क्या Schools बच्चों की Creativity मारते हैं? | Sir Ken Robinson TED Talk Hindi Summary
Sep 30, 2025
क्या हमारे schools बच्चों की creativity को मार रहे हैं? 🎓✍️ इस सवाल का जवाब Sir Ken Robinson ने अपने legendary TED Talk “Do Schools Kill Creativity?” में दिया, जिसे आज तक 75 million से ज़्यादा views मिल चुके हैं। इस वीडियो में आपको मिलेगा पूरा Hindi Summary – ✅ क्यों schools subjects को hierarchy में रखते हैं ✅ क्यों बच्चों को mistakes से डराया जाता है ✅ कैसे हमारा education system अभी भी factory model पर चल रहा है ✅ Gillian Lynne जैसी inspiring stories ✅ और Robinson के practical solutions 👉 अगर आप parent हैं, teacher हैं, या student – यह talk आपकी सोच बदल देगी। 📌 और वीडियो देखना न भूलें: Atomic Habits (Hindi Summary) Sapiens (Hindi Summary) #ThinkBetterHindi #TEDTalkHindi #SirKenRobinson
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दोस्तों, जरा एक बार इमेजिन कीजिए। आप
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अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने जाते हो। टीचर
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रिपोर्ट कार्ड में लिखते हैं, यह बच्चा
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बहुत डे ड्रीम करता है। ध्यान नहीं देता
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पढ़ाई में कमजोर है। अब आप बताओ क्या यह
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बच्चा वाकई कमजोर है या हो सकता है उसके
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अंदर कोई ऐसा हिडन टैलेंट हो जो दुनिया को
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हिला दें। आज की हमारी समरी है उस टैड टॉक
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की जिसे 75 मिलियन से भी ज्यादा बार देखा
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गया है। टैड हिस्ट्री की यह सबसे पावरफुल
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एंड पॉपुलर टॉक्स में से एक है। सर कैन
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रॉबिनसन द स्कूल्स किल क्रिएटिविटी। कैन
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रॉबिनसन एक एजुकेशनिस्ट और स्पीकर थे।
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उनका सवाल था बहुत सिंपल लेकिन बहुत गहरा।
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क्या हमारा एजुकेशन सिस्टम बच्चों की
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क्रिएटिविटी को दबा रहा है?
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अब सोचिए अगर आइंस्टाइन या पिकसो आज के
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स्कूल में पढ़ रहे होते तो शायद टीचर्स
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उन्हें कहते। वीक स्टूडेंट ध्यान नहीं
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देता। बेकार आईडिया सोचता है लेकिन यही
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बच्चे बाद में दुनिया बदलते हैं। तो आज हम
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इस टॉक को डिटेल में एक्सप्लोर करेंगे।
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केन रॉबिनसन ने अपनी टॉक में तीन बड़ी
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बातें कही। पहला स्कूल्स सब्जेक्ट्स को
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हैरार्की में रखते हैं। दूसरा स्कूल्स
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बच्चों को गलती करने से डराते हैं। तीसरा
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एजुकेशन सिस्टम अब भी पुराने फैक्ट्री
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मॉडल पर चल रहा है। लेकिन इससे पहले थोड़ी
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सी बैकग्राउंड स्टोरी। कैन रॉबिनसन का
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चाइल्डहुड बड़ा नॉर्मल था। वो खुद पोलियो
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सर्वाइवर थे और बच्चों में उन्हें लगा कि
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शायद उनकी लाइफ एवरेज हो जाएगी। लेकिन
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उन्होंने अपनी जिंदगी, एजुकेशन और
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क्रिएटिविटी को समझने में लगा दी। उनका
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बिलीफ था कि हर बच्चा अपने साथ इमेंस
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पोटेंशियल लेकर आता है। प्रॉब्लम यह है कि
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स्कूल्स उस पोटेंशियल को नर्चर करने की
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बजाय दबा देते हैं। उनकी सबसे फेमस लाइन
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है। क्रिएटिविटी अब उतनी ही जरूरी है
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जितनी लिटरेसी। मतलब जैसे पढ़ना लिखना
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जरूरी है वैसे ही क्रिएटिव सोचना भी उतना
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ही जरूरी है। लेकिन हमारी सोसाइटी लिटरेसी
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को तो सीरियसली लेती है क्रिएटिविटी को
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नहीं। जरा सोचिए अगर आप किसी बच्चे को कहो
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कि मैथ्स इंपॉर्टेंट है तो सोसाइटी क्लैप
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करेगी। लेकिन अगर आप कहो कि मेरा बच्चा
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डांस में जीनियस है तो लोग कहेंगे अच्छा
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हॉबी है लेकिन रियल करियर क्या है? यही
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सोच हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी कमजोरी है।
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रॉबिनसन का कहना है स्कूल्स बच्चों को
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सिर्फ एग्जाम टेकिंग मशीनंस बना देते हैं।
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हर बच्चा यूनिक होता है लेकिन सिस्टम सबको
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एक ही मोल्ड में ढालना चाहता है। जैसे
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फैक्ट्री में एक जैसी मशीनें बनती हैं,
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वैसे ही स्कूल्स से एक जैसे बच्चे निकले।
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अब सवाल यह है क्या हम बच्चों को फ्यूचर
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के लिए प्रिपेयर कर रहे हैं या हम उन्हें
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पास्ट के लिए ट्रेन कर रहे हैं? रॉबिनसन
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कहते हैं अगर हम एजुकेशन सिस्टम को रिथिंक
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नहीं करेंगे तो हम आने वाली पीढ़ी से उनका
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सबसे बड़ा गिफ्ट छीन लेंगे उनकी
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क्रिएटिविटी। और दोस्तों क्रिएटिविटी का
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मतलब सिर्फ आर्ट, डांस या पेंटिंग नहीं
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है। क्रिएटिविटी मतलब है नया सोचने की
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एबिलिटी। चाहे आप इंजीनियर हो, डॉक्टर हो,
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बिजनेस ओनर हो। अगर आप क्रिएटिव नहीं हो
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तो आप बस पुराना रिपीट कर रहे हो। आज की
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नॉलेज इकॉनमी में जॉब्स बदल रही हैं। एआई
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और ऑटोमेशन हजारों जॉब्स रिप्लेस कर रहे
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हैं। लेकिन एक चीज कभी रिप्लेस नहीं हो
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सकती व्हिच इज ह्यूमन इमेजिनेशन। तो चलिए
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अब स्टेप बाय स्टेप समझते हैं रॉबिनसन ने
