Autobiography of a Yogi – अध्याय 7 | गुरु की दिव्य शक्ति और चेतना का रहस्य | Think Better Hindi
Nov 29, 2025
✨ Autobiography of a Yogi का अध्याय 7
गुरु–शिष्य संबंध की सबसे रहस्यमयी परत खोलता है।
इस अध्याय में योगानंद जी पहली बार देखते हैं कि
उनके गुरु श्री युक्तेश्वर गिरी
केवल एक ज्ञानी संत नहीं,
बल्कि एक चलते-फिरते आध्यात्मिक चुम्बक हैं
जिनकी चेतना शिष्य के मन, विचार और ऊर्जा तक पहुँच जाती है।
यह अध्याय बताता है कि—
🕉️ गुरु की असली शक्ति उनके स्पर्श में नहीं,
उनकी चेतना में होती है।
📘 इस वीडियो में जानिए:
गुरुजी की दृष्टि कैसे योगानंद के मन को पढ़ लेती है
बिना छुए ऊर्जा का संचार—गुरु की दिव्य शक्ति
प्राण, चेतना और मन का विज्ञान
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कहते हैं गुरु सिर्फ शरीर से नहीं सिखाते।
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उनकी उपस्थिति ही शिक्षा होती है। कुछ
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गुरु शब्दों से सिखाते हैं, कुछ व्यवहार
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से। लेकिन महागुरु दृष्टि से, स्पर्श से
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और ऊर्जा से सिखाते हैं। अध्याय सात में
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योगानंद जी पहली बार देखते हैं कि गुरु
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केवल एक ज्ञानी पुरुष नहीं बल्कि एक चलते
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फिरते आध्यात्मिक चुंबक होते हैं। उनके
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आसपास की हवा तक बदल जाती है। ऊर्जा बदल
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जाती है और शिष्य का मन बिना बोले ही
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शांति में डूब जाता है। यह अध्याय बताता
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है सच्ची साधना करने के लिए गुरु की कृपा
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कितनी अद्भुत और रहस्यमय हो सकती है।
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आश्रम में नया सवेरा ऊर्जा का परिवर्तन
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गुरु जी के पहली परीक्षा पास करने के बाद
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मुकुंदा यानी योगानंद अब केवल आने जाने
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वाले साधक नहीं थे। वे गुरु के अंदरूनी
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व्रत का हिस्सा बन चुके थे। उन्होंने
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उन्हें महसूस हो रहा था कि उनके भीतर कुछ
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बदल रहा है। मन शांत, सांसे स्थिर और हृदय
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में एक अनजाना आनंद। सुबह जब वे आश्रम
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पहुंचे तो लगा जैसे पूरा वातावरण उनका
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स्वागत कर रहा हो। हवा में स्वच्छता थी।
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दीवारें मौन थी। कक्ष में एक अजीब सी
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रोशनी थी। शायद गुरु जी की ऊर्जा का
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प्रभाव।
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गुरु जी आज शांत थे। कुछ बोल नहीं रहे थे।
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उनकी आंखें गहरी थी जैसे किसी और लोक में
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हो। योगानंद जी ने प्रणाम किया। पर गुरु
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जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उनका मौन ही
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उत्तर था। योगानंद ने सोचा क्या आज भी कोई
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परीक्षा है? लेकिन नहीं। आज गुरु जी का
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मौन किसी चेतना के प्रयोग जैसा था। उनकी
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हर सांस से एक ऊर्जा निकल रही थी जो कक्ष
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में फैल रही थी। वे ध्यान से बैठे थे मानो
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किसी अदृश्य शक्ति से संवाद कर रहे हो।
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काफी देर बाद गुरु जी ने धीरे-धीरे आंखें
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खोली। उनकी आंखों से निकलती शांत रोशनी
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सीधे योगानंद के हृदय में उतरती महसूस
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हुई। जैसे किसी ने उनकी आत्मा पर हाथ रख
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दिया हो। यह कोई सामान्य दृष्टि नहीं थी।
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यह चेतना का संचार था। योगानंद के भीतर एक
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लहर उठी शांति की, आनंद की और एक अजीब सी
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करवाहट की। यह वही अनुभव था जिसे बाद में
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योगानंद जी ने लिखा। गुरु की आंखें दर्पण
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नहीं ऊर्जा का द्वार होती हैं। गुरु जी का
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पहला रहस्य ऊर्जा के माध्यम से साधना।
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गुरु जी बोले मुकुंदा आज मैं तुम्हें
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साधना का पहला रहस्य बताता हूं। योगानंद
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ध्यान से सुनने लगे। गुरु जी बोले योग मन
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का खेल नहीं ऊर्जा का विज्ञान है। जब तक
