर हमेशा बोलता था मेरी ए्जायटी कभी नहीं जाएगी। वो
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हर टाइम सोचता मेरा दिमाग कंट्रोल में नहीं है। फिर उसने एक 10 डे विपासना कैंप
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ज्वाइन किया। पहले दिन उसे लगा यह तो टॉर्चर है। लेकिन धीरे-धीरे उसने सीखा
12:18
सिर्फ ऑब्जर्व करना है। रिएक्ट नहीं करना। कैंप के बाद उसने बोला पहली बार लगा कि
12:23
मेरे पास चॉइस है। चाहे तो चिंता में डूब जाऊं या बस उसे ऑब्जर्व करके छोड़ दो। यही
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है क्वांटम फिजिक्स इन एक्शन। अटेंशन रियलिटी को बदल देता है। माइंडसेट बदला तो
12:35
वर्ल्ड बदला। अटेंशन बदला तो रियलिटी बदली।
12:41
अब कुछ प्रैक्टिकल एप्लीकेशनेशंस की बात करते हैं। स्टूडेंट्स एग्जाम स्ट्रेस में अगर आप बार-बार सोचो मैं फेल हो जाऊंगा।
12:48
वहीं रियलिटी कोलैप्स होगी। लेकिन अगर अटेंशन शिफ्ट करोगे मैंने इतना पढ़ा है।
12:53
अब रिजल्ट अच्छा आएगा। ब्रेन में कॉन्फिडेंस सर्किट्स स्ट्रांग होंगे। वर्किंग प्रोफेशनल्स ऑफिस में अगर आप बॉस
12:59
की हर क्रिटिसिज्म पर फोकस करोगे तो आपका सेल्फ वर्थ गिर जाएगा। लेकिन अगर आप कॉन्शियसली हर लर्निंग पॉइंट पर फोकस करो
13:07
तो ग्रोथ माइंडसेट डेवलप होगा। पेरेंट्स बच्चे की छोटी मिस्टेक्स पर ध्यान दोगे तो
13:13
लगेगा बच्चा नॉटी है। लेकिन उसकी कोशिशों पर फोकस करोगे तो लगेगा बच्चा हार्ड वर्किंग है। वही उसकी आइडेंटिटी बन जाएगी।
13:22
गांधी जी कहते थे अ मैन इज बट द प्रोडक्ट ऑफ ह थॉट्स। व्हाट ही थिंक्स ही बिकम्स।
13:27
यह वही बात है। अटेंशन ही रियलिटी बनाता है। गांधी जी ने अपने ध्यान को वायलेंस पर
13:33
नहीं बल्कि नॉन वायलेंस पर रखा और नतीजा पूरी दुनिया उनकी सोच की गवाह बन गई। तो
13:40
अब यह साफ हो गया ब्रेन मशीन है। माइंड मशीन ऑपरेटर है। अटेंशन इज इक्वल टू
13:46
ऑपरेटर का स्टीयरिंग व्हील है। आप जहां ध्यान दोगे ब्रेन वहीं की वायरिंग
13:52
स्ट्रांग कर देगा। व्हाट यू फोकस ऑन ग्रोस? जिस पर ध्यान दोगे वही बढ़ेगा। अब
13:58
एक एग्जांपल लेते हैं। एक चंडीगढ़ का एंटरप्रेन्योर सेजल उसका स्टार्टअप दो बार फेल हो गया। हर कोई बोला छोड़ दे यह तेरे
14:06
बस की बात नहीं। लेकिन सेजल ने अटेंशन फेलियर पर नहीं लर्निंग पर रखा। उसने सोचा
14:11
मैं हर बार कुछ नया सीख रही हूं। तीसरी बार उसका स्टार्टअप सक्सेसफुल हुआ। याद
14:18
रखो अटेंशन फेलियर पर होता है तो कोलैप्स हो जाती। अटेंशन ग्रोथ पर था इसलिए वह उठ
14:24
खड़ी हुई। तो दोस्तों अभी तक हमने देखा क्वांटम फिजिक्स और अटेंशन मिलकर कैसे
14:30
आपकी फ्री विल को रियलिटी में बदलते हैं। अब सवाल है अगर माइंड इतना पावरफुल है तो
