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कल नव वर्ष खावा हो बेश बाारी आलो रंग छटा
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महादेश घ जलबे नतुन आलो छोटराबे खेला
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अनाहारी मना पेट पुरबे मोगलाई पीठा कला
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नतुन जमा गाय तबे सोना जादू दे बोली नतुन
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बरे कोबो मोरा महानंद होली हम होम चोरई
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पक्षी मान घ बाशा दुपाया बाबू सुख विलाशी
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आशा ये सब कथा बोला माझे फटे
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आतशबाजी मेझते ज्ञान हीन पड़े थका मिनट दशक
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पोरे देख बारी मालिक मरा
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सर्वनाश मन मा जीवन विनाश एक ही प्रलय
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छाना पुर अच्छे आज मरा
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के चोरी खुदा घरे मानुष जो पाखी जीवन का