Meditation 24x7 किताब का सार — Acharya Prashant की सच्चे ध्यान पर सीख
Oct 30, 2025
Acharya Prashant ki “Meditation 24×7” ek aisi kitab hai jo batाती है ki ध्यान sirf 20 minute ki practice nahi — बल्कि जीवन का तरीका है। Modern meditation apps aur techniques jo “instant calm” promise karti hain — Acharya Prashant un sab ka खंडन karte hain, aur बताते hain ki असली ध्यान है निरंतर जागृति — हर पल, हर क्रिया में। Is video mē hum cover karenge: 🕊️ सच्चा ध्यान क्या है? 🔥 Modern meditation myths & illusions 🧘 ध्यान ka फल — शांति, clarity, ego dissolution ⏳ कैसे जियें 24×7 awareness mein? 🪔 Real life examples + spiritual insights Chahe aap beginner ho ya years se meditation kar rahe ho — yeh book aapko rote-roti zindagi mē जाग्रति लाना सिखाएगी। 🧠 Book Message in One Line Meditation technique nahi — सच में लौटने की प्रक्रिया है।
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हम मेडिटेशन को एक रिचुअल समझ बैठे हैं।
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एक फिक्स टाइम, एक मैट, एक रूम। पर क्या
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जब वह टाइम खत्म होता है, हमारा अवेयरनेस
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भी खत्म हो जाता है। आचार्य प्रशांत कहते
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हैं, मेडिटेशन इज नॉट एन एक्ट। इट इज योर
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नेचर। ध्यान कोई क्रिया नहीं आपकी
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स्वाभाविक स्थिति है। इस किताब का नाम है
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मेडिटेशन 247। क्योंकि ध्यान सिर्फ सुबह 6
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से 7 नहीं हर पल का अनुभव है। ध्यान का
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मतलब भागना नहीं देखना है।
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आचार्य कहते हैं हम सोचते हैं मेडिटेशन
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मतलब साइलेंस में बैठना। मन को खाली करना
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सब भूल जाना। पर वह भूलना नहीं भागना है।
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आप ऑफिस में स्ट्रेस्ड हैं। घर जाकर
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मेडिटेशन करते हैं ताकि स्ट्रेस मिट जाए।
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लेकिन अगले दिन वही स्ट्रेस वापस। क्यों?
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क्योंकि मेडिटेशन प्रैक्टिस थी। अवेयरनेस
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नहीं। ध्यान तब शुरू होता है जब मैं खत्म
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होता है।
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ध्यान वो नहीं जो आप करते हैं। ध्यान वो
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है जो आपके जरिए होता है। जब आप खाना खा
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रहे हो, क्या आप टेस्ट महसूस कर रहे हैं
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या फोन देख रहे हैं? जब आप किसी से बात कर
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रहे हो, क्या आप सुन रहे हैं या जवाब सोच
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रहे हैं? टू लिव मेडिटेटिवली इज टू लिव
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अटेंटिवली। ध्यान का मतलब है हर पल को
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पूरी तरह जीना। ना अतीत में ना भविष्य
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में। प्रेजेंट में रहना ही सच्चा मेडिटेशन
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है। आचार्य कहते हैं मेडिटेशन इज नॉट अ
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सेशन। इट इज अ स्टेट ऑफ बीइंग। इसका मतलब
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ध्यान मंदिर या पहाड़ों में नहीं ऑफिस की
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टेंशन और मार्केट की भीड़ में भी हो सकता
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है। ऑटो में बैठे हैं, ट्रैफिक में फंसे
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हो अगर आप बस ऑब्जर्व कर रहे हो बिना
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इरिटेशन के तो आप ध्यान में हो। ध्यान में
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बैठना नहीं ध्यान में जीना सीखो। आचार्य
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कहते हैं डिस्ट्रैक्शन तभी होती है जब
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इंटरेस्ट झूठा हो। अगर मन भटक रहा है तो
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इसका मतलब है काम आपके दिल का नहीं है।
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आपको बुक पढ़नी है पर फोन उठ गया तो
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प्रॉब्लम फोन नहीं इंटरेस्ट है। अगर
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अवेयरनेस सच में हो तो मन खुद स्थिर हो