14:36
क्या इसका मिसयूज भी हो सकता है? अगले पार्ट में हम एक्सप्लोर करेंगे ब्रेन की आदतें, एडिक्शन और कैसे गलत अटेंशन आपको
14:43
फंसा सकता है और साथ ही उससे निकलने का रास्ता भी है। स्टे ट्यूंड क्योंकि गेम अब
14:49
और गहरा होने वाला है। सोचिए एक आदमी रोज बोलता है मैं बस एक
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सिगरेट पीकर छोड़ दूंगा लेकिन हकीकत वो दिन में 10 से 12 सिगरेट पी जाता है। हर
15:02
बार गिल्ट आता है। हर बार प्रॉमिस करता है लास्ट टाइम पर लूप फिर रिपीट हो जाता है।
15:07
कभी सोचा है क्यों? क्योंकि एडिक्शन सिर्फ हैबिट नहीं है। यह दिमाग की वायरिंग की कैद है। ऑथर कहते हैं द ब्रेन बिकम्स
15:15
अनस्ड टू रिपीटेड पैटर्न्स ऑफ थॉट एंड एक्शन। अनलेस द माइंड चूजेस अदरवाइज दिमाग
15:22
बार-बार दोहराए गए पैटर्न्स का गुलाम बन जाता है जब तक मन अलग चुनाव ना करें। आज
15:27
हम एक्सप्लोर करेंगे कैसे एडिक्शंस और हैबिट्स नेगेटिव लूप्स क्रिएट करते हैं और
15:32
कैसे आप इनसे बाहर निकल सकते हैं। चैप्टर थ्री हैबिट्स का साइंस। पहले समझते हैं
15:39
हैबिट फॉर्मेशन का न्यूरो साइंस। हर हैबिट तीन स्टेप में बनती है। क्यू रूटीन
15:44
रिवार्ड। पहला क्यों? कोई ट्रिगर जैसे स्ट्रेस आने पर सिगरेट का ख्याल, रूटीन एक्चुअल हैबिट, सिगरेट पीना, रिवार्ड,
15:51
डोपामिन रिलीज, मोमेंटरी रिलीफ। हर बार यह लूप रिपीट होता है तो ब्रेन की वायरिंग और
15:57
स्ट्रांग हो जाती है। इसीलिए कहते हैं ओल्ड हैबिट्स डाई हार्ड। अब एग्जांपल लेते हैं अल्कोहल का। इंडिया में बहुत लोग
16:05
स्ट्रेस से बचने के लिए के लिए अल्कोहल का सहारा लेते हैं। पहले लगता है बस वीकेंड ड्रिंक है। फिर धीरे-धीरे स्ट्रेस आते ही
16:11
दिमाग खुद सिग्नल देता है पैक बना ले। ब्रेन सर्किट इतना मजबूत हो जाता है कि बिना अल्कोहल स्ट्रेस हैंडल करना इंपॉसिबल
16:19
लगता है। यही है एडिक्शन का ट्रैप। लेकिन ऑथर कहते हैं यह ट्रैप परमानेंट नहीं है।
16:24
द माइंड कैन ब्रेक द टेररनी ऑफ ऑटोमेटिक ब्रेन रिस्पांससेस। मन दिमाग की ऑटोमेटिक
16:30
रिस्पांससेस की तानाशाही को तोड़ सकता है। अब बात करते हैं एक एग्जांपल क्रिकेट नेट
16:36
प्रैक्टिस। सोचिए अगर एक बॉलर रोज सिर्फ यॉर्कर प्रैक्टिस करे तो उसका दिमाग उसी
16:41
पैटर्न में फिक्स हो जाएगा। मैच में वह ऑटोमेटिकली यॉर्कर डालेगा। एडिक्शन भी
16:46
वैसा ही है। बार-बार सेम शॉट मारते-मारते दिमाग का मसल मेमोरी बन जाता है। लेकिन
16:52
जैसे बॉलर दूसरी डिलीवरीज सीख सकता है, वैसे ही एडिक्ट भी नए पैटर्न्स बना सकता
16:58
है। इसके लिए ऑथर एक फोर स्टेप फार्मूला देते हैं। ओसीडी से एडिक्शन तक। याद है?