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इस टॉक में क्या-क्या आर्गुमेंट्स दिए।
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दोस्तों, अब आते हैं केन रबिनसन के पहले
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मेजर आर्गुमेंट पर। स्कूल्स सब्जेक्ट को
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हैरार्की में रखते हैं। उन्होंने कहा कि
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पूरी दुनिया में चाहे आप किसी भी देश में
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चले जाओ एजुकेशन सिस्टम का स्ट्रक्चर लगभग
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एक जैसा है। सबसे ऊपर होते हैं मैथ्स और
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लैंग्वेजेस। फिर आते हैं साइंसेस और सबसे
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नीचे होते हैं आर्ट्स, सब्जेक्ट्स, डांस,
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ड्रामा, म्यूजिक, पेंटिंग। अगर आप किसी
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बच्चे से पूछो कि इंजीनियर बनना है या
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डांसर? तो सोसाइटी का सीधा जवाब होगा
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इंजीनियर बनो। डांसर तो टाइम पास है।
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लेकिन असली सवाल यह है किसने डिसाइड किया
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कि मैथ्स ज्यादा इंपॉर्टेंट है और डांस
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कमेंट? आपने नोटिस किया होगा हमारे इंडिया
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में हर पेरेंट का सपना होता है मेरा बेटा
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डॉक्टर बने, इंजीनियर बने, आईएएस बने। अगर
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बच्चा कहे पापा मुझे म्यूजिशियन बनना है
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तो पेरेंट्स की रिएक्शन होगी। बेटा हॉबी
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के लिए ठीक है लेकिन पहले करियर बना लो।
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रिजल्ट क्या होता है? बचपन से ही बच्चों
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को यह मैसेज मिल जाता है कि रियल टैलेंट
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वही है जो पैसे कमाए। बाकी सब चीजें
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सेकेंडरी है। लेकिन सच यह है कि दुनिया के
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सबसे बड़े बदलाव कई बार उन्हीं लोगों ने
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किए जिन्होंने अनक्वेंशनल रास्ता चुना।
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रॉबिनसन कहते हैं हरारकी की वजह से हम
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बच्चों को नेचुरल टैलेंट को दबा देते हैं।
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एक बच्चा अगर पेंटिंग में अच्छा है तो उसे
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सिर्फ एक्स्ट्रा करिकुलर टैग दे दिया जाता
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है। लेकिन मैथ्स में अगर एवरेज है तो उसे
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बार-बार बोला जाता है इंप्रूव करो ट्यूशन
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लो। मतलब सिस्टम हमेशा उस पर फोकस करता है
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जिसमें बच्चा वीक है ना कि उस पर जिसमें
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वो नेचुरली गिफ्टेड है। इमेजिन करो अगर
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सचिन तेंदुलकर को बार-बार बोला जाता है कि
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बेटा क्रिकेट टाइम वेस्ट है तो मैथ्स में
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टॉपर बन तो क्या हमें गॉड ऑफ क्रिकेट
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मिलता?
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अब बात करते हैं हरार्की का रियल लाइफ
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नुकसान। इस हरारकी का सबसे बड़ा नुकसान यह
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होता है कि बच्चे अपनी खुद की एबिलिटीज पर
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डाउट करने लगते हैं। मान लो कोई बच्चा
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डांस में एक्स्ट्राऑर्डिनरी है। लेकिन
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स्कूल उसे कहता है डांस तो ठीक है लेकिन
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साइंस वीक है। जब तक साइंस स्ट्रांग नहीं
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होगा तुम सक्सेसफुल नहीं हो। धीरे-धीरे
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बच्चा खुद सोचने लगता है शायद मेरा टैलेंट
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वैल्यूुएबल नहीं है। रिजल्ट वो अपने पैशन
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को छोड़कर एवरेज सब्जेक्ट्स में स्ट्रगल
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करता है और फिर सोसाइटी उसे मिडकर कह देती
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है। रॉबिनसन ने डेड टॉक में पूछा क्यों हर
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सोसाइटी ने सब्जेक्ट्स को हरारकी में बांट
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रखा है? क्यों मैथ्स और साइंस ऑटोमेटिकली
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सुपीरियर माने जाते हैं? उन्होंने
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एक्सप्लेन किया कि यह इंडस्ट्रियल एज की
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देन है। इंडस्ट्रीज को चाहिए थे डॉक्टर्स,
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इंजीनियर्स, अकाउंटेंट्स। आर्टिस्टिक पीपल
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की जरूरत कम थी। इसलिए स्कूलों ने वही
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हरार्की बना दी। लेकिन आज 21 सेंचुरी में
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जब इंडस्ट्रीज खुद बदल चुकी हैं तो हरारकी
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क्यों वहीं की वहीं है? रॉबिनसन कहते हैं
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आर्ट्स सिर्फ डेकोरेशन नहीं है। आर्ट्स तो
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सोल की भाषा है। म्यूजिक, डांस, थिएटर यह
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सब्जेक्ट्स बच्चों को इमेजिनेशन,
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कोलैबोरेशन, कॉन्फिडेंस और सेल्फ
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एक्सप्रेशन सिखाते हैं। रिसर्च कहता है कि
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जो बच्चे आर्ट्स में एक्टिवली पार्टिसिपेट
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करते हैं उनमें प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स
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और इमोशनल इंटेलिजेंस ज्यादा होती है। अब
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सोचिए अगर दुनिया सिर्फ मैथ्स और साइंस पर
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चलती तो हमें शेक्सपियर, ए आर रहमान, आर
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के लक्ष्मण या चार्ली चैप्लिन जैसे
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लेजेंड्स कभी नहीं मिलते। आपने नोटिस किया
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होगा जब भी कोई बड़ा फेस्टिवल होता है लोग
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डांस, म्यूजिक और आर्ट के थ्रू सेलिब्रेट
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करते हैं। दिवाली की रंगोली, गणेश चतुर्थी
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का डांस, होली के सॉन्ग्स यह सब आर्ट है।
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आर्ट के बिना हमारी कल्चर अधूरी है। फिर
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भी स्कूल्स बच्चों को यह सिखाते हैं कि