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जाता है। जहां प्रेम होगा वहां ध्यान अपने
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आप होगा। ध्यान का मतलब आंख बंद करना नहीं
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आंख खोलकर सच को देखना है। यह किताब
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सिखाती है कैसे हर मोमेंट में आप शांति पा
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सकते हैं बिना किसी एफर्ट के। पर अगर
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ध्यान एक नेचुरल स्टेट है तो फिर हम इतनी
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डिस्ट्रैक्टेड क्यों हैं? यही जानेंगे।
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पार्ट टू द माइंड्स ट्रिक्स व्हाई वी लूज
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अवेयरनेस में। कभी नोटिस किया है आप कुछ
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मिनट पहले तक बिल्कुल शांत थे। फिर अचानक
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माइंड किसी रैंडम थॉट पर भाग गया। आचार्य
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प्रशांत कहते हैं, योर माइंड इज नॉट योर
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एनिमी। इट्स अ रेस्टलेस चाइल्ड। आपका
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माइंड दुश्मन नहीं यह एक बेचैन बच्चा है।
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मेडिटेशन का मतलब उसे मारना नहीं बल्कि
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समझना है। इस पार्ट में जानेंगे वह चार
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माइंड के ट्रैप जो आपको अवेयरनेस से
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बार-बार खींच लेते हैं। माइंड को रोकना
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नहीं डायरेक्शन देना है। ट्रैप नंबर वन द
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ट्रैप ऑफ डिजायर। आचार्य कहते हैं डिजायर
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इज नॉट द प्रॉब्लम। अटैचमेंट टू डिजायर इज
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इच्छा प्रॉब्लम नहीं है। उसे पकड़ कर बैठ
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जाना प्रॉब्लम है। आप कहते हैं बस प्रमोशन
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मिल जाए मैं खुश हो जाऊं। प्रमोशन मिल
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गया। अब कहते हैं बस नेक्स्ट पोजीशन मिल
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जाए। साइकिल चलता रहता है। डिजायर एक वेव
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है। उसको पकड़ोगे तो डूबोगे। आज के यूथ की
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मेडिटेशन प्रॉब्लम यही है। वो शांति चाहते
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हैं पर साथ ही फेम भी। आचार्य कहते हैं
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पीस और ईगो साथ नहीं चल सकते। द वन हु
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वांट्स एवरीथिंग कैन नेवर रेस्ट एनीवेयर।
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जहां चाह खत्म वहीं ध्यान शुरू। ट्रैप
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नंबर टू द ट्रैप ऑफ कंपैरिजन। आचार्य कहते
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हैं कंपैरिजन किल्स ऑब्जरवेशन तुलना
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अवेयरनेस को मार देती है। Instagram खोलते
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ही आप कंपेयर करने लगते हैं। किसके पास
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बेटर लाइफ है, बेटर लुक्स है, बेटर सक्सेस
4:34
है। आपकी पीस उसी मोमेंट चली जाती है।
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कंपैरिजन से पैदा होता है कंपटीशन और
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कंपटीशन से मरता है कॉन्शियसनेस। कई लोग
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ध्यान करते हैं सिर्फ इसलिए कि दूसरे लोग
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काम दिखे। पर रियल कामनेस तब आती है जब आप
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किसी से कंपेयर ही नहीं करते। बी स्टिल
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नॉट बेटर। बेहतर नहीं बस स्थिर बनो।
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जो अपने जैसा बन गया वही सबसे अनोखा है।
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ट्रैप नंबर थ्री द ट्रैप ऑफ नॉइज़। आचार्य
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कहते हैं नॉइज़ डजंट कम फ्रॉम आउटसाइड। इट
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स्टार्ट्स इनसाइड। शोर बाहर से नहीं अंदर
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से शुरू होता है। आप चुप कमरे में बैठे
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हैं। बाहर कोई डिस्टर्ब नहीं कर रहा। पर
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माइंड में थॉट्स की ट्रैफिक जैम लगी है।