17:06
पार्ट वन में हमने स्क्वाड्स का ओसीडी वाला फोर स्टेप मेथड देखा था। यही फार्मूला एडिक्शन और बैड हैबिट्स के लिए
17:13
भी काम करता है। पहला रीलेबल अर्ज को पहचानो। यह मेरा पुराना लूप है। रिफ्रेम
17:20
इसे ब्रेन का ट्रिक समझो। अपनी असली आइडेंटिटी नहीं। रिफोकस अटेंशन दूसरी
17:25
हेल्दी एक्टिविटी में लगाओ। चौथा रिवैल्यू बाद में सोचो। इस अर्ज की असली वैल्यू
17:32
जीरो थी। हर बार जब आप ऐसा करते हो तो ब्रेन में नए पाथवेज बनते हैं।
17:39
अब मॉडर्न एक एडिक्शन की बात करते हैं। मोबाइल एंड रील्स। आज की सबसे बड़ी एडिक्शन Instagram रील्स। कितने लोग बोलते
17:45
हैं? बस 5 मिनट देखूंगा और फिर 1 घंटे बाद रियलाइज करते हैं कि पूरा टाइम वेस्ट हो
17:51
गया। क्यों क्या है इसमें बोडम? रूटीन क्या है? स्क्रॉल करना। और रिवार्ड क्या है? डोपामिन का क्विक हिट। लेकिन अगर आप
17:59
फोन उठाते ही खुद को रीलेबल करो। यह मेरे ब्रेन का ट्रैप है और फिर रिफोकस करके वॉक
18:05
पर चले जाओ। तो आप सर्कट तोड़ रहे हो। यही है सेल्फ डायरेक्टेड न्यूरोप्लास्टिसिटी।
18:13
अब एक रियल लाइफ इंडियन स्टोरी लेते हैं। मेरे दोस्त ओमकार अ बिजनेसमैन 42 इयर्स
18:18
ओल्ड की हैबिट थी हर नाइट डे तक YouTube बेंच करना। मॉर्निंग में वो हमेशा टायर्ड
18:23
रहता। मैंने उसे बोला स्क्वाड्स का फार्मूला ट्राई कर। पहली बार जब अर्ज आया
18:28
उसने सोचा यह सिर्फ ब्रेन का ट्रैप है। फिर उसने किताब उठाई और 15 मिनट पढ़ा। पहले हफ्ते स्ट्रगल हुआ लेकिन एक महीने
18:35
बाद उसका लूप बदल गया। आज वो प्राउडली कहता है अब फोन मुझे कंट्रोल नहीं करता। मैं उसे कंट्रोल करता हूं। अब साइंस एंगल
18:43
की बात करते हैं। डोपामिन हाईजैक। एडिक्शन में ब्रेन का रिवार्ड सिस्टम हाईजैक हो
18:49
जाता है। नॉर्मल रिवार्ड्स जैसे वॉक, हेल्दी फूड, फैमिली टाइम की जगह क्विक
18:54
डोपामिन, अल्कोहल, सिगरेट, रील्स, जंक फूड डोमिनेट कर लेते हैं। लेकिन जब आप बार-बार
19:00
कॉन्शियस चॉइस करते हो तो धीरे-धीरे नेचुरल रिवार्ड्स वापस एक्टिव हो जाते हैं। यानी दिमाग खुद बैलेंस में आ सकता
19:08
है। भगवत गीता में कृष्ण कहते हैं, मनुष्य अपने मन का ही मित्र है और मन का ही
19:15
शत्रु। यही बात साइंस लैंग्वेज में ऑथर भी कहते हैं। माइंड आपका सबसे बड़ा सेविअर भी
19:21
हो सकता है और सबसे बड़ा एनिमी भी। अगर माइंड ऑटोमेटिक ब्रेन के गुलाम बन गया
19:27
एडिक्शन। अगर माइंड मास्टर बन गया तो वो है फ्रीडम। हैबिट वही पावरफुल है जिसे आप
19:33
बार-बार एनर्जी देते हो। एनर्जी बदलो हैबिट बदल जाएगी। अब कुछ प्रैक्टिकल एप्लीकेशनेशंस की बात करते हैं।
19:40
स्टूडेंट्स लेट नाइट गेमिंग या YouTube बिंच से निकलना चाहते हो रीलेबल करके बोलो। यह मेरा ब्रेन का ट्रैप है। रिफोकस
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10 मिनट वॉक या जर्नलिंग। प्रोफेशनल स्ट्रेस ड्रिंकिंग से बाहर निकलना है। हर
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बार अर्ज आए तो वाटर प्लस डीप ब्रीथिंग करो। अर्ज का पीक सिर्फ 510 मिनट होता है।
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सर्वाइव कर लिया तो सर्किट वीक होगा। पेरेंट्स गसिप एडिक्शन या एंगर आउटबस्ट से
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बचना है। ट्रिगर आता है पॉज करो और रिफ्रेम। यह मेरे दिमाग का पुराना सर्किट है। मेरी असली आइडेंटिटी नहीं।
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प्लेन को मान लो कार का इंजन। इंजन पावरफुल है लेकिन डायरेक्शन स्टीयरिंग से
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तय होती है। अगर स्टीयरिंग डिफॉल्ट मोड पर छोड़ा कार कहीं भी जा सकती है। अगर आप हाथ
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में स्टीयरिंग लेकर सिर्फ डायरेक्शन से ही डायरेक्शन दो। कार आपके कंट्रोल में रहेगी। स्टीयरिंग क्या है? आपका अटेंशन।