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ऊर्जा नियंत्रित ना हो मन भी नियंत्रित
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नहीं होगा। फिर गुरु जी ने अपनी हथेली
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दिखाई। यह हाथ यह केवल मांस और हड्डी नहीं
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यह ऊर्जा का चालक है। योगी अपनी इच्छा से
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अपनी ऊर्जा को शरीर के किसी भी भाग में ले
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जा सकता है। योगानंद के लिए यह एक नया
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संसार था। शरीर को ऊर्जा का साधन मानना
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उनके लिए एक अनजाना पर आकर्षक विचार था।
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गुरु जी ने अपनी उंगली उठाई और कहा ध्यान
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से देखो। उन्होंने उंगली से हल्का सा
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संकेत दिया। बस एक छोटा सा झटका और
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योगानंद ने महसूस किया शरीर में एक हल्की
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पर शक्तिशाली कंपन फैल रही है। पहले हाथ
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में फिर छाती में फिर पूरे शरीर में यह
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कंपन ना खुशी का था ना डर का यह एक जागृति
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का कंपन था। योगानंद आश्चर्य से गुरु जी
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को देख रहे थे। गुरु जी बोले यह ऊर्जा की
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पहली सीढ़ी है।
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गुरु जी ने समझाया सारी दुनिया मन को शांत
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करो कहती है। पर मन शांत तब होता है जब
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प्राण यानी लाइफ एनर्जी शांत होगी। फिर वह
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बोले ध्यान का पहला चरण सांस को नियंत्रित
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करना है। सांस को नियंत्रित करोगे तो
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प्राण शांत होगा। प्राण शांत होगा तो मन
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स्थिर होगा। योगानंद को लगा जैसे किसी ने
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आध्यात्मिक मार्ग का मानचित्र उनके सामने
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रख दिया हो। गुरु जी ने कहा तुम अब तक मन
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को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। मन को सीधे
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पकड़ना सांप को पूछ से पकड़ने जैसा है। वह
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फिसल जाएगा। योगानंद समझ गए कि वे अब तक
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गलत दिशा में प्रयास कर रहे थे। गुरु जी
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बोले सांस साधो मन अपने आप साध जाएगा। इन
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शब्दों ने योगानंद के भीतर एक गहरी
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स्पष्टता भर दी।
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गुरु जी ने कहा आंखें बंद करो। योगानंद ने
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आंखें बंद की। गुरु जी ने उनके सर पर हाथ
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रखा और उसी क्षण एक उजला प्रकाश उनके भीतर
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फूट पड़ा। पहले हल्का फिर तेज फिर इतना
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तेज कि उन्हें लगा वे सूर्य के भीतर बैठ
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गए हो। उनका शरीर गायब सा लग रहा था। ना
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हाथ, ना पैर, ना विचार, बस प्रकाश और एक
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गहरी शांति। कई मिनट बीत गए। उनकी सांस
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धीमी, हल्की और लगभग लुप्त हो चुकी थी। जब
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उन्होंने आंखें खोली, उनके चेहरे पर एक
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शांत मुस्कान थी। गुरु जी ने कहा, यह
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ध्यान नहीं था। यह मेरा स्पर्श था। अब
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अगली बार तुम्हें यह खुद करना सीखना है।
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गुरु जी का तीसरा वचन एक दिन तुम भी यह
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करोगे। गुरु जी ने कहा मुकुंदा एक दिन तुम
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भी दूसरों को ऊर्जा का अनुभव कराओगे और
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दुनिया तुम्हें सिर्फ साधक नहीं योग गुरु
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के रूप में पहचानेगी। यह सुनकर योगानंद जी
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भावनाओं में भर गए। उन्हें लगा जैसे गुरु
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जी ने उनके भविष्य की दिशा आज ही
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निर्धारित कर दी।
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अध्याय सात का पहला भाग बताता है गुरु
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साधना नहीं देते साधना का मार्ग देते हैं
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और ऊर्जा का मार्ग सबसे गहरा योग है।