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साइलेंस बाहर नहीं मिलेगा जब तक अंदर साफ
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नहीं होगा। कई लोग हिमाचल चले जाते हैं
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मेडिटेशन करने। पर पीस वहां नहीं। वह
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अवेयरनेस के अंदर है। आचार्य कहते हैं अगर
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माइंड नॉइजी है तो पर्वत भी बाजार लगेंगे।
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व्हेन द माइंड इज नॉइजी इवन साइलेंस
5:49
बिकम्स अ साउंड। माइंड को शांत करने की
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कोशिश मत करो। बस उसे ऑब्जर्व करो। ट्रैप
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नंबर फोर द ट्रैप ऑफ कंट्रोल। आचार्य कहते
6:00
हैं यू कैन नॉट कंट्रोल द माइंड। द
6:02
कंट्रोलर इटसेल्फ इज द माइंड। जो कंट्रोल
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करना चाहता है वह भी माइंड ही है। जब आप
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कहते हैं मुझे गुस्सा नहीं करना चाहिए तब
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भी आप गुस्से से लड़ रहे होते हैं। वह
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लड़ाई ही स्ट्रेस है। माइंड से लड़ना मतलब
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माइंड को फ्यूल देना। आपने देखा होगा
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जितना आप किसी थॉट को इग्नोर करते हैं, वह
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उतना ज्यादा बार आता है। क्यों? क्योंकि
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अटेंशन ही उसका फूड है। व्हाट यू रेिस्ट
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परस जिससे लड़ोगे वह और बढ़ेगा। ऑब्जर्व
6:40
करो अपोज मत करो। ट्रैप नंबर फाइव द ट्रैप
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ऑफ आइडेंटिटी। आचार्य कहते हैं आपका माइंड
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वही सोचता है जो आपकी आइडेंटिटी को बचाता
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है। योर माइंड सर्व्स योर फॉल्स इमेज। अगर
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आप खुद को काम पर्सन मानते हैं तो आप
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गुस्सा आने पर किल्ट में चले जाते हैं
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क्योंकि वह इमेज टूट गई। जितनी आइडेंटिटी
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उतना डिस्टरबेंस। कई लोग कहते हैं मैं
7:08
स्पिरिचुअल हूं। मैं एंगर फील नहीं करता
7:11
पर वही डिनाइलेसली ईगो है। रियल
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स्पिरिचुअलिटी इज बीइंग ट्रू नॉट गुड।
7:18
सच्ची स्पिरिचुअलिटी अच्छाई नहीं सच्चाई
7:21
है। अपनी इमेज से बाहर निकलो। यही ध्यान
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का पहला कदम है। अब समझ आया मेडिटेशन
7:30
मुश्किल नहीं है। हमारी कंडीशनिंग मुश्किल
7:33
है। माइंड एनिमी नहीं बस उसे क्लेरिटी
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चाहिए। माइंड को बदलना नहीं। माइंड को
7:40
देखना ही मेडिटेशन है। अब सवाल यह है अगर
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माइंड को बदलना नहीं तो फिर अवेयरनेस कैसे
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बढ़े? क्या कोई प्रैक्टिस है या बस
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प्रेजेंस? यही जानेंगे। पार्ट थ्री द
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प्रैक्टिस ऑफ प्रेजेंस लिविंग इन अवेयरनेस
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247 में हर दिन हम कुछ ना कुछ खो देते
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हैं। कभी शांति कभी ध्यान कभी खुद को। हम
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सोचते हैं मेडिटेशन का टाइम खत्म। अब रियल
8:08
लाइफ शुरू। पर आचार्य प्रशांत कहते हैं
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रियल लाइफ ही मेडिटेशन का टाइम है। आपका
8:14
ऑफिस, रिलेशनशिप्स, ट्रैफिक यही आपका
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मेडिटेशन हॉल है। आज हम सीखेंगे कैसे हर
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पल में अवेयरनेस को जिया जा सकता है। बिना
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किसी एक्स्ट्रा एफर्ट के। ध्यान अलग नहीं
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जीवन के बीच में है। आचार्य कहते हैं,
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वर्क डजंट डिस्टर्ब मेडिटेशन। वर्क
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रिवील्स योर स्टेट ऑफ़ माइंड। काम ध्यान को
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तोड़ता नहीं। काम दिखाता है कि आप ध्यान
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में है या नहीं। जब आप काम करते समय
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इरिटेट हो जाते हैं तो काम नहीं। आपका
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रिएक्शन दिखा रहा है कि आपका माइंड कितना