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अमिताभ बच्चन अपने स्टलिंग डेज में फाइनेंसियल क्राइसिस से गुजरे। किसी भी इंसान के लिए वह डिप्रेशन का ट्रैप बन
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सकता था। लेकिन उन्होंने अपने अटेंशन फेलियर पर नहीं कमबैक पर रखा। रिजल्ट कौन
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बनेगा करोड़पति ने उन्हें फिर से शाइन किया। यह एग्जांपल दिखाता है नेगेटिव लूप्स से बाहर निकलना पॉसिबल है। अब बात
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करते हैं मेरी फ्रेंड सेजल की। सेजल को शॉपिंग एडिक्शन था। हर बार सेल आती उसका
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ब्रेन ट्रिगर हो जाता। बाय नाउ रिग्रेट लेटर उसकी फाइनेंसियल कंडीशन बिगड़ रही थी। फिर उसने फोर स्टेप मेथड यूज़ किया।
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रीलेबल यह सिर्फ कंपल्सिव वर्ज है। रिफ्रेम यह मेरी असली चाहत नहीं। रिफोकस
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जर्नल राइटिंग रिवैल्यू बाद में महसूस किया कि शॉपिंग से उसकी लाइफ बेटर नहीं हुई। 6 महीने बाद उसकी फाइनशियस स्टेबल हो
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गई। एडिक्शन से निकलना आसान नहीं है। लेकिन पॉसिबल है अगर माइंड मास्टर बन जाए।
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ब्रेन केज है माइंड उसकी चाबी बाय चूजिंग वेयर टू फोकस आवर अटेंशन वी चूज आवर ब्रेन
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व्हाट आवर ब्रेन बिकम्स जहां ध्यान लगाते हैं वहीं हमारा दिमाग शेप लेता है अब कुछ
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डेली प्रैक्टिस के स्माल स्टेप्स मैं आपको बता रहा हूं तो उसमें पहला है मॉर्निंग अमेशन मैं अपने माइंड का मास्टर हूं ब्रेन
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का गुलाम नहीं दूसरा 10 मिनट माइंडफुलनेस मेडिटेशन अर्ज को ऑब्जर्व करो रिएक्ट मत
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करो तीसरा अर्ज ठहरी हर बार ट्र ट्रिगर आए उसे लिख लो और रिफोकस करो। चौथा
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ग्रेटट्यूड प्रैक्टिस। ब्रेन को नेचुरल रिवॉर्ड्स याद दिलाओ। तो दोस्तों, अभी तक
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हमने देखा कि कैसे एडिक्शन और नेगेटिव लूप्स हमारे दिमाग को कैद कर लेते हैं। लेकिन साथ ही यह भी जाना कि माइंड की ताकत
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से हम उस कैद से आजाद हो सकते हैं। अब सवाल है जब माइंड इतना पावरफुल है तो उसकी
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अल्टीमेट लिमिट क्या है? क्या माइंड सिर्फ ब्रेन बदल सकता है? या वह पूरी जिंदगी की मीनिंग और स्पिरिचुअलिटी को भी डिफाइन
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करता है। आगे हम एक्सप्लोर करेंगे द जॉय ऑफ अ फ्री लाइफ। कैसे न्यूरो साइंस और
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स्पिरिचुअलिटी मिलकर हमें एक नई आजादी का रास्ता दिखाते हैं। स्टे ट्यूंड क्योंकि लास्ट पार्ट आपकी सोच को परमानेंटली शिफ्ट
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कर देगा। सोचो एक दिन आप उठो और रियलाइज करो। मैं
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अपने दिमाग का गुलाम नहीं हूं। मैं अपने माइंड का मालिक हूं। मतलब गुस्सा आए तो आप
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डिसाइड करते हो रिएक्ट करना या नहीं? टेंप्टेशन आए तो आप चूज़ करते हो एक्सेप्ट
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करना या इग्नोर। और लाइफ के हर मोमेंट में आपके हाथ में स्टीयरिंग व्हील है।
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क्या यह नहीं असली फ्रीडम? फ्रीडम फ्रॉम कंपल्शंस, एडिकशंस और अननेसेसरी सफरिंग।
