आज की इस वीडियो में मैं एक छोटी-सी सुबह की घटना से मिली
बहुत बड़ी और गहरी जीवन-सीख आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
आज मेरा गला थोड़ा खराब था, इसलिए मैंने अपनी रोज़ की breakfast routine बदल दी।
मैंने दही नहीं लिया, देसी घी की जगह मक्खन लिया, और गर्माहट के लिए green tea पी।
अब अगर कोई मुझे आज पहली बार देखता,
तो वह यही सोचता कि मैं butter-lover हूँ,
या फिर green-tea वाला health freak हूँ।
लेकिन सच्चाई यह है कि—
यह मेरी आदत नहीं थी, यह परिस्थिति थी।
और इसी बात ने मुझे एक powerful mindfulness lesson दिया:
एक मुलाक़ात ≠ असली इंसान
लोगों का व्यवहार उस दिन की condition का reflection होता है
किसी इंसान को समझने के लिए उसकी 10–12 मुलाक़ातों का average देखना पड़ता है
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आज सुबह मुझे एक बहुत हल्का सा गले का
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इनफेक्शन था। ना ज्यादा खांसी, ना बहुत
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ज्यादा दर्द बस थोड़ी खराश। अब आम दिनों
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में मेरी ब्रेकफास्ट रूटीन बहुत तय होती
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है। मैं आमतौर पर देसी घी खाता हूं। कभी
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परांठे में, कभी दाल में, कभी और किसी चीज
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में। मेरी आदत है घी मेरे रोज के खाने का
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हिस्सा है।
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लेकिन आज सुबह क्योंकि गला ठीक नहीं था।
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मेरी पूरी रूटीन बदल गई। मैंने घी की जगह
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मक्खन यानी बटर खाया और दही जो मैं अक्सर
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ब्रेकफास्ट में लेता हूं वह आज मैंने
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स्किप कर दिया क्योंकि दही ठंडा होता है।
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और स्वर थ्रोट भी मैं जानता हूं कि यह ठीक
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नहीं। इसके साथ मैंने गुनगुनी ग्रीन टी पी
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जो मैं आमतौर पर तब पीता हूं जब शरीर को
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वार्म रखने की जरूरत होती है या तब जब मन
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को हल्का और आरामदायक रखना हो। यानी कुल
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मिलाकर आज मेरा नाश्ता मेरे सामान्य दिन
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का प्रतिबिंब नहीं था। बल्कि मेरी
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परिस्थिति का परिणाम था। अगर कोई व्यक्ति
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आज मुझसे मुझे पहली बार देखता तो वह यही
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सोचता यह आदमी मक्खन खाने वाला है और शायद
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ग्रीन टी का बड़ा शौकीन है। लेकिन सच यह
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है कि मैं रोज बटर नहीं खाता और मैं रोज
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ग्रीन टी नहीं पीता। आज मैं ऐसा कर रहा था
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क्योंकि स्थिति उस तरह की थी। लला थोड़ा
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खराब था इसलिए रूटीन बदल गया और इसी छोटे
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से अनुभव ने मुझे एक बहुत बड़ी और गहरी
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सीख दी।
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किसी इंसान के बारे में पहली मुलाकात से
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राय बनाना सबसे बड़ी मूर्खता है। लेकिन
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दुनिया का सबसे कॉमन बिहेवियर क्या है? एक
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मुलाकात, एक जजमेंट। हम किसी को एक बार
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देखते हैं, एक बार उसकी बात सुनते हैं। एक
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बार उसका रिएक्शन देखते हैं और तुरंत अपने
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मन में लेवल लगा देते हैं। यह आदमी ऐसा
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है। यह लड़की वैसी है। यह बंदा एटीट्यूड
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वाला है। यह बहुत काम है। यह बहुत ज्यादा
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बोलता है। यह बहुत कमजोर है। यह ऐसा नेचर
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का है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि शायद
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वह उसकी असलियत नहीं। उसका उस दिन का मूड
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है। हर इंसान 100 दिनों का औसत होता है।
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एक दिन का स्नैपशॉट नहीं। जैसे आज मैं बटर
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खा रहा था। लेकिन इससे कोई यह नहीं कह
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सकता कि सचिन बटर लवर है क्योंकि मैं रोज
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ऐसा नहीं करता। आज की कंडीशन अलग थी।
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इसलिए मेरा बिहेवियर भी अलग था। इसी तरह
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किसी इंसान की एक मीटिंग, एक जेस्चर, एक
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रिएक्शन, एक कन्वर्सेशन उसकी पर्सनालिटी
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डिफाइन नहीं कर सकती। क्योंकि हो सकता है
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आज उसका मूड खराब हो। आज वह स्ट्रेस में
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हो। आज उसने कोई बुरी खबर सुनी हो। आज वह
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नर्वस हो। आज उसे किसी की याद आ रही हो।
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आज उसके घर में कोई टेंशन हो। आज उसकी
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हेल्थ ठीक ना हो। आज वह किसी प्रेशर में
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हो। हम उस एक दिन के बिहेवियर को उसकी
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पूरी जिंदगी का कैरेक्टर समझ लेते हैं।
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लेकिन सच क्या है? कैरेक्टर बिहेवियर का
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एवरेज है। वन डे रिएक्शन नहीं। हर इंसान
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के व्यवहार के पीछे एक कारण होता है जो हम
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नहीं जानते। हो सकता है कि कोई आज चुप है
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लेकिन वह इंट्रोवर्ट नहीं थका हुआ है। हो
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सकता है कोई आज इरिटेट है। वह रड नहीं
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एशियस है। हो सकता है कोई आज बात नहीं कर
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रहा। वह एोगेंट नहीं अंदर से डर रहा है।
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हो सकता है कोई आज बहुत बोल रहा है। वह
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ओवर कॉन्फिडेंट नहीं बस खुशी में बह रहा
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है। हो सकता है कोई आज अपसेट दिख रहा है।
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वह डिप्रेस्ड नहीं बस सोच में डूबा है। हम
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एक मूवमेंट को पकड़ कर पूरी जिंदगी जज कर
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देते हैं। लेकिन मूवमेंट बदलते ही व्यक्ति
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भी बदल सकता है। जैसे मैं आज बटर खा रहा
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था। इसका मतलब यह नहीं कि मैं बटर लवर
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हूं। आज मैंने ग्रीन टी पी। इसका मतलब यह
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नहीं कि मैं हेल्थ फ्रीक हूं। यह बस
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स्थिति थी जिसने मुझे जिसमें मुझे ऐसा
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बनना पड़ा। लोग असली में क्या है? यह पता
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करने के लिए 10-12 मुलाकातें चाहिए। एक
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मुलाकात काफी नहीं। जीवन का एक छोटा नियम
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है। पर्सनालिटी इज इक्वल टू कंसिस्टेंसी
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नॉट सिंगल रिएक्शन। किसी इंसान को 10 से
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12 बार मिलो। फिर उसका एवरेज देखो। तभी
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पता चलेगा वह नेचुरली कैसा है। उसका दिमाग
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कैसे काम करता है। वह फ्रस्ट्रेशन कैसे
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हैंडल करता है। वह खुशी कैसे हैंडल करता
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है। वह लोगों के साथ कैसा है? वह स्ट्रेस
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में कैसा है? वह कंफर्ट में कैसा है? वह
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इमोशनल प्रेशर में कैसा है? वह
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ओपोरर्चुनिटी में कैसा है? वह डिसए्रीमेंट
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में कैसा है? क्योंकि इंसान उस दिन की
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कंडीशन के हिसाब से व्यवहार बदल सकता है।
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लेकिन उसका औसत कभी झूठ नहीं बोलता। यह
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बिल्कुल वैसे है जैसे अगर कोई मुझे सो
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थ्रोट वाले दिन देखेगा तो कहेगा सचिन गर्म
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चीजें पीता है। कोल्ड अवॉइड करता है।
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लेकिन अगर वह मुझे 12 दिनों तक देखेगा तो
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उसे पता चलेगा ओह यह तो उसकी जनरल
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पर्सनालिटी नहीं। यह तो वह है सिर्फ इलनेस
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के समय करता है।
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ओके आगे चलते हैं। दोस्तों, अभी तक हमने
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डिस्कस किया कि आज मेरे नाश्ते की एक छोटी
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सी घटना ने मुझे यह समझाया कि एक दिन का
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स्नैपशॉट किसी इंसान के बारे में सच नहीं
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बता सकता। लेकिन जब मैं ब्रेकफास्ट के बाद
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टहलने निकला तो यह बात मेरे मन में और
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गहराई तक उतरने लगी। मैं सोच रहा था अगर
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कोई मुझे सो थ्रोट वाले दिन जज कर ले तो
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क्या वह मेरे सही कररेक्टर को जान पाएगा?
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नहीं, कभी नहीं। वह सिर्फ उस दिन मेरी
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परिस्थितियों को देखेगा। मुझे नहीं। और
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इसी बात से मुझे एहसास हुआ कि हम अपने
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जीवन में भी लोगों के साथ कई बार यही बड़ी
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गलती करते हैं। हम उन्हें उस दिन उस पल उस
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परिस्थिति के हिसाब से जज कर देते हैं। और
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फिर वही जजमेंट अपनी जेब में डालकर उन्हें
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उसी नजर से देखना शुरू कर देते हैं। लेकिन
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जिंदगी इतनी सरल नहीं है। इंसान इतना सतह
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ही नहीं है। और व्यवहार इतना लीनियर नहीं
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है। हर इंसान की पर्सनालिटी एक लंबी गहरी
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लेयर्ड तस्वीर है जो टाइम के साथ समझ में
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आती है। इंसान परिस्थितियों का रिफ्लेक्शन
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होता है। पर्सनालिटी का नहीं। सोचिए आप एक
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दिन परेशान हैं और उस दिन कोई आपको पहली
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बार मिले तो वह क्या सोचेगा? यह इंसान
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चिड़चिड़ा है या रड है। यह बात करने लायक
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नहीं। इसका एटीट्यूड खराब है। लेकिन
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सच्चाई क्या है? ना वह आपका असली चेहरा,
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ना असली नेचर, ना असली व्यवहार, वह सिर्फ
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उस दिन का रिफ्लेक्शन था। उस दिन का मूड,
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उस दिन का दर्द, उस दिन के एग्जॉशन, उस
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दिन का तनाव। और यह बात सिर्फ आप पर नहीं
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दुनिया के हर इंसान पर लागू होती है। कोई
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हंस रहा है इसका मतलब यह नहीं कि वह हमेशा
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खुश है। कोई चुप है इसका मतलब यह नहीं कि
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वह इंट्रोवर्ट है। कोई धीरे बोल रहा है
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इसका मतलब यह नहीं कि वह कमजोर है। कोई
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लाउड है। इसका मतलब यह नहीं कि वह ओवर
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कॉन्फिडेंट है। कोई दूर है। इसका मतलब यह
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नहीं कि वह इगोइसिस्टिक है। कोई पास है।
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इसका मतलब यह नहीं कि वह आपका सच्चा साथी
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है। एक मोमेंट की फोटो पूरी फिल्म नहीं
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बता सकती। लोग पहले दिन वैसे नहीं होते
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जैसे वे पांचवें दिन होते हैं। जरा गौर
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करें। हमारे जीवन में जितने भी मीनिंगफुल
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रिश्ते बने हैं, वह एक मुलाकात में नहीं
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बने। वह लगातार कई इंटरेक्शंस से बने।
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पहले दिन लोग फॉर्मल होते हैं। दूसरे दिन
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थोड़े खुले होते हैं। तीसरे दिन थोड़ी
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ऑनेस्टी आती है। चौथे दिन ट्रस्ट बनना
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शुरू होता है। पांचव दिन असली पर्सनालिटी
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सामने आती है। पर्सनालिटी कनेक्शन की
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मिट्टी है और कनेक्शन वह पौधा है जो समय
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लेकर भी उठता है। कोई भी इंसान अपने पहले
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ही इंट्रोडक्शन में अपना असली स्वरूप नहीं
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दिखाता। हर इंसान के भीतर एक गार्ड होता
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है। एक इनविज़िबल शील्ड जो तब तक हटता नहीं
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जब तक सामने वाले की इंटेंशन समझ ना आए।
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यही वजह है कि पहली मुलाकात में फॉर्म
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जजमेंट अक्सर गलत होती है क्योंकि आप
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व्यक्ति को नहीं उसकी पहली लेयर को देख
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रहे होते हैं।
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लोग 10 से 12 मुलाकातें साथ मिलाकर समझ
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में आते हैं। यह बात मैं फिर से दोहराना
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चाहता हूं क्योंकि यह आज की सीख का सबसे
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महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसी इंसान को सही
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समझने के लिए आपको उसकी 10 से 12
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मुलाकातों का एवरेज देखना पड़ेगा। क्यों?
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क्योंकि तभी पता चलता है वह स्ट्रेस में
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कैसा होता है, आराम में कैसा होता है? खुश
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होकर कैसा होता है? जिम्मेदारी निभाकर
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कैसा होता है? डिसए्रीमेंट में कैसा होता
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है? रिस्पेक्ट कैसे देता है? रिस्पेक्ट
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कैसे लेता है? गलतियां कैसे हैंडल करता
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है? सफलता कैसे हैंडल करता है? असफलता
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कैसे हैंडल करता है? दूसरों के साथ कैसा
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बर्ताव करता है। खुद के साथ कितना ईमानदार
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है। जीवन सिर्फ एक दिन का साइंस नहीं है।
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जीवन बिहेवियर का एवरेज है। और किसी की
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एवरेज पर्सनालिटी तब जान पड़ती है जब आप
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उसे अलग-अलग दिनों में, अलग-अलग मूड्स
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में, अलग-अलग सिचुएशंस में देखें। तभी
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असली कैरेक्टर दिखाई देता है। कई बार हम
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लोग किसी को कम मांग देते हैं। सिर्फ
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इसलिए क्योंकि हमने उन्हें गलत दिन पर
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देखा था। मैंने ऐसे कई लोग देखे हैं। एक
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ग्रंट इंसान जिससे आप जिस दिन मिले वो सैड
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था। आपने उसे बोरिंग समझ लिया। एक
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जेनुइनली काइंड इंसान जिसका उस दिन मूड
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खराब था। आपने उसे रड समझ लिया। एक बहुत
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स्ट्रांग और प्रैक्टिकल इंसान जो उस दिन
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प्रेशर में था। आपने उसे वीक लेबल कर
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दिया। एक बेहद क्रिएटिव इंसान जो उस दिन
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शांत था। आपने उसे नॉन एक्सप्रेसिव मान
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लिया। एक हेल्पफुल इंसान जो उस दिन अपने
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काम में उलझा था। आपने उसे नॉन सपोर्टिव
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मान लिया। और यही प्रॉब्लम है। हम लोग
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जजमेंट्स बहुत जल्दी बना लेते हैं। लेकिन
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समझ बहुत देर से आती है।
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जल्दी जजमेंट करने की हमारी आदत रिश्तों
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को खराब करती है। हमारी परसेप्शन को गलत
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बनाती है और हमें गलत लोगों से दूर कर
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देती है। कई दोस्ती इसलिए नहीं बनती
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क्योंकि हमने उन्हें गलत दिन पर जज कर
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लिया। कई रिश्ते इसलिए नहीं दिखते क्योंकि
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हमने उनके एक बिहेवियर को कररेक्टर मान
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लिया। कई लोग हमारी जिंदगी में इसलिए नहीं
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आते क्योंकि हम ऊपर के सरफेस देखकर उनमें
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गहराई तलाशने का इंतजार ही नहीं करते। कई
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बार हमारी जिंदगी का सबसे अच्छा इंसान
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हमारी मिलने की पहली मुलाकात की वजह से
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हमसे दूर रह जाता है क्योंकि हम उसे समझने
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की बजाय उसे डिफाइन कर देते हैं। आज की इस
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छोटी सी घटना ने मुझे एक जीवन का नियम
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सिखा दिया। जब मैं सुबह बटर खा रहा था और
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ग्रीन टी पी रहा था। मुझे पता था कि मैं
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ऐसा रोज नहीं करता। लेकिन किसी आउटसाइडर
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के लिए यह मेरी आइडेंटिटी बन सकती थी। उसी
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क्षण मैंने समझा हम किसी भी इंसान को एक
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दिन देखकर नहीं समझ सकते। उसकी असलियत
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कंसिस्टेंसी में छिपी होती है। यह एक छोटा
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सा ब्रेकफास्ट था। लेकिन उसने मुझे एक
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बड़ा सच सिखाया कि लोग परिस्थितियों के
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हिसाब से बदलते हैं। लेकिन कैरेक्टर समय
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के साथ रिवील होता है। कैरेक्टर एक दिन से
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नहीं कई दिनों की औसत से पता चलता है। गलत
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दिन पर किसी से मिलना आपको उसकी असलियत से
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दूर कर सकता है। पहली मुलाकात इंट्रोडक्शन
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है। डेफिनेशन नहीं हर इंसान के पीछे एक
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बैकग्राउंड होता है। उसकी परिस्थितियां,
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उसका पेन, उसका मूड अगर आप किसी को 12 बार
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मिले तो आपकी जजमेंट 100 गुना सही होगी।
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इंसान टेंपरेचर की तरह है। एक दिन गर्म,
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एक दिन ठंडा लेकिन असली मौसम कंसिस्टेंसी
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बताती है। पहली नजर में प्रभावित होना ठीक
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है। लेकिन पहली नजर में निर्णय लेना गलत।
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धन्यवाद।