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स्कैटर्ड है। आपका वर्क, आपका मिरर है। आप
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ज़ूम मीटिंग में हैं। कोई कमेंट करता है और
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आप डिफेंसिव हो जाते हैं। उसी मोमेंट में
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अवेयरनेस चाहिए कि कौन ट्रिगर हुआ। ईगो या
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अंडरस्टैंडिंग एवरी रिएक्शन इज एन
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ओपोरर्चुनिटी टू रिटर्न टू अवेयरनेस हर
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रिएक्शन एक चांस है वापस अवेयरनेस में आने
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का रिएक्शन नहीं रिफ्लेक्शन बनो
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आचार्य कहते हैं लव इज मेडिटेशन इन एक्शन
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प्यार वही है जो देखने देता है बिना कुछ
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बदलने की कोशिश किए जब कोई आपको
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क्रिटिसाइज करता है क्या आप तुरंत
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जस्टिफाई करते हैं या बस सुनते हैं बिना
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डिफेंस के। वो सुनना ही मेडिटेशन है। जिसे
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आप बिना जजमेंट के सुन सको आपका टीचर है।
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आपका पार्टनर देर से आता है। आपका माइंड
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कहता है वह केयरलेस है। अगर आप उस मोमेंट
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को बस ऑब्जर्व करें तो इरिटेशन डिॉल्व हो
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जाती है। टू सी विदाउट लेबलिंग ह लव। बिना
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लेबल के देखना ही प्रेम है। जजमेंट छोड़ा
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तो लव शुरू। आचार्य कहते हैं पेन बिकम्स
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सफरिंग ओनली व्हेन यू रेिस्ट इट। दर्द तब
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तक कष्ट बनता है जब तक आप उससे लड़ते हैं।
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आपकी लाइफ में किसी ने धोखा दिया। माइंड
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कहता है क्यों मेरे साथ? पर अगर आप उस पेन
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को बस देखें तो उसमें क्लेरिटी छुपी होती
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है। पेन से भागो मत। उसे देखो। एक
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स्टूडेंट एग्जाम में फेल हो गया। वह सोचता
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है मैं लूजर हूं। पर अगर वह ध्यान से देखे
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तो उसे दिखेगा फेलियर एक लेसन था
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आइडेंटिटी नहीं। अवेयरनेस ट्रांसफॉर्म्स
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पेन इनू अंडरस्टैंडिंग। जागरूकता दर्द को
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समझ में बदल देती है। ऑब्जरवेशन ही हीलिंग
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है। आचार्य कहते हैं बिटवीन स्टिमुलस एंड
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रिस्पांस देयर इज फ्रीडम। हर रिएक्शन से
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पहले एक पल होता है जहां आप डिसाइड कर
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सकते हैं कि एक्ट करना है या रिएक्ट। अगर
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आप किसी पर गुस्सा करने वाले हैं, बस दो
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सेकंड्स रुकिए। वो पॉज मेडिटेशन है। पॉज
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ही पावर है। ट्रैफिक में कोई हॉर्न मार
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रहा है। आपका माइंड तुरंत रिएक्ट करता है।
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पर अगर आप ऑब्जर्व करें तो इरिटेशन की जगह
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कंपैशन आ सकती है। द गैप बिटवीन इंपल्स
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एंड एक्शन इज वेयर अवेयरनेस लिव्स। पॉज
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लंबा नहीं चाहिए। सच्चा चाहिए। आचार्य
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कहते हैं मेडिटेशन इज नॉट डिस्टर्ब बाय
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मूवमेंट। इट इज टेस्टेड बाय इट। शांति
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रुकने से नहीं आती। भीड़ में भी स्थिर
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रहने से आती है। आप डेली हसल में हैं।
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प्रोजेक्ट डेडलाइंस, फोन कॉल्स, टारगेट्स।
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अगर इस केओस के बीच आप 5 सेकंड्स भी अवेयर
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हो गए तो वही असली मेडिटेशन है। फास्ट
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लाइफ में स्लो अवेयरनेस यही आर्ट है।
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स्वामी विवेकानंद कह करते थे कामनेस इज
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स्ट्रेंथ इन द मिड्स ऑफ मूवमेंट। वही
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एसेंस आचार्य भी समझाते हैं। स्टिलनेस कोई
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लग्जरी नहीं नेसेसिटी है। आचार्य प्रशांत
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सजेस्ट करते हैं एक सिंपल थ्री स्टेप
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अवेयरनेस प्रैक्टिस जो आप दिन भर में कभी
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भी कर सकते हैं। स्टेप वन नोटिस द बॉडी।
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अपना पोश्चर ब्रेथ मूवमेंट ऑब्जर्व करो
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बिना जजमेंट के। स्टेप टू नोटिस द माइंड।
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देखो कौन से थॉट्स रिपीट हो रहे हैं। बस
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ऑब्जर्व करो। कंट्रोल मत करो। स्टेप थ्री
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रिटर्न टू द मोमेंट। एक डीप ब्रेथ लो और
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बस इस पल को महसूस करो बिना किसी एजेंडा
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के। ऑब्जरवेशन ही ट्रांसफॉर्मेशन है।
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लैपटॉप के सामने बैठकर भी अवेयरनेस पॉसिबल
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है। अगर आप हर ब्रेथ कॉन्शियसली महसूस
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करो। डोंट ट्राई टू साइलेंस द माइंड। बी
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सो अवेयर दैट नॉइस लूजेस पार। अवेयरनेस
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कोई स्किल नहीं समृद्धि है। अब समझ आया
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मेडिटेशन का मतलब भागना नहीं बल्कि हर पल
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को गले लगाना है। आपका माइंड बदलना नहीं
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है। बस उसे देखना है। और उस देखना में ही
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शांति है। मेडिटेशन 24 कोई हैबिट नहीं। एक
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देखने की कला है। अब जब अवेयरनेस आपकी
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लाइफस्टाइल बन गई है तो आगे का सवाल है
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क्या इससे लाइफ के गोल्स बदलते हैं? क्या
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अवेयरनेस सक्सेस और पपस को रिीडफाइन करती
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है? यही जानेंगे पार्ट फोर द एनलाइटेड वे
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टू लिव फ्रीडम पर्पस एंड स्टिलनेस में।
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कई लोग मेडिटेशन इसलिए करते हैं ताकि
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उन्हें शांति मिल जाए। कुछ इसलिए करते हैं
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ताकि स्ट्रेस कम हो जाए। पर आचार्य
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प्रशांत कहते हैं मेडिटेशन इज नॉट
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फॉरगेटिंग पीस। इट इज द रियलाइजेशन दैट यू
14:00
वर नेवर डिस्टर्बड। ध्यान कुछ पाने का
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तरीका नहीं। खुद को पहचानने की प्रक्रिया
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है और जब पहचान हो जाती है तो पपस और
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फ्रीडम दोनों साफ दिखने लगते हैं। ध्यान
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मंजिल नहीं जागरण की शुरुआत है। आचार्य
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कहते हैं फियर कम्स ओनली टू द वन हु लिव्स
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इन इमेजिनेशन। डर सिर्फ उसे लगता है जो
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कल्पना में जीता है। आपको फ्यूचर की चिंता
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होती है। क्यों जॉब बचेगी? क्या जॉब
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बचेगी? क्या रिलेशन चलेगा? पर यह सब डर
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इमेजिनेशन से आते हैं। रियलिटी से नहीं।
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जो वर्तमान में है उसे भविष्य नहीं डराता।
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एग्जाम का डर रिजल्ट से नहीं रिजल्ट की
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कल्पना से है। अगर आप उस मोमेंट में पूरी
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अवेयरनेस से जिए तो डर डिॉल्व हो जाता है।