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योगानंद जी अब सिर्फ भावनात्मक शिष्य नहीं
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थे। अब वे ऊर्जा के विज्ञान की पहली सीढ़ी
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पर खड़े थे। हर महान गुरु अपने शिष्य को
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केवल शिक्षा नहीं देते। उनके भीतर झांकर
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बताते हैं कि शिष्य कहां गलत है, कहां
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उलझा है और कहां रुक रहा है। अध्याय सात
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का दूसरा भाग बताता है। गुरु केवल साधना
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नहीं करवाते। शिष्य की आत्मा को पढ़ते
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हैं। योगानंद जी पहली बार देखते हैं कि
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उनके गुरु श्री युक्त गिरी सिर्फ एक
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मनुष्य नहीं एक जीवित आध्यात्मिक शक्ति
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है। जिनके सामने मन विचार भावनाएं सब
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पारदर्शी हो जाते हैं।
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पहले ध्यान के दिव्य अनुभव के बाद योगानंद
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कुछ समय मौन में बैठे रहे। गुरु जी उन्हें
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ध्यान से देख रहे थे। अचानक गुरु जी ने
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कहा मुकुंदा अभी-अभी तुम्हारे मन में एक
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विचार आया क्या मैं यह अनुभव फिर कर
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पाऊंगा सही कहा ना योगानंद स्तब्ध
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उन्होंने धीमे से कहा गुरु जी आपने ही
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कैसे जाना गुरु जी मुस्कुराए जिसका हृदय
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मेरे चरणों में है उसका मन भी मेरे सामने
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खुली किताब होता है। यह सुनते ही योगानंद
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का सिर झुक गया। उनके मन में पहली बार
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गुरु की दिव्य दृष्टि के प्रति सच्चा आदर
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जागा। गुरु का दूसरा उपदेश संदेह साधना का
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विष है। गुरु जी बोले मुकुंदा तुम्हारे मन
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में जो पहला संदेह उठता है वह साधना की
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सारी ऊर्जा को नष्ट कर देता है। फिर गंभीर
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होकर बोले जो साधक अपनी साधना पर संदेह
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करता है वह कभी आगे नहीं बढ़ सकता। संदेह
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से मन टूटता है और टूटा हुआ मन ईश्वर के
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प्रकाश को नहीं पकड़ सकता। योगानंद ने
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महसूस किया कि गुरु सीधे उनके मन की जड़
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को पकड़ रहे हैं। गुरु जी की अद्भुत शक्ति
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शरीर के बिना स्पर्श के अनुभव देना। गुरु
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जी ने योगानंद से कहा अब आंखें बंद करो।
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योगानंद ने आंखें बंद की। गुरु जी ने इस
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बार कोई हाथ नहीं रखा। कोई संकेत नहीं
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दिया। बस बैठे रहे शांत स्थिर। कुछ क्षणों
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में योगानंद को लगा जैसे उनके शरीर में
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ऊर्जा की एक तीव्र धारा बह रही है। पहली
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रीड में फिर छाती में फिर पूरे शरीर में
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यह अनुभव पहले वाले अनुभव जैसा नहीं था।
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यह और गहरा और शक्तिशाली और स्थिर था। जब
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उनकी आंखें खुली, वे परेशान थे। गुरुजी,
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आपने तो इस बार मुझे स्पर्श भी नहीं किया।
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फिर यह कैसे? गुरु जी ने मुस्कुराकर कहा,
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ऊर्जा को स्पर्श की जरूरत नहीं होती। यह
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चेतना से जलती है। योगानंद के भीतर साधना
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की समझ और विस्तृत होने लगी। गुरु जी बोले
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मुकुंदा याद रखो साधना शरीर से नहीं होती।
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मन से भी नहीं चेतना से होती है। फिर
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उन्होंने समझाया चेतना मन से ऊपर है। मन
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विचार करता है। चेतना अनुभव करती है।
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योगानंद जैसे किसी नई दुनिया में प्रवेश
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कर गए। गुरु जी बोले जब तुम्हारी चेतना
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मेरी चेतना से जुड़ती है तब तुम वही अनुभव
