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वाबस्ता है उस हुस्न की यादें तुझसे जिसने
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इस दिल को परीखाना बना रखा था।
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जिसकी उल्फत में भुला रखी थी दुनिया हमने
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दहर को दहर का अफसाना बना रखा था। आशना है
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तेरे कदमों से वह राहें जिन पर उसकी मददोश
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जवानी ने इनायत की है। कारवा गुजरे हैं
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जिनसे उसी राई के जिसकी इन आंखों ने बेसूर
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इबादत की है। तुझसे खेली है वो महबूब
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हवाएं जिनमें उसके मलबूस की अफसोर्दा महक
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तुझ पे बरसा है उसी बाम से मेहताब का नूर
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जिसमें बीती हुई रातों की कसक बाकी है।
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तूने देखी है वह पेशानी वह रुखसार वो होठ
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जिंदगी जिनके तसवुर में लुटा दी हमने तुझ
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पे उठी है वो खोई हुई साहिर आंखें
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तुझको मालूम है क्यों उम्र गवा दी हमने