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अवेयरनेस डजंट रिमूव फियर। इट डिॉल्व्स द
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वन हु फियर्स।
15:00
फियर गायब नहीं होता। फियर वाला गायब हो
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जाता है। आचार्य कहते हैं अटैचमेंट इज लव
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मिक्स्ड विद इनसिक्योरिटी। जहां डर है
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खोने का वहां प्रेम नहीं पकड़ है। आप किसी
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से प्यार करते हैं पर जब वह बात ना करें
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तो बेचैनी शुरू। क्यों? क्योंकि वह प्रेम
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नहीं डिपेंडेंसी थी। अटैचमेंट पकड़ता है।
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अवेयरनेस छूटती है। पेरेंट्स अपने बच्चों
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को लव करते हैं। पर अक्सर कंट्रोल करना
15:31
शुरू कर देते हैं। उसे कहते हैं केयर।
15:33
आचार्य कहते हैं ट्रू लव लेट्स द अदर बी
15:38
फ्री। लव विदाउट फ्रीडम इज पोजेशन।
15:41
स्वतंत्रता के बिना प्रेम स्वामित्व है।
15:45
जो सच में प्रेम करता है, वह छोड़ना जानता
15:50
है। आचार्य कहते हैं व्हेन द माइंड इज
15:53
साइलेंट योर रियल पर्पस स्पीक्स। जब माइंड
15:57
शांत होता है तब सच्चा उद्देश्य बोलता है।
16:00
आप कंफ्यूज्ड रहते हैं कि मुझे लाइफ में
16:03
क्या करना चाहिए। आचार्य कहते हैं पहले
16:06
माइंड शांत करो। फिर वह खुद बताएगा कि
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तुम्हें क्या करना है। पर्पस सोचने से
16:12
नहीं देखने से आता है। कई लोग अपने करियर
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चेंज करते हैं। जब वह इनर क्लेरिटी महसूस
16:19
करते हैं, वह क्लेरिटी ही पर्पस है। द
16:21
राइट वर्क फाइंड्स यू। व्हेन यू स्टॉप
16:25
चेजिंग रोंग वंस। स्टिलनेस से डायरेक्शन
16:29
मिलती है कन्फ्यूजन से नहीं। आचार्य कहते
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हैं ईगो इज द नॉइज़ दैट डजंट लेट यू हियर
16:36
ट्रुथ। अहंकार वह शोर है जो आपको सच्चाई
16:40
सुनने नहीं देता। जब कोई आपको क्रिटिसाइज
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करता है, आप डिफेंसिव हो जाते हैं।
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क्योंकि ईगो थ्रेटन हुआ पर मेडिटेशन तब
16:50
शुरू होता है जब आप ईगो को सुन लेते हैं
16:54
बिना उसे जस्टिफाई किए। ईगो को मारना नहीं
16:58
देखना है। स्पिरिचुअल लोग भी ईगो में फंस
17:01
जाते हैं। मैं काम हूं। मैं प्योर हूं।
17:04
आचार्य कहते हैं स्पिरिचुअल ईगो सबसे सल
17:08
ट्रैप है। द मोमेंट यू से आई एम
17:11
स्पिरिचुअल यू हैव ऑलरेडी लॉस्ट इट।
17:14
स्पिरिचुअलिटी बोलने में नहीं खो जाने में
17:17
है। आचार्य कहते हैं एफर्टलेस अवेयरनेस इज
17:21
नॉट अचीव्ड। इट इज रिमेंबर्ड। आपको ध्यान
17:24
पाना नहीं है। बस याद करना है कि आप पहले
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से अवेयर हैं। आप कभी सनसेट देखते हैं। वह
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पल में खो जाते हैं। वह मेडिटेशन है। बिना
17:34
कोशिश के, बिना आय के। जो एफर्टलेस है वही
17:39
एटरनल है। कई लोग कहते हैं ध्यान टूट गया।
17:42
आचार्य कहते हैं ध्यान टूट नहीं सकता। आप
17:46
बस भूल गए थे कि आप ध्यान में थे।
17:49
मेडिटेशन इज नॉट डूइंग। इट्स रिमेंबरिंग
17:52
हु यू आर। ध्यान करना नहीं ध्यान में रहना
17:56
है। आचार्य कहते हैं एनलाइटमेंट इज नॉट
18:00
अबाउट एस्केपिंग लाइफ। इट्स अबाउट लिविंग
18:03
इट टोटली। आप काम करते रह सकते हैं आप पर
18:08
अवेयरनेस के साथ। तब हर एक्शन सीक्रेट बन
18:12
जाती है। ध्यान भक्ति नहीं जागृति है।
18:15
जैसे बुद्धा बाजार में भी शांत थे। कृष्ण
18:18
युद्ध भूमि में भी जागरूक थे। वह मेडिटेशन
18:22
247 की परिभाषा है। व्हेन अवेयरनेस एंड
18:26
डक्शन एक्शन बिकम्स प्रेयर। काम वही पर
18:30
नजर नहीं। अब आप समझ गए मेडिटेशन कोई हाफ
18:34
आर्किटे टेक्निक नहीं वो एक जीने का तरीका
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है। आचार्य प्रशांत हमें सिखाते हैं कि हर
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पल हर काम हर भावना एक डोरवे है अवेयरनेस
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की ओर। लाइफ इटसेल्फ इज योर मेडिटेशन मैट।
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आपका जीवन ही आपका ध्यान स्थल है। ध्यान
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कोई एक्टिविटी नहीं वह आपकी आइडेंटिटी है।
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247 मेडिटेशन मतलब हर सांस में सचेत रहना।
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अगर यह वीडियो आपको भीतर तक छू गया तो
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कमेंट में लिखिए। मैं ध्यान में जीना
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चाहता हूं 247
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और ऐसे ही गहराई भरे हिंदी बुक समरीज के
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करना ना भूलें। धन्यवाद।