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करते हो जो मैं चाहता हूं। यही गुरु शिष्य
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संबंध का रहस्य है। ऊर्जा का एकीकरण।
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गुरु का तीसरा परीक्षक ध्यान की परीक्षा।
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गुरु जी ने कहा आज तुम ध्यान में मेरे
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द्वारा दी गई ऊर्जा ले रहे थे। अब मैं
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चाहता हूं कि तुम खुद से यह शांति अनुभव
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करो। योगानंद उत्साहित भी थे और डर भी रहे
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थे। उन्होंने आंखें बंद की, ध्यान लगाने
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की कोशिश की। सांसे शांत, शरीर स्थिर
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लेकिन मन भागने लगा। विचार आए क्या मैं यह
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कर पाऊंगा? अगर असफल हुआ तो गुरु जी क्या
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सोचेंगे? कुछ मिनट बाद योगानंद ने आंखें
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खोल दी और निराश होकर कहा, गुरु जी मैं
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नहीं कर पाया। गुरु जी ने कहा यही तो पहला
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परीक्षण है मुकुंदा। मन का युद्ध गुरु जी
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बोले तुम्हारी असफलता असफलता नहीं यह
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तुम्हारा पहला कदम है। फिर उन्होंने कहा
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कभी किसी साधना को पहले प्रयास में पूर्ण
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मत मानो। साधना अनुभूति नहीं अभ्यास है।
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गुरु जी ने यह भी कहा जब मन विचार ला रहा
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है तो समझ लो कि तुम्हारी साधना शुरू ही
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हुई है। योग अनंत के लिए यह एक गहरी समझ
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थी। गुरु का चौथा परीक्षण अनुशासन का पाठ
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गुरु जी ने कहा अब मैं तुम्हें नया नियम
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देता हूं हर दिन चाहे मन चाहे या ना चाहे
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ठीक इसी समय ध्यान करना योगानंद ने सिर
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झुका लिया जी गुरु जी गुरु जी बोले ध्यान
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तब आसान है जब मन शांत हो पर सच्चा साधक
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वह है जो मन के तूफान में भी ध्यान कर सके
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यह सुनकर योगानंद को लगा मानो उनके भीतर
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एक योद्धा जाग उठा हो
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उस रात योगानंद ध्यान कर रहे थे।
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धीरे-धीरे महसूस हुआ कि गुरु जी की
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उपस्थिति उनके पास है। हालांकि शरीर में
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नहीं जैसे कोई अदृश्य हाथ उनके सर पर रखा
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हो। उनकी सांसे लंबी होने लगी। मन शांत
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विचार धीमे और शरीर हल्का। यह अनुभव गुरु
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जी की शारीरिक उपस्थिति के बिना था। यह
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उनके ऊर्जा संबंध का प्रमाण था। योगानंद
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समझ गए कभी कुछ कभी-कभी गुरु शरीर से दूर
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होते हैं पर ऊर्जा से हमेशा साथ होते हैं।
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अगले दिन गुरु जी ने कहा मुकुंदा अब
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तुम्हारी साधना शुरू हो चुकी है। अब से
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तुम अपने हर विचार, हर भावना, हर इच्छा को
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मेरे सामने स्पष्ट मानोगे क्योंकि मैं
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तुम्हें एक महान उद्देश्य के लिए तैयार कर
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रहा हूं। योगानंद ने पूछा, गुरु जी कौन सा
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उद्देश्य? गुरु जी ने उत्तर दिया जल्द ही
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जान जाओगे लेकिन अभी अपने मन को जीतना
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सीखो यह कथन योगानंद की आध्यात्मिक यात्रा
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की सबसे महत्वपूर्ण पंक्ति बन गया। अध्याय
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सात का दूसरा भाग बताता है कि गुरु की
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शक्ति केवल शिक्षाओं में नहीं होती। वह
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ऊर्जा, चेतना और नजर में होती है। योगानंद
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जी अब गुरु जी के आशीर्वाद से अगले
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आध्यात्मिक चरण में प्रवेश करने वाले थे।
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धन्यवाद।
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ॐ