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ऑथर इसी को कहते हैं ट्रू फ्रीडम इज नॉट द एब्सेंस ऑफ डिफिकल्टी। बट द प्रेजेंस ऑफ
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माइंडफुल चॉइस। सच्ची आजादी मुश्किलों की गैर हाजिरी नहीं बल्कि माइंडफुल चॉइस की
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मौजूदगी है। अब इस पार्ट में हम एक्सप्लोर करेंगे फ्री लाइफ की जॉय। कैसी न्यूरो साइंस और
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स्पिरिचुअलिटी मिलकर एक नई सोच देते हैं और आप अपनी जिंदगी को कॉन्शियसली एक
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मास्टर पीस बना सकते हो। स्टेप वन फ्रीडम का मतलब क्या है? बहुत लोग समझते हैं
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फ्रीडम इज इक्वल टू जो चाहे वह करो। बट ऑथर कहते हैं वह तो स्लेवरी है। अपने अर्ज
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की स्लेवरी। आपको सिगरेट की अर्ज आई और आप ने पी ली। यह फ्रीडम नहीं स्लेवरी है।
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आपको फोन स्क्रोल करने का मन हुआ और आप करते गए। यह भी स्लेवरी है। फ्रीडम मतलब
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जब आप कॉन्शियसली चूज़ करो कि क्या करना है और क्या नहीं।
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एक लाइन में इसको समझाऊं। द फ्रीडम इज द एबिलिटी टू पॉज बिटवीन इंपल्ससेस एंड एक्शन। इंपल्स और एक्शन के बीच रुकना और
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चूज़ करना ही फ्रीडम है। डेली गुड़गांव हाईवे पर रोज एक सीन होता
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है। किसी ने गाड़ी काट दी और सामने वाला इंस्टेंटली हॉर्न अब्यूज या फाइट शुरू कर
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देता है। यह है स्लेवरी ऑफ इंपल्स। लेकिन एक ड्राइवर कामली सोचता है। शायद उसकी
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इमरजेंसी हो। मुझे रिएक्ट करने की जरूरत नहीं। यह है फ्रीडम ऑफ माइंड। सोचने वाली
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बात दोनों के दिमाग में ट्रिगर सेम था पर रिस्पांस अलग क्यों माइंडफुल चॉइस स्टेप
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टू माइंडफुल लिविंग ऑथर कहते हैं जब आप अपने माइंड को कॉन्शियसली ब्रेन के ऊपर
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मास्टर बनाते हो आप एक नई स्टेट में जाने लगते हो यही है माइंडफुल लिविंग माइंडफुल
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खाना प्लेट पर ध्यान टेस्ट एंजॉय करना ओवर रीडिंग अवॉइड करना माइंडफुल काम
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मल्टीटास्किंग की जगह एक काम पर पूरा फोकस माइंडफुल रिलेशनशिप सुने बिना जज किया
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रिसोंड करना बिना रिएक्ट करना अटेंशन इज द
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करेंसी ऑफ़ फ्रीडम ध्यान आजादी की असली करेंसी है। विराट कोहली जब क्रीज पर आता
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है, उसके पास 500 लोग चिल्लाते हैं, लेकिन उसका ध्यान सिर्फ बॉल पर होता है। यही है
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माइंडफुल अटेंशन। इसी वजह से वह अपने पीक पर परफॉर्म करता है। डिस्ट्रैक्शंस का
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स्लेव नहीं अपने फोकस का मास्टर है। स्टेप थ्री जॉय ऑफ डिसिप्लिन। यहां एक
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बड़ा मिथ तोड़ना जरूरी है। लोग सोचते हैं डिसिप्लिन मतलब बोरिंग लाइफ। लेकिन ऑथर
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कहते हैं डिसिप्लिन इज नॉट रेस्ट्रिक्शन। इट इज द पाथवे टू जॉय। सोचो एक इंसान बिंज