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आर्ट का कोई फ्यूचर नहीं है। यह डबल
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स्टैंडर्ड नहीं है क्या? कल्चर में आर्ट
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का महत्व है लेकिन करियर में उसे इग्नोर
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कर दिया जाता है। रॉबिनसन कहते हैं जब तक
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हम इस हरारकी को तोड़ेंगे नहीं हम बच्चों
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को इनकंप्लीट एजुकेशन देंगे उनका मानना था
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हर सब्जेक्ट इक्वल होना चाहिए। मैथ्स और
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साइंस इंपॉर्टेंट है लेकिन म्यूजिक और
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डांस भी उतने ही इंपॉर्टेंट है क्योंकि
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फ्यूचर प्रेडिक्ट नहीं किया जा सकता। तो
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हम कैसे डिसाइड कर सकते हैं कि कौन सा
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सब्जेक्ट ज्यादा वैलएबल होगा? हो सकता है
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कि अगर अगले 20 साल में क्रिएटिव
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सब्जेक्ट्स ही सबसे ज्यादा डिमांड में हो।
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लेकिन अगर हमने बच्चों की क्रिएटिविटी अभी
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मार दी तो हम उन्हें फ्यूचर के लिए तैयार
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ही नहीं कर पाएंगे। तो दोस्तों पहला बड़ा
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लेसन हमें यह मिलता है एजुकेशन सिस्टम को
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सब्जेक्ट्स की हर हरकी तोड़नी होगी। हर
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बच्चा अपने टैलेंट में यूनिक है। हम हमें
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उन्हें वो फ्रीडम देनी होगी कि वो जिस
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फील्ड में नेचुरली गिफ्टेड है उसमें
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एक्सेल कर सके। रॉबिनसन कहते हैं डोंट पुट
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चिल्ड्रन इन बॉक्सेस लेट देम डिस्कवर देर
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एलिमेंट और सच मानिए अगर हम हैरार्की नहीं
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तोड़ेंगे तो हम अगला आइंस्टाइन अगला टैगोर
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या अगला एमएफ हुसैन शायद खो देंगे।
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दोस्तों रॉबिनसन का दूसरा बड़ा पॉइंट था
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स्कूल्स बच्चों को गलती करने से डराते
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हैं। अब आप खुद सोचिए बचपन में जब आपने
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साइकिल चलाना सीखा था क्या आप बिना गिरे
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सीधे बैलेंस कर पाए थे? नहीं ना? पहली
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बार-बार गिरे, चोट लगी, पैर छीले और फिर
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धीरे-धीरे सीखा। यानी कि मिस्टेक ही
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लर्निंग का पहला स्टेप है। लेकिन हमारे
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स्कूल्स बच्चों को यही सिखाते हैं कि
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मिस्टेक करना गलत है। रॉबिनसन की एक फेमस
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लाइन है। इफ यू आर नॉट प्रिपयर्ड टू बी
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रोंग, यू विल नेवर कम अप विद एनीथिंग
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ओरिजिनल। मतलब अगर आप गलत होने के लिए
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तैयार नहीं हो तो आप कभी कोई नया आईडिया
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नहीं ला सकते। लेकिन प्रॉब्लम यह है कि
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स्कूल सिस्टम बच्चों को बार-बार यही मैसेज
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देता है। गलती करोगे तो पनिशमेंट मिलेगी।
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मार्क्स कटेंगे, लोग हसेंगे। रिजल्ट बच्चे
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रिस्क लेना छोड़ देते हैं। वो सिर्फ वही
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आंसर रिपीट करते हैं जो सेफ है। हमारे
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स्कूल्स में बच्चों का पूरा फ्यूचर एग्जाम
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रिजल्ट पर डिपेंड करता है। 100 में से 99
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सही एक गलत। और टीचर कहती है तुमने गलती
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क्यों की? बच्चे का पूरा फोकस शिफ्ट हो
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जाता है गलतियों से डरने पर ना कि उनसे
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सीखने पर। इमेजिन कीजिए अगर थॉमस एडिसन भी
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मिस्टेक्स से डर जाता तो क्या हमें बल
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मिलता? उसने 1000 बार एक्सपेरिमेंट्स फेल
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किए। लोगों ने मजाक उड़ाया। लेकिन एडिसन
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ने कहा आई डिडंट फेल 1000 टाइम्स। आई
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फाउंड 1000 वेज़ दैट डिडंट वर्क। यह है
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असली क्रिएटिव माइंडसेट। लेकिन स्कूल्स
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बच्चों में इसका उल्टा डाल देते हैं। अब
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बात करते हैं स्मॉल किड्स वर्सेस ग्रोन
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अप्स। रॉबिनसन ने एक ऑब्जरवेशन शेयर की।
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छोटे बच्चे नेचुरली ज्यादा क्रिएटिव होते
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हैं क्योंकि उन्हें गलत होने का डर नहीं
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होता। एक बच्चा ड्राइंग में सूरज को हरा
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भी बना देगा और आसमान को गुलाबी भी। वो
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सोचता है व्हाई नॉट? लेकिन जैसे-जैसे वो
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बड़ा होता है, उसका इमेजिनेशन श्रिंक होने
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लगता है। क्यों? क्योंकि टीचर्स और
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पेरेंट्स उसे बार-बार सिखाते हैं। ऐसा मत
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करो। यह गलत है। रिजल्ट ग्रोन अप्स सेफ
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आंसर्स देना सीख जाते हैं। क्रिएटिविटी
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स्लोली मर जाती है। सोचिए इंडिया में जब
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बच्चा एग्जाम देता है और रिजल्ट 60% आता
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है तो सोसाइटी क्या कहती है। बस 60% शर्मा
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जी का बेटा 95% लाया है। बच्चा डर जाता
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है। वो सोचता है मैं गलती करूंगा तो सब
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मेरा मजाक उड़ाएंगे। इस डर से वह नया
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सोचना बंद कर देता है और फिर वही बच्चा
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लाइफ में एवरेज जॉब्स करता है क्योंकि
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उसने कभी रिस्क लेना सीखा ही नहीं। अब बात
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करते हैं द क्रिएटिविटी मिस्टेक कनेक्शन।
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क्रिएटिविटी और मिस्टेक्स का कनेक्शन बहुत
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गहरा है। हर बड़ा इन्वेंशन हर बड़ी
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डिस्कवरी मिस्टेक से ही शुरू हुई।
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पेंसिलिन एक्सीडेंटली खोजा गया था जब
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एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने अपने लैब में फंगस
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देखा। माइक्रोवेव एक्सीडेंटली इन्वेंट हुआ
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था जब साइंटिस्ट के पॉकेट में रखी चॉकलेट
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मेल्ट हो गई। इवन पोस्टेड नोट्स एक फेल्ड
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क्लू एक्सपेरिमेंट से बने। अगर यह
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साइंटिस्ट मिस्टेक से डरते तो शायद दुनिया
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आज भी इन्वेंशनंस से वंचित होती। रॉबिनसन
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कहते हैं स्कूल्स बच्चों की इमेजिनेशन को
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तबाह कर देते हैं क्योंकि वो उन्हें गलत
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होने का मौका ही नहीं देते। हर सवाल का
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सिर्फ एक करेक्ट आंसर होता है। और अगर
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बच्चे ने अलग आंसर दिया तो टीचर कहती है
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रॉन्ग लेकिन असली दुनिया में हर प्रॉब्लम
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का मल्टीपल सशंस होता है। क्रिएटिविटी
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वहीं से आती है जब आप अलग एंगल से सोचते
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हो। सोचिए अगर विराट कोहली हर बार सिर्फ
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टेक्स्ट बुक शॉट्स खेलता तो वो लेजेंड
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नहीं बनता। उसने इनोवेटिव शॉट्स खेले,
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मिस्टेक्स की, रिस्क लिया। तभी वह आज
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वर्ल्ड क्लास प्लेयर है। वैसे ही हर
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क्रिएटिव व्यक्ति मिस्टेक्स से गुजरता है।
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लेकिन स्कूल्स बच्चों को टीच करते हैं कि
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मिस्टेक्स मतलब फेलियर और यही सबसे बड़ी
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ट्रेजडी है। मिस्टेक्स का डर बच्चों में
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इतना गहरा बैठ जाता है कि जब वह बड़े होकर
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जॉब्स में आते हैं तो भी रिस्क लेने से
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डरते हैं। कंपनी में बॉस कहे कोई न्यू
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आईडिया लाओ तो एंप्लई चुप रहता है क्योंकि
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उसे लगता है आईडिया गलत निकला तो हंसी
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उड़ेगी। इस तरह क्रिएटिविटी सिर्फ
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चाइल्डहुड में नहीं बल्कि पूरे जीवन में
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दब जाती है। अब बात करते हैं रॉबिनसन का
12:27
स्यूशन। रॉबिनसन कहते हैं स्कूल्स को
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चाहिए कि बच्चों को मिस्टेक्स से सीखना
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सिखाए। मार्क्स काटने की बजाय उन्हें
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एक्सप्लोर करने दो। सेफ आंसर्स की बजाय
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न्यू आइडियाज एनकरेज करो। उनकी बात सिंपल
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है। चिल्ड्रन शुड नॉट बी पनिश्ड फॉर बीइंग
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रोंग। दे शुड बी एनकरेज्ड फॉर ट्रैंक। तो
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दोस्तों, दूसरा बड़ा लेसन हमें यह मिलता
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है अगर हम बच्चों से उनकी क्रिएटिविटी
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वापस लानी है, तो हमें उन्हें मिस्टेक्स
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करने की फ्रीडम देनी होगी। मिस्टेक्स करना
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क्राइम नहीं है बल्कि वो सिग्नल है कि
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बच्चा कुछ नया ट्राई कर रहा है। याद रखो
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आइंस्टाइन भी बार-बार गलत हुए। एडिसन भी
13:03
हजार बार गलत हुए। लेकिन वह गलतियां ही
13:05
उन्हें हिस्ट्री का लेजेंड बनाती है। तो
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अगर अगली बार आपका बच्चा कोई सिली ड्राइंग
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बनाए या कोई अजीब आईडिया बोले तो उसे मत
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कहो गलत है बल्कि कहो इंटरेस्टिंग है और
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सोचो क्योंकि वही इमेजिनेशन शायद फ्यूचर
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में दुनिया बदल दे। दोस्तों,
13:23
अब तक हमने देखा कि स्कूल्स सब्जेक्ट्स को
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हरार्की में रखते हैं और बच्चों को
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मिस्टेक्स से डराते हैं। लेकिन रॉबिनसन का
13:30
तीसरा और सबसे बड़ा तर्क है हमारा एजुकेशन
13:34
सिस्टम अब भी पुराने फैक्ट्री मॉडल पर चल
13:36
रहा है। इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन का
13:38
बैकग्राउंड। रॉबिनसन बनाते हैं कि हमारा
13:40
मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम बना था 18th 19th
13:43
सेंचुरी की इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के
13:45
दौरान। उस टाइम फैक्ट्रीज को चाहिए थे ऐसे
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वर्कर्स जो पंक्चुअल हो, ओबिडिएंट हो और
13:51
ऑर्डर्स फॉलो करें। इसीलिए स्कूल्स ने वही
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मॉडल कॉपी किया। बेल बजती है बच्चा क्लास
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में आता है। बेल बजती है लंच ब्रेक, बेल
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बजती है घर जाओ। हर सब्जेक्ट अलग-अलग
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पीरियड्स में बटा हुआ है। बच्चों को बैचेस
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में क्लासिफाई किया जाता है। एज ग्रुप के
14:06
हिसाब से जैसे फैक्ट्री में मशीनंस या
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प्रोडक्ट्स बनते हैं, वैसे ही स्कूल्स से
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स्टैंडर्डाइज्ड स्टूडेंट्स निकलते हैं।
14:13
रॉबिनसन कहते हैं कि प्रॉब्लम यह है कि हम
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अभी भी उसी पुरानी फैक्ट्री स्टाइल
14:18
एजुकेशन में अटके हुए हैं। लेकिन आज की
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दुनिया कंप्लीटली बदल चुकी है। आज
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रोबोटिक्स और डिजिटल इकॉनमी आ गई है। आज
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की कंपनीज़ को चाहिए इनोवेटर्स, क्रिएटर्स,
14:28
क्रिएटिव क्रिटिकल थिंकर्स, प्रॉब्लम
14:29
सॉल्वर्स। लेकिन स्कूल्स अभी भी बच्चों को
14:32
रोट लर्निंग और मेमोराइजेशन सिखा रहे हैं।
14:35
ऐसी स्किल्स जो अब आउटडेटेड हो चुकी हैं।
14:38
सोचिए आज अगर कोई कंपनी लैंडलाइन फोन
14:41
बनाने लगे, तो क्या वो सर्वाइव कर पाएगी?
14:43
नहीं ना? क्योंकि दुनिया स्मार्टफोन पर
14:46
शिफ्ट हो चुकी है। वैसे ही अगर स्कूल्स
14:49
अभी भी 19 सेंचुरी का करिकुलम पढ़ा रहे
14:51
हैं तो वह बच्चों को फ्यूचर के लिए कैसे
14:54
तैयार करेंगे?
14:56
अब बात करते हैं स्टैंडर्डाइजेशन वर्सेस
14:58
पर्सनलाइजेशन। रॉबर्टसन क्रिटिसाइज करते
15:01
हैं कि एजुकेशन एजुकेशन सिस्टम बच्चों को
15:04
स्टैंडर्डाइज्ड टेस्ट के हिसाब से जज करता
15:06
है। हर बच्चे को एक ही क्वेश्चन पेपर, एक
15:09
ही टाइम लिमिट, एक ही आंसर की। लेकिन हर
15:11
बच्चा यूनिक है। किसी को लैंग्वेज में
15:13
इंटरेस्ट है, किसी को साइंस में, किसी को
15:15
आर्ट्स में। तो फिर क्यों सबको एक ही
15:18
मापदंड से मेजर किया जाता है? रॉबिनसन
15:21
कहते हैं स्टैंडलाइजेशन,
15:23
एजुकेशन, स्किल्स, इंडिविजुअलिटी, वी नीड
15:26
पर्सनलाइजेशन, नॉट स्टैंडर्डाइजेशन। मतलब
15:30
बच्चों को एक जैसे मोल्ड में डालने की
15:32
बजाय हमें उनकी स्ट्रेंथ्स और पैशंस के
15:35
हिसाब से एजुकेट करना चाहिए। इंडिया में
15:37
आपने देखा होगा कोटा या दिल्ली जैसे शहर
15:40
कोचिंग हब्स बन गए हैं। जहां हजारों बच्चे
15:42
एक ही पैटर्न से आईआईटी या नीट की तैयारी
15:45
कर रहे हैं। सुबह से शाम तक बस फार्मूले
15:48
रटते हैं। प्रैक्टिस पेपर्स हल करते हैं।
15:51
लेकिन सवाल यह है क्या हर बच्चा इंजीनियर
15:53
या डॉक्टर बनने के लिए पैदा हुआ है? नहीं।
15:56
लेकिन सिस्टम ऐसा है कि बाकी टैलेंट्स दब
15:58
जाते हैं। इसीलिए हम कह सकते हैं कि यह
16:01
कोचिंग सेंटर्स फैक्ट्रीज हैं जहां
16:03
इंडिविजुअलिटी क्रश होकर सिर्फ
16:05
स्टैंडर्डाइज आउटपुट निकलता है। आज की
16:10
नॉलेज इकॉनमी को चाहिए ऐसे लोग जो नए
16:12
सॉलशंस सोच सके। जिन्हें कोलैबोरेशन आता
16:15
हो, क्रिएटिविटी आती हो, अप्टेबिलिटी आती
16:18
हो लेकिन स्कूल्स बच्चों को कंपटीशन और
16:20
रोड लर्निंग सिखाते हैं। वो कहते हैं
16:22
क्लास में टॉपर बनो। दूसरों से आगे निकलो।
16:25
पर असली दुनिया कोलैबोरेशन पर चलती है।
16:27
कंपटीशन पर नहीं। आज अगर आप Google या
16:30
Apple जैसी कंपनीज देखो तो वहां टीम वर्क
16:32
और इनोवेशन सबसे बड़ी वैल्यू्यूज है। लेकिन
16:35
स्कूल्स बच्चों को सिर्फ मार्क्स और
16:37
रैंक्स सिखाते हैं। रॉबिनसन कहते हैं
16:40
एजुकेशन सिस्टम को अर्जेंटली बदलना होगा।
16:43
हमें फैक्ट्री मॉडल छोड़कर इमेजिनेशन मॉडल
16:46
अपनाना होगा। इमेजिनेशन मॉडल मतलब बच्चों
16:50
को ओपन एंडेड प्रॉब्लम्स दो। प्रोजेक्ट
16:52
बेस्ड लर्निंग कराओ। आर्ट्स और साइंस को
16:55
इक्वलेंस दो। कोलबोरेशन और क्रिटिकल
16:58
थिंकिंग सिखाओ। उनका मानना था एजुकेशन शुड
17:01
नॉट बी अबाउट प्रोड्यूसिंग वर्कर्स फॉर
17:03
फैक्ट्रीज। इट शुड बी अबाउट नर्चरिंग
17:05
ह्यूमन बीइंग्स फॉर द फ्यूचर। रॉबिनसन एक
17:08
ब्यूटीफुल एनालॉगी देते हैं। एजुकेशन को
17:12
फैक्ट्री की तरह मत समझो। जहां आइडेंटिकल
17:14
प्रोडक्ट्स बनते हैं। एजुकेशन को गार्डन
17:17
की तरह समझो। हर बच्चा एक अलग पौधा है।
17:20
किसी को ज्यादा धूप चाहिए, किसी को ज्यादा
17:22
पानी, किसी को अलग मिट्टी। अगर सबको एक ही
17:24
तरह से ट्रीट करोगे तो कई पौधे मर जाएंगे।
17:27
इसी तरह अगर हर बच्चे को एक ही सब्जेक्ट,
17:30
एक ही तरीका, एक ही मेजर से जज करोगे तो
17:33
उनकी इंडिविजुअलिटी खत्म हो जाएगी। अब जरा
17:37
अपने आसपास देखो। आपको कितने लोग मिलते
17:39
हैं जो कहते हैं मुझे तो डॉक्टर, इंजीनियर
17:41
बनना ही था। लेकिन मेरा मन किसी और फील्ड
17:44
में था। कितने लोग कॉर्पोरेट जॉब्स में
17:47
बैठे हैं लेकिन सीक्रेटली म्यूजिक करना
17:49
चाहते थे, बिजनेस करना चाहते थे लेकिन
17:51
फैक्ट्री मॉडल ने उन्हें मोल्ड कर दिया।
17:53
इसलिए आज यूथ में इतनी फ्रस्ट्रेशन और
17:56
स्ट्रेस है क्योंकि वो सिस्टम की
17:58
एक्सपेक्टेशंस पूरी कर रहे हैं। लेकिन
18:00
अपनी इनर कॉलिंग नहीं सुन पा रहे हैं। तो
18:03
दोस्तों, रॉबिनसन का तीसरा बड़ा मैसेज यह
18:06
है एजुकेशन सिस्टम को इंडस्ट्रियल एज मॉडल
18:09
से बाहर निकालना होगा। हमें चाहिए ऐसा
18:11
सिस्टम
18:13
जो बच्चों को सिर्फ ओबिडिएंट वर्कर्स ना
18:16
बनाए बल्कि इमेजिनेटिव लीडर्स बनाए
18:19
क्योंकि फ्यूचर की दुनिया प्रेडिक्टेबल
18:21
नहीं है और अनप्रिडिक्टेबल दुनिया में
18:23
सर्वाइव वही करेगा जिसके पास क्रिएटिविटी
18:26
और एडप्टेबिलिटी होगी। रॉबिनसन की लाइन
18:29
याद रखो। द फैक्ट इज वी कैन नॉट प्रेडिक्ट
18:31
द फ्यूचर। व्हाट वी कैन डू इज प्रिपेयर
18:34
आवर चिल्ड्रन फॉर इट बाय नर्चरिंग देयर
18:36
क्रिएटिविटी। और सच मानो अगर हम एजुकेशन
18:39
को फैक्ट्री समझना बंद कर दें और गार्डन
18:42
समझना शुरू करें तो हर बच्चा अपने तरीके
18:44
से खेल पाएगा।
18:49
दोस्तों थ्यूरी सुनना अच्छा है लेकिन असली
18:52
इंपैक्ट तब आता है जब हम स्टोरी सुनते
18:55
हैं। सर केन रॉबिनसन की डेड टॉक पावरफुल
18:58
इसीलिए बनी क्योंकि उन्होंने रियल लाइफ
19:00
स्टोरी सुनाई। एग्जांपल्स दिए। इन स्टोरीज
19:03
ने ऑडियंस के दिल को छू लिया। अब बात करते
19:07
हैं रॉबिनसन की सबसे फेमस स्टोरी जो है
19:10
जिलियन लाइन की। जिलियन दुनिया की वन ऑफ द
19:14
ग्रेटेस्ट कोरियोग्राफर्स बनी। उन्होंने
19:16
कैट्स और फटम ऑफ द अपरा जैसी म्यूजिकल्स
19:19
बनाई जो आज भी दुनिया भर के थिएटर्स में
19:22
परफॉर्म होती हैं। लेकिन बचपन में जिलियन
19:25
को टीचर्स ने कहा, यह बच्ची ध्यान नहीं
19:27
देती। रेस्टलेस रहती है। शायद इसे एडीएचडी
19:30
है। पेरेंट्स वरिड होकर जिलियन को डॉक्टर
19:34
के पास ले गए। डॉक्टर ने कुछ देर ऑब्जर्व
19:36
किया और फिर जिलियन की मदद से कहा, एक काम
19:39
करो मैं और आप बाहर चलते हैं और इस बच्ची
19:42
को अकेले कमरे में छोड़ते हैं। रूम में
19:44
म्यूजिक चल रहा था। जैसे ही जिलियन अकेली
19:47
रह गई, उसने अपने पैरों को हिलाना शुरू कर
19:50
दिया। फिर वह उठकर नाचने लगी। डॉक्टर ने
19:52
जिलियन की मदद से कहा, योर डॉटर इजंट सिक।
19:56
शी इज़ अ डांसर। टेक हर टू अ डांस स्कूल।
19:58
और यही हुआ। चिलियन को डांस स्कूल भेजा
20:01
गया। वो बच्ची जिसने क्लासरूम में जगह
20:03
नहीं बनाई उसने वर्ल्ड स्टेज पर हिस्ट्री
20:06
बना दी। अब सोचिए अगर जिलियन को उस वक्त
20:09
सिर्फ मेडिसिन दी जाती और कहा जाता चुप
20:11
बैठो पढ़ाई करो तो शायद दुनिया एक लेजेंड
20:15
खो देती। रॉबिनसन कहते हैं हर बच्चे में
20:17
यूनिक टैलेंट होता है। प्रॉब्लम यह है कि
20:20
हम उसे देख नहीं पाते। हम उसे प्रॉब्लम
20:23
चाइल्ड समझ लेते हैं। जबकि वह गिफ्टेड
20:26
चाइल्ड हो सकता है। अब बात करते हैं
20:29
अल्बर्ट आइंस्टाइन द स्लो स्टूडेंट। आपने
20:31
सुना होगा कि अल्बर्ट आइंस्टाइन बचपन में
20:34
लेट टॉकर थे। उनके टीचर्स को लगता था कि
20:37
यह बच्चा कमजोर है। किसी ने नहीं सोचा था
20:40
कि यही बच्चा फिजिक्स के लॉज़ रीाइट करेगा।
20:43
यह एग्जांपल हमें दिखाता है कि स्कूल का
20:45
जजमेंट हमेशा सही नहीं होता। कभी-कभी
20:48
सिस्टम जिस बच्चे को एवरेज कहता है, वो
20:50
बच्चा फ्यूचर का जीनियस निकलता है। इसी
20:53
कांटेक्स्ट में एक इंडियन एग्जांपल लेते
20:55
हैं ए आर रहमान की। हमारे इंडिया में भी
20:57
देखिए ए आर रहमान बचपन में अच्छे स्टूडेंट
21:00
नहीं थे। उनका मन पढ़ाई में कम म्यूजिक
21:02
में ज्यादा था। लेकिन अगर उनके परिवार ने
21:05
कहा होता कि बेटा म्यूजिक छोड़ो बस पढ़ाई
21:08
करो तो हमें ऑस्कर विनिंग कंपोजर कभी नहीं
21:11
मिलता। आज रहमान की वजह से इंडिया का नाम
21:13
पूरी दुनिया में रोशन है।
21:16
रॉबिनसन ने इनडायरेक्टली कई एनालॉजीस दी।
21:21
उनमें एक थी स्टोरी ऑफ द पेंसिल। सोचना
21:24
पड़ेगा कि एजुकेशन सिस्टम बच्चों को
21:26
पेंसिल की तरह बना देता है। शार्पन
21:28
करते-करते एक दिन छोटा कर देता है। लेकिन
21:31
असली एजुकेशन बच्चों को ट्री की तरह ग्रो
21:34
करना चाहिए। हर साल और बड़ा और फ्रूट
21:37
बरिंग। आगे बात करते हैं क्रिएटिविटी इन
21:40
स्मॉल किड्स। रॉबिनसन का एक ऑब्जरवेशन
21:43
बहुत इंटरेस्टिंग है। उन्होंने कहा कि
21:45
छोटे बच्चे नेचुरली ज्यादा क्रिएटिव होते
21:47
हैं। उन्होंने एग्जांपल दिया। एक छोटे
21:49
बच्चे से पूछा गया कि व्हाट इज 2 + 2?
21:51
उसने कॉन्फिडेंटली कहा 22? अब एडल्ट्स
21:54
कहेंगे गलत है। लेकिन बच्चा अपने लॉजिक से
21:57
सोच रहा था। दो और दो को साइड बाय साइड
22:00
रखो तो 22 बनता है। यही क्रिएटिविटी है
22:03
अलग एंगल से सोचना। लेकिन स्कूल्स बच्चे
22:06
की इस सोच को सप्रेस कर देते हैं। अब बात
22:10
करते हैं द शेक्सपियर क्वेश्चन। रॉबिनसन
22:13
ऑडियंस से मजाक में पूछते हैं व्हाट इफ
22:16
शेक्सपियर हैड बीन इन स्कूल टुडे? हाउ वुड
22:19
टीचर्स रिएक्ट? ज्यादा टीचर्स कहते डे
22:22
ड्रीमर है। हमेशा अपनी कॉपी में कहानियां
22:24
लिखता रहता है। पढ़ाई में ध्यान नहीं
22:26
देता। यानी आज का सिस्टम शेक्सपियर जैसे
22:29
जीनियस को भी एवरेज स्टूडेंट बना देता।
22:32
रॉबिनसन खुद एक स्टोरी शेयर करते हैं। जब
22:34
वह छोटे थे तो उनके कजिन ने पियानो सीखना
22:37
शुरू किया। टीचर ने कहा यह बच्चा गिफ्टेड
22:40
है। लेकिन उसी टाइम रॉबिनसन को कहा गया
22:43
तुम्हारे अंदर म्यूजिक का टैलेंट नहीं है।
22:45
उन्होंने कहा उस मोमेंट ने उन्हें यह
22:47
सोचने पर मजबूर किया क्या सच में हर बच्चा
22:50
टैलेंटलेस होता है? किसी सब्जेक्ट में या
22:53
हम बस उसे सही एनवायरमेंट नहीं देते।
22:56
रॉबिनसन कहते हैं क्रिएटिविटी सिर्फ
22:59
आर्ट्स में नहीं होती। एक अच्छा साइंटिस्ट
23:01
भी क्रिएटिव होता है। एक अच्छा बिजनेसमैन
23:04
भी, एक अच्छा टीचर भी। एग्जांपल के लिए
23:06
एलॉन मस्कु लीजिए अगर वह सिर्फ बुक्स फॉलो
23:10
करते तो Tesla और Spcex कभी एक्सिस्ट नहीं
23:13
करते। उन्होंने रिस्क लिया, गलती की लेकिन
23:16
इमेजिनेशन से दुनिया बदल दी। यही
23:18
क्रिएटिविटी है नया देखने और नया सोचने की
23:22
ताकत। हमारे इंडिया में तो क्रिएटिविटी का
23:24
सबसे अच्छा एग्जांपल है जुगाड़। गांव में
23:27
लोग पानी खींचने के लिए अलग-अलग तरीकों से
23:29
मोटर पंप जोड़ते हैं। किसान अपने ट्रैक्टर
23:32
को टेंपरेरी जुगाड़ से जनरेटर बना लेते
23:35
हैं। यह भी क्रिएटिविटी है। लेकिन स्कूल्स
23:37
इसे रिकॉग्नाइज नहीं करते। वो कहते हैं
23:40
टेक्स्ट बुक आंसर दो तभी मार्क्स मिलेंगे।
23:43
तो दोस्तों, रॉबिनसन की स्टोरीज हमें यह
23:45
सिखाती हैं। हर बच्चे की जर्नी अलग है।
23:48
कोई जलियन की तरह डांस में गिफ्टेड है।
23:51
कोई आइंस्टेन की तरह इमेजिनेशन में। हम
23:53
बच्चों को बॉक्स में डालकर जज नहीं। करना
23:56
चाहिए बल्कि हमें उनकी यूनिकनेस सेलिब्रेट
23:59
करनी चाहिए। याद रखो अगर जिलियन को डांस
24:02
का मौका नहीं मिलता, अगर एंस्टेन को
24:04
इमेजिनेशन की फ्रीडम नहीं मिलती, अगर
24:06
रहमान को म्यूजिक से रोका जाता तो दुनिया
24:09
आज बहुत गरीब होती। इसीलिए रॉबिनसन कहते
24:12
हैं आवर जॉब इज नॉट टू टीच क्रिएटिविटी इन
24:15
टू चिल्ड्रन। इट्स टू हेल्प देम डिस्कवर
24:17
देयर ओन क्रिएटिविटी। और सच यही है हर
24:19
बच्चा अपने अंदर एक हिडन जीनियस लेकर आता
24:22
है। बस सिस्टम को चाहिए कि उसे दबाने की
24:24
बजाय नर्चर करें। तो दोस्तों अब हम सर कैन
24:29
रॉबिनसन की डेड टॉक जो स्कूल्स स्किल
24:32
क्रिएटिविटी के आखिरी हिस्से पर आते हैं।
24:34
इतनी लंबी डिस्कशन के बाद सवाल यह है हमें
24:37
प्रैक्टिकली क्या करना चाहिए? रॉबिनसन का
24:39
मैसेज सिंपल था। लेकिन उसकी गहराई बहुत
24:42
ज्यादा है। उन्होंने कहा अगर हम सच में
24:44
बच्चे का फ्यूचर बेटर बनाना चाहते हैं तो
24:47
हमें एजुकेशन सिस्टम के फंडामेंटल
24:49
प्रिंसिपल्स को रिथिंक करना होगा। तीन
24:51
बड़ी सीख समरी ऑफ पॉइंट्स। चलो सबसे पहले
24:54
जल्दी से रिककैप कर लेते हैं। पहला
24:57
सब्जेक्ट्स की हैरार्की तोड़ो। मैथ्स और
25:00
साइंस इंपॉर्टेंट है लेकिन आर्ट्स और
25:01
ह्यूमैनिटीज भी उतने ही इंपॉर्टेंट है।
25:04
दूसरा मिस्टेक्स को अलव करो। गलती करना
25:07
लर्निंग का हिस्सा है। अगर बच्चों को
25:09
हमेशा डराओगे तो वह रिस्क लेना छोड़
25:11
देंगे। तीसरा इंडस्ट्रियल मॉडल को छोड़ो।
25:14
एजुकेशन को फैक्ट्री मत बनाओ। हर बच्चे को
25:16
गार्डन की तरह नर्चर करो। अब कुछ
25:20
प्रैक्टिकल स्टेप्स फॉर पेरेंट्स। रॉबिनसन
25:23
ने पेरेंट्स के लिए बहुत क्लियर मैसेज
25:25
दिया। अगर आपका बच्चा किसी अलग फील्ड में
25:27
इंटरेस्ट दिखाता है उसे इग्नोर मत करो।
25:29
एग्जांपल बच्चा हर समय ड्राइंग करता है तो
25:32
मत कहो। बस कर टाइम वेस्ट मत कर बल्कि उसे
25:34
आर्ट मटेरियल दो। उसे कंपटीशन में भेजो।
25:37
अपने बच्चों से पूछो तुम्हें किस चीज में
25:39
मजा आता है। पैशन हमेशा हैप्पीनेस से
25:41
जुड़ा होता है। कंपैरिजन बंद करो। हर
25:44
पेरेंट की आदत होती है। शर्मा जी का बेटा
25:46
95% आया। यह कंपैरिजन क्रिएटिविटी मार
25:50
देता है। अब कुछ प्रैक्टिकल स्टेप्स फॉर
25:52
टीचर्स। टीचर्स का रोल भी बहुत बड़ा है।
25:55
रॉबिनसन कहते हैं, टीचर सिर्फ नॉलेज देने
25:57
वाला नहीं है बल्कि टैलेंट डिस्कवर करने
26:00
वाला है। क्लास में बच्चों को सिर्फ सही
26:02
आंसर्स मत दो। कभी-कभी ओपन एंडेड सवाल
26:05
पूछो। जैसे अगर ग्रेविटी नहीं होती तो
26:08
क्या होता? ऐसे सवाल बच्चों को इमेजिनेशन
26:10
में उड़ान देते हैं। आर्ट्स को एक्स्ट्रा
26:13
क्लिक करिकुलर मत कहो। आर्ट्स को
26:15
कोकरिकुलर कहो यानी इक्वलेंस।
26:19
अब कुछ प्रैक्टिकल स्टेप्स सिस्टम के लिए
26:22
रॉबिनसन ने यह भी कहा कि पूरे सिस्टम को
26:24
शिफ्ट करना होगा। करिकुलम रिीजाइन करना
26:27
होगा। प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग, ग्रुप
26:29
वर्क, रियल वर्ल्ड प्रॉब्लम्स, एग्जाम्स
26:31
का वेट कम करना होगा। सिर्फ एक पेपर से
26:34
बच्चे का फ्यूचर डिसाइड नहीं होना चाहिए।
26:36
स्कूल्स को इनोवेशन लैब्स बनाना होगा।
26:39
सिर्फ रूट लर्निंग हब्स नहीं। अब द बिगर
26:42
विज़ रॉबिनसन की सबसे पावरफुल बात यह थी।
26:46
वी डोंट नो व्हाट द फ्यूचर विल बी लाइक।
26:48
बट वी डू नो दैट क्रिएटिविटी विल बी द की
26:51
टू सर्वाइव। मतलब हम प्रेडिक्ट नहीं कर
26:53
सकते कि 20 साल बाद कौन सी जॉब्स होंगी।
26:56
शायद आज की 60% जॉब्स तब एक्सिस्ट भी ना
26:59
करें। लेकिन अगर बच्चों में इमेजिनेशन,
27:01
क्यूरोसिटी और प्रॉब्लम सॉल्विंग होंगी तो
27:03
वह किसी भी दुनिया में सर्वाइव कर लेंगे।
27:06
अब सोचिए इंडिया जैसे देश में पापुलेशन
27:09
इतनी बड़ी है। अगर हमने अब बच्चों को
27:11
क्रिएट बच्चों की क्रिएटिविटी दबाई तो
27:13
करोड़ों बच्चे सिर्फ एवरेज एग्जाम टेकर्स
27:16
बनकर रह जाएंगे। लेकिन अगर हमने
27:18
क्रिएटिविटी को नर्चर किया तो यही बच्चे
27:20
दुनिया के सबसे बड़े इनोवेटर्स, आर्टिस्ट
27:22
और एंटरप्रेन्यर्स बन सकते हैं। शायद अगला
27:25
स्टीव जॉब्स बोर में बैठा हो। शायद अगला
27:28
आइंस्टाइन किसी समाल टाउन के स्कूल में
27:30
हो। शायद अगला रविंद्र नाथ टैगोर किसी
27:32
विलेज में लिख रहा हो। क्वेश्चन यह है
27:35
क्या हमारा सिस्टम उन्हें पहचान पाएगा या
27:37
उन्हें दबा देगा? रॉबिनसन कहते हैं एव्री
27:41
चाइल्ड इज बोर्न एन आर्टिस्ट। द प्रॉब्लम
27:44
इज हाउ टू रिमेन एन आर्टिस्ट वंस वी ग्रो
27:46
अप। यह पावलो पिकासो की खोट है। लेकिन
27:48
रॉबिनसन ने इसे एजुकेशन से छोड़ दिया। हर
27:51
बच्चा आर्टिस्ट बनकर आता है लेकिन सिस्टम
27:54
उसे धीरे-धीरे मैकेनिकल बना देता है। तो
27:57
दोस्तों, आज का सबसे बड़ा सवाल आपसे यही
27:59
है। क्या आपको लगता है कि हमारा स्कूल
28:02
सिस्टम क्रिएटिविटी को दबा रहा है? क्या
28:04
आपने खुद यह एक्सपीरियंस किया है कि आपकी
28:06
इमेजिनेशन दबा दी गई? कमेंट्स में जरूर
28:09
बताइए। आपकी स्कूल लाइफ में सबसे क्रिएटिव
28:11
मोमेंट कौन सा था? और क्या टीचर्स ने उसे
28:14
एप्रिशिएट किया या दबा दिया? और हां अगर
28:17
आपको यह समरी पसंद आई तो लाइक और शेयर
28:19
करना मत भूलिए। अगर आपने हमारी एटॉमिक
28:23
हैबिट्स या सेपियंस की समरी नहीं देखी है
28:26
तो उन्हें भी जरूर चेक कीजिए क्योंकि
28:28
हमारा मोटो है सोचो बेहतर जियो बेहतर और
28:31
अगर हम आपकी सोच को बदल पाए तो पूरी
28:34
जिंदगी बदल जाएगी। तो रबिनसन की डेड टॉक
28:37
हमें यही सिखाती है। एजुकेशन का असली काम
28:40
नॉलेज भरना नहीं बल्कि इमेजिनेशन जगाना
28:42
है। और याद रखो अगर हम बच्चों की
28:44
क्रिएटिविटी बचा लें तो फ्यूचर में जो भी
28:46
चैलेंजेस आए हमारे बच्चे सशंस क्रिएट कर
28:50
देंगे। क्योंकि दुनिया बुक्स से नहीं
28:51
आइडियाज से बदलती है। और आइडियाज वही लाते
28:54
हैं जो गलत होने से नहीं डरते। जो
28:56
इमेजिनेशन में उड़ान भरते हैं जो अपनी
28:58
क्रिएटिविटी को जिंदा रखते हैं। थैंक यू।
#Kids & Teens
#Primary & Secondary Schooling (K-12)
#Social Issues & Advocacy
