देवशयनी एकादशी व्रत कब है?| देवशयनी एकादशी व्रत कब है | devshayani ekadashi vrat katha
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Jun 29, 2025
देवशयनी एकादशी व्रत कब है?| देवशयनी एकादशी व्रत कब है | devshayani ekadashi vrat katha
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नमस्कार दोस्तों, कैसे हैं? दोस्तों, मैं
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आप लोगों के लिए ज्ञानप्रद और शिक्षाप्रद
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कहानी लेकर आता हूं जिससे आपका संस्कार
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उज्जवल होता है। धर्म, भक्ति और साधना के
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इस भाग में हम आज देवशयनी एकादशी के बारे
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में जानेंगे। दोस्तों आज देवशयनी एकादशी
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का व्रत है। यह व्रत आषाढ़ महीने के
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एकादशी तिथि को मनाई जाती है। देवशयनी
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एकादशी के बाद चतुर्मास शुरू हो जाता है
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और चतुर्मास लग जाने के बाद कोई भी शुभ
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कार्य नहीं कर सकते हैं। हिंदू धर्म के
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अनुसार चतुर्मास लग जाने के बाद शुभ कार्य
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जैसे शादी, विवाह, सगाई, गृह प्रवेश आदि
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सभी ऐसे कार्य करना वर्जित माना गया है।
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और देवशयनी एकादशी से लेकर प्रबोधनी
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एकादशी तक चतुर्मास की अवधि होती है।
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चतुर्मास का मतलब चार महीना होता है। जैसे
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श्रवण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक। इन
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चार महीने में भगवान विष्णु पाताल लोक में
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सोने के लिए चले जाते हैं। इसलिए इस
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एकादशी को देव शयनी एकादशी भी कहा जाता
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है। देवशयनी एकादशी का बहुत ही महत्व है
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क्योंकि एक तो इसके बाद क्षीर सागर में
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शयन करने चले जाते हैं और दूसरा चतुर्मास
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लग जाता है। इसलिए इस व्रत में दान पुण्य
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का अत्यधिक महत्व है। जो इस व्रत पर पूजा
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अर्चना करता है। उन्हें अक्षय फल की
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प्राप्ति होती है। यह त्यौहार भगवान
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विष्णु को समर्पित है। तुलसी का पौधा
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भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय है। इसलिए
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देवशयनी एकादशी की शाम को तुलसी के पौधे
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के पास गाय के घी का दीपक अवश्य जलाएं।
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ऐसा करने से मां लक्ष्मी खुश होती हैं और
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घर में धनधान्य की वृद्धि होती है। इस
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एकादशी पर घर के द्वार पर दीपक जरूर
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जलाएं। ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां
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दूर भागती है। भगवान विष्णु और मां
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लक्ष्मी के प्रतिमा के सामने अखंड दीपक
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पूरी रात जलता हुए रखें। ऐसा करने से
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भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद मिलता है
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और घर में खुशहाली आती है। पीपल के पेड़
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के नीचे दीपक जलाने से पितरों का आशीर्वाद
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मिलता है। रसोई घर में भी दीपक जलनी
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चाहिए। ऐसा करने से मां अन्नपूर्णा का वास
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होगा और कभी अन्न जल की कमी नहीं होगी।
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विष्णु जी के मंत्रों नमो भगवते वासुदेवाय
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और श्री कृष्ण के मंत्र कृष्णााय नमः का
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जप अवश्य करें। प्रसाद के रूप में भगवान
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विष्णु मिठाई और श्री कृष्ण को माखन
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मिश्री अवश्य चढ़ाएं। देवशयनी एकादशी पर
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भगवान भोलेनाथ की भी पूजा अवश्य करें।
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देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से
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भी जानते हैं। देवशयनी एकादशी पर आधारित
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पौराणिक कहानी आप सभी को सुनाता हूं।
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ध्यानपूक सुने। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर
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ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे माधव
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आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी का क्या नाम है?
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और इसे करने की विधि बताएं। तब भगवान श्री
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कृष्ण ने नारद ऋषि द्वारा बताई गई कहानी
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उसे बताई। उन्होंने बताया कि देवशयनी
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एकादशी सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत
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के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
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कहानी इस प्रकार है। पौराणिक के अनुसार
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सूर्यवंश में माधाता नामक राजा राज्य करते
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थे। माधाता धार्मिक और प्रजा वत्तस्व था।
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उसके राज्य में सभी प्रजा सुखी थी। किसी
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भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। राजा अपनी
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प्रजा को पुत्र के समान व्यवहार करती थी।
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सभी धनधान्य से परिपूर्ण थे। एक बार उसके
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राज्य में लगातार 3 साल से वर्षा होना बंद
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हो गया। बारिश ना होने के कारण राज्य में
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भयंकर अकाल पड़ गया। चारों तरफ हाहाकार मच
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गया। सारी प्रजा त्राहि करने लगी। वर्षा
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के अभाव में सारे पशु पक्षी तथा प्रजा
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मरने लगे। राजा खुद दुखी हो गया। ऐसा क्या
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हो गया जो वर्षा 3 साल से होना बंद हो
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गया। वर्षा ना होने के कारण अन्न संकट
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पैदा हो गया। अन्न के अभाव से यज्ञ आदि
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होना बंद हो गया। राजा ने अपने राज्य से
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सभी ऋषि मुनियों की एक सभा बुलाई और राजा
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ने उन सभी से प्रश्न किया कि हमारे राज्य
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में किस कारण से वर्षा होना बंद हो गया?
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क्या घोर अपराध हमसे हो गया? क्या हमसे
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कोई धर्म पालन करने में कोई चूक हो गई? तो
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उन ऋषि मुनियों से बताया कि हे राजन धर्म
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और वेद पढ़ना केवल ब्राह्मणों को ही है।
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केवल ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार
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रख सकते हैं। लेकिन आपके राज्य में एक
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शूद्र तपस्या कर रहा है। इसलिए सारी
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सृष्टि उलटपुलट हो गई है। इसी दोष के कारण
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आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।
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इसलिए अगर आप प्रजा का भला चाहते हैं तो
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उस शूद्र का वध कर दीजिए। लेकिन राजा ने
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कहा कि उसने हमारा कोई अपराध नहीं किया।
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हम उसका वध कैसे कर सकते हैं? और उसका वध
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करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता है तो
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कृपा करके मुझे बताइए। अगर आप दूसरा उपाय
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जानना चाहते हैं तो सुनो। आषाढ़ महीने के
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शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जिसे
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देवशैनी एकादशी या पद्मा एकादशी कहते हैं
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का व्रत पूरे विधि विधान से करें। भगवान
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की कृपा से राज्य में शीघ्र ही वर्षा
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होगी। फिर राजा ने अपने समस्त मंत्रियों
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सहित देवशयनी एकादशी का व्रत पूरे विधि
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विधान से किया। इसके पश्चात राज्य में
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घनघोर वर्षा हुई और प्रजा सुखी हुई। इस
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व्रत को सभी को जरूर करनी चाहिए। यह समस्त
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पाप नाशक और परलोक में भी मोक्ष की
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प्राप्ति होती है।