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ईटिंग करता है और गिल्ट में रहता है। दूसरा इंसान माइंडफुल ईटिंग करता है, फिट रहता है और कॉन्फिडेंट फील करता है। कौन
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ज्यादा जॉयफुल है? ऑब्वियसली डिसिप्लिन वन। डिसिप्लिन मतलब फ्रीडम का रियल फेस।
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एक 45 ईयर ओल्ड अंकल लुधियाना के लेक के
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आसपास रोज रन करते हैं। उन्होंने मुझसे बोला पहले मैं चेन स्मोकर था। जब से रनिंग
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स्टार्ट की मेरे माइंड अर्ज को रिजेक्ट कर देता है। अब मुझे रोज रियल जॉय स्मोक से
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नहीं रन से मिलता है। उन्होंने एक नेगेटिव लूप तोड़कर एक पॉजिटिव लूप बना लिया और अब
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वो एक्चुअल फ्री लाइफ एंजॉय कर रहे हैं। यह किताब और अब बात करते हैं स्टेप फोर
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ब्रेन प्लस स्पिरिचुअलिटी। यह किताब का सबसे पावरफुल पॉइंट है। ऑथर सिर्फ न्यूरोस
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साइंस की बात नहीं करते। वह स्पिरिचुअलिटी से भी कनेक्ट करते हैं। ब्रेन मतलब मशीन।
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माइंड मतलब ऑपरेटर। बट ऑपरेटर को भी एक हायर सेंस ऑफ पर्पस चाहिए। यही आता है
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स्पिरिचुअलिटी। चाहे आप गीता पढ़ो, मेडिटेशन करो या प्रेयर। अ माइंड कनेक्टेड टू मीनिंग इज अ माइंड दैट थ्राइव्स। जो मन
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किसी अर्थ से जुड़ा है वही मन सच में खिलता है। हमारे योगीस सेंचुरी से बोलते आए हैं।
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योग चित्तवृत्ति निरोधा माइंड के फ्लक्चुएशंस को कंट्रोल करना ही योगा है।
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यह वही कांसेप्ट है जो ऑथर मॉडर्न साइंस लैंग्वेज में बोल रहे हैं अगर आप अपने
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अटेंशन को कॉन्शियसली डायरेक्ट करते हो तो आपके ब्रेन के पैटर्न्स चेंज होते हैं और आप जॉयफुल फील करते हो और जॉयफुली अपनी
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लाइफ को जीते हो। स्टेप फाइव ग्रोथ माइंडसेट फ्रीडम का एक और आस्पेक्ट है। आप
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अपने पास्ट के स्लेव नहीं हो। ऑथर कहते हैं दिमाग के सर्किट्स चेंज हो सकते हैं।
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मतलब आपकी आइडेंटिटी भी चेंज हो सकती है। अगर आप सोचते हो मैं हमेशा एशियस रहूंगा
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गलत। अगर आप सोचते हो मैं चेंज नहीं हो सकता गलत नियरोप्लास्टिसिटी प्रूफ है कि
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आप अपनी पूरी कहानी रीराइट कर सकते हो। 90ज में इंडिया की टीम के बारे में एक मिथ
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था। हम फॉरेन पिचेस पे कभी नहीं जीत सकते। लेकिन 200 के बाद प्लेयर्स ने अपना
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माइंडसेट बदला। प्रैक्टिस बदली और वायरिंग बदली। रिजल्ट ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड जैसी जगह पर सीरीज जितनातना नॉर्मल हो गया। तो
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कहते हैं ग्रोथ माइंडसेट प्लस न्यूरोप्लास्टिसिटी मतलब न्यू आइडेंटिटी। अब स्टेप सिक्स की बात करते हैं।
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ग्रेटट्यूड और जॉय। साइंस के एक्सपेरिमेंट्स दिखाते हैं। जब लोग रोज ग्रेटट्यूड प्रैक्टिस करते हैं। उनके
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ब्रेन के रिवॉर्ड सर्किट्स स्ट्रेंथन होते हैं। सिंपल एक्सरसाइज रोज रात को सोने से
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पहले तीन चीजें जिनके लिए आप ग्रेटफुल है वो लिखिए। रिजल्ट ए्जायटी कम होगी।
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डोपामिन नेचुरल तरीके से रिलीज होता है और लाइफ में एक स्थिर खुशी महसूस होती है।
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ग्रेटट्यूड रिवायर्स द ब्रेन फॉर जॉय। कृतज्ञता दिमाग को खुशी के लिए दोबारा प्रोग्राम करती है।
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सेजल जो पार्ट थ्री में शॉपिंग एडिक्शन से बाहर आई थी। उसने एक नया हैबिट डाला। ग्रेटट्यूड जर्नल। आज वो कहती है पहले जॉय
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मुझे शॉपिंग बैग से मिलती थी। अब मुझे ग्रेटट्यूड लिखने से मिलती है। यानी जॉय
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शिफ्ट हो गया आर्टिफिशियल से नेचुरल सोर्सेस पर। जॉय हैबिट नहीं एक चॉइस है।
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असली फ्रीडम तब मिलती है जब आपको इंपल्स कंट्रोल करना आता है। माइंडफुल लिविंग
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बोरिंग नहीं एक्चुअली थ्रिलिंग है। अब आपको मैं डेली ब्लूप्रिंट दे रहा हूं जॉयलेस जॉय फ्री लाइफ के लिए। जॉयफुल फ्री
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लाइफ मॉर्निंग साइलस 5 मिनट फोन के बिना बस ब्रीथ और ग्रेटट्यूड। वन टास्क फोकस
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मल्टीटास्किंग छोड़कर एक काम पूरी अटेंशन से। अर्ज सर्फिंग जब टेंप्टेशन आए 5 मिनट
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ऑब्जर्व करो बिना रिएक्ट किए। इवनिंग रिफ्लेक्शन लिखो। आज किस चीज को कॉन्शियसली चूस किया? नाइट ग्रेटट्यूड तीन
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चीजें लिखो जिनके लिए थैंकफुल हो। यह छोटी-छोटी रिचुअल्स मिलकर एक जॉयफुल फ्री लाइफ बनाते हैं। स्वामी विवेकानंद कहते थे
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टेक वन आईडिया, मेक दैट वन आईडिया योर लाइफ, थिंक ऑफ इट, ड्रीम ऑफ इट, लिव ऑन दैट आईडिया। उन्होंने अपने अटेंशन एक हायर
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पर्पस पर रखा था और दुनिया को इंस्पायर किया है। यही है फ्री लाइफ। जब आप कंपल्शंस के गुलाम नहीं बल्कि एक विज़ के
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मास्टर बन जाओ। ऑथर कहते हैं व्हेन द माइंड लर्न्स टू गाइड द ब्रेन लाइफ
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ट्रांसफॉर्म्स फ्रॉम कंपल्शन टू क्रिएशन। जब मन दिमाग को गाइड करना सीख जाता है तो
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जिंदगी मजबूरी से रचनात्मकता की में बदल जाती है। मतलब अब आप रोबोट नहीं क्रिएटर
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हो अपनी लाइफ के डिजाइनर। तो दोस्तों, द माइंड एंड द ब्रेन हमें एक बड़ा लेसन देते
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हैं। ब्रेन के लूप्स हमें केज कर देते हैं। माइंड के कॉन्शियस चॉइसेस उस केज को तोड़ देते हैं। अटेंशन एक स्टेयरिंग है जो
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हमें फ्रीडम और जॉय की तरफ ले जाता है। डिसिप्लिन और ग्रेटट्यूड से वो जॉय परमानेंट हो जाती है। और तब आप रियलाइज
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करते हो असली जॉय मटेरियल चीजों में नहीं माइंड कीस्ट में है। माइंड के मास्टर बनो।
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ब्रेन को सर्वेंट बनाओ और जिंदगी को एक सेलिब्रेशन में बदल दो। थैंक